फिर एक कहानी और श्रीमुख "खरा सोना"

Update: 2017-07-11 13:27 GMT
झारखण्ड के जंगलों का एक आदिवासी गांव, यदि आधुनिकता के पचड़े को छोड़ दिया जाय तो प्रकृत की सारी शोभा इस गांव पर न्योछावर थी। बैशाख के महीने में जब रात को पेंड़ो से महुआ चूने लगता, तो जैसे सारा गांव महक उठता था। प्रभात में जंगली फूलों का सौंदर्य गांव को स्वर्ग की गरिमा प्रदान करता था। गांव के ठीक बीच से हो कर बहती पहाड़ी नदी से पानी भर कर लौटती युवतियां जब अनायास ही किसी डाली से फूल तोड़ कर अपने बालों में लगा लेतीं तो एकाएक पेंड पर छिपे पक्षी राग भीमपलासी में तराना छेड़ देते थे। ऐसी हीं एक उषा में माथे पर चार मटकियों में पानी ले कर आती इरोम को देख कर मुस्कुराते हुए रूद्र ने कहा- एक फूल मेरे नाम से भी लगा ले इरोम।
इरोम ने जल कर जवाब दिया- तेरा भाग्य इतना मजबूत नही करमजले।
रूद्र मुस्कुराया- तो तू कर दे न मेरा भाग्य मजबूत। तू छु दे तो सोना हो जाऊं।
- आगे से हट निर्लज्ज नही तो सर पर सारी मटकियां फोड़ दूंगी। पत्थर कभी सोना नही हो सकता।
अपने सौंदर्य के गर्व में फूली तरुणी जब आगे बढ़ गयी तो पीछे से मुस्कुराते रूद्र ने कहा- अरे पारस के छूने से पत्थर भी सोना हो जाता है घमंडी, तुझे पता नही तू पारस है।
इरोम मुस्कुराती हुई आगे बढ़ गयी। यह लगभग रोज का नाटक था।
इरोम का गांव की सबसे सुंदर लड़की थी, सब उसे परी कहते थे।
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गांव की लगभग सारी जनसंख्या हिन्दू थी, पर पिछले पांच छह वर्षों गांव में एक ईसाई मिसनरी आया था और लोगों को फुसला कर ईसाई बनाने का खेल सुरु हो चूका था। ईसाई पादरी चौबीसों घंटे लोगों को बरगलाने का प्रयास करता रहता था। वह मूर्तिपूजा को बेकार बताता और मसीह को ईश्वर का एकमात्र दूत घोषित करता था। वह बताता कि बाइबल में लिखी बातें ही सत्य हैं, बाकी सारे धर्मग्रन्थ झूठे हैं। वह कभी कभी गरीबों को पैसे भी देता और ईसाई बनने के लिए मनाने का प्रयास करता था। गांव के लोग पादरी के झूठ को समझते थे, फिर भी कुछ गरीब परिवार उसके बरगलाने में आ कर ईसाई बन चुके थे।
झारखण्ड के जंगलों में नक्सलियों की अच्छी पकड़ है, और अधिकांस गांवों से दो चार युवक नक्सली हैं। इस गांव का हेमंत मुर्मू भी नक्सलियों का नेता था। वह हमेशा गांव और लोगों की भलाई की बात करता था, इस कारण सभी गांव वाले उसका आदर करते थे।
आज गांव में पंचायत बैठी थी। एक दिन पहले ही पादरी ने छः परिवारों को ईसाई बनाया था और इसी पर चर्चा करने के लिए सारा गांव इकट्ठा हुआ था। सभी लोग पादरी पर भड़के हुए थे। बूढ़े शिवराज ने कहा- भाइयों, इस तरह तो एक दिन हमारी संस्कृति ही ख़त्म हो जायेगी । हमे इस पादरी को रोकना ही होगा।
गांव के युवकों में भी आक्रोश भरा हुआ था, सब पादरी को सजा देने की मांग कर रहे थे।
अंत में नक्सली नेता हेमंत बोला- भाइयों, क्या आपको नही लगता कि हम गलत विषय पर चर्चा कर रहे हैं। हमारा मुख्य लक्ष्य गांव का विकास होना चाहिए। हमे धर्म के नाम पर हल्ला गुल्ला कर के माहौल में सम्प्रदायिकता का जहर नही घोलना चाहिए।
युवाओं ने आवाज उठाया- किन्तु हम इसकी मनमानी को यूँ ही कब तक बर्दाश्त करते रहेंगे? यह हमारी जड़े काट रहा है।
मुर्मू गरजा- कौन सी जड़ें? तुम सब जंगल के बाहर कभी निकले हो? दुनिया कहाँ की कहाँ चली गयी आप अभी जड़ों में उलझे हैं। धर्म और परम्परा जैसी बेकार बातों की चक्कर में हमें नही उलझना चाहिए।
इस बार बोलने वाला रूद्र था-जब धर्म इतना ही बेकार है तो फिर यह पादरी हम पर अपना विदेसी धर्म थोपने क्यों चला आया है?
हेमन्त ने क्रोध से कहा- चुप रहो, तुम इतने बड़े नही हुए कि तुम्हारी बात सुनी जाय।
पंचायत हर बार की तरह इस बार बिना निर्णय के ही ख़त्म हो गयी। पर गांव के युवक अब इस ईसाई जिहाद को बर्दाश्त करने के पक्ष में नही थे। शाम को जंगल में दस युवकों की टोली ने अपना कर्तव्य निर्धारित कर लिया। तय हुआ कि रात में पादरी को चर्च से खींच कर हाथ पैर तोड़ देना है।
रात को लगभग ग्यारह बजे दसों युवाओं की टोली चुपचाप चर्च के पास पहुच चुकी थी। पादरी को चर्च से बाहर खीच कर निकालने की जिम्मेदारी रूद्र की थी। वह चुपचाप सीढियाँ चढ़ कर पादरी के कक्ष की ओर बढ़ा, पर एकाएक आवाज सुन कर रुक गया। पादरी के कक्ष का दरवाजा आधा खुला हुआ था,उसने कमरे में झांक कर देखा, अंदर पादरी और हेमन्त मुर्मू शराब पी रहे थे।
रूद्र ने इशारे से बाकि लड़कों को बुलाया, सब चुपचाप छिप कर दोनों की बातें सुनने लगे।
पादरी कह रहा था- इस महीने की क़िस्त का डेढ़ लाख कल ही तुमको मिल जायेगा हेमंत।
अगले महीने हम लगभग सौ परिवारों को यीशु की शरण में लाएंगे। तुम देखना कोई परेशानी खड़ी न हो जाय।
- अरे आप निश्चिन्त रहो फादर, मैं हूँ न। कोई कुछ न कहेगा, आप अपना काम करो, बस मेरे पैसे मुझे समय से मिल जाने चाहिए।
-पैसों की कोई दिक्कत नही है, पर गांव के नए लड़के बहक रहे हैं। उन्हें रोकना होगा।
- अरे आप चिंता न करो, बहुत परेशान करेंगे तो किसी दिन जंगल में लाश मिलेगी सालों की। फिर पुलिस के ऊपर आरोप मढ़ के निश्चिन्त हो जायेंगे।
-सिर्फ कहने से नही होता हेमंत, क्या तुम सचमुच ऐसा कर सकते हो?
पूरी तरह नशे में आ चूका हेमन्त बोला- अरे तुम क्या समझते हो फादर, मैं फेक रहा हूँ? तनिक याद करो तो, पिछले साल मुझपर हाथ उठाने वाला अर्जुन कैसे पेंड पर लटका मिला था। और वो गनेस की बेटी हिरा, जो अपने घमण्ड में किसी को कुछ समझती ही नही थी... नदी में कैसे उसकी लाश तैरती मिली थी।
छिप के सब सुन रहे लड़कों का खून अब खौल चूका था। धड़धड़ाते हुए कमरे के अंदर पहुचे और सबसे पहले पादरी के सर पर एक जोरदार हाथ चलाया। अपने आप को ईश्वर के एकमात्र दूत का दूत बताने वाला झूठा एक लट्ठ भी नही झेल पाया और खून फेंक कर मर गया। अब अगली बारी हेमन्त की थी, लड़के जैसे ही उसकी ओर मुड़े, उसने झट से रूद्र का पैर पकड़ लिया। दुनिया के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर लंबा लंबा हांकने वाले स्वयं महा कायर होते हैं। हेमन्त भी उसी तरह का मनुष्य था। वह जान की भीख मांग रहा था।
किसी ने कहा- इसे गांव में ले चलते हैं, वहीं सबके सामने इसका फैसला होगा।
पर रूद्र को यह पसंद नही था, उसने कहा- गांव के सामने यह हजार बहाने बना कर छूट जायेगा, इसको यहीं मारना होगा। उसने तुरन्त अपनी कमर से गंडासा निकाला और एक हाथ में मुर्मू का सर फर्श पर लोटने लगा। सुबह तक सारी कहानी गांव के सामने थी।
सबकुछ जानने के बाद गांव के बुजुर्ग आगे क्या किया जाय इसपर विचार कर ही रहे थे कि पुलिस की गाड़ी गांव में पहुची, और बात ही बात में रूद्र गिरफ्तार हो गया।
पुलिस उसे गाड़ी में बैठा रही थी, तभी सबने देखा दौडती इरोम को। गांव की परी ने एक झटके से रूद्र का सर खिंच कर अपने वक्ष से चिपका लिया।
रूद्र के सूखे होठों पर जैसे मुस्कान फ़ैल गयी। बोला- अब क्या फायदा इरोम, अब तो फाँसी होगी।
इरोम ने उसको चूम कर कहा- कोई चिंता नहीँ, तुम सोना हो रूद्र, खरा सोना। अगर सजा हुई तो उसके बाद यहीं मिलेंगे, और फाँसी हुई तो वहां मिलेंगे।
रूद्र ने मुस्कुरा कर कहा- एक हत्यारे पर इतना स्नेह क्यों इरोम?
- इरोम ने गर्व् से सर उठा कर कहा- तुम हत्यारे नही हो रूद्र, तुम इस देश के गौरव हो। तुमने किसी दूसरे पर अपना धर्म थोपने के लिए हथियार नही उठाया, तुमने निजधर्म की रक्षा में हथियार उठाया है। तुम इस गांव के गौरव हो।
रूद्र को पुलिस ले गयी। उसे सजा हो गयी।
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पन्द्रह वर्ष बीत गए। जेल की सजा काट कर रूद्र गांव पंहुचा तो चकित रह गया। इन पन्द्रह वर्षों में रास्ते के अधिकांस गांव ईसाई हो चुके थे, किन्तु उसके गांव के चर्च पर जंगल उग आया था। उसने देखा, गांव में प्राचीन आदिवासी परम्परा तनिक भी प्रभावित नही हुई थी। रूद्र के आने की खबर पा कर पल भर में पूरा गांव इकठ्ठा हो गया था। उसने बुजुर्गों से पूछा- सारे गांव ईसाई हो गए पर अपना गांव कैसे बच गया दादा।
बुजुर्ग ने जवाब दिया- क्योंकि इस गांव में तुम जन्मे थे बेटा। 
अचानक किसी ने रूद्र का माथा खींच कर चूम लिया। रूद्र ने देखा- वह अब भी परी थी।

सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।

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