ठक ठक ठक... थप थप थप...श्रेया दरवाजा खोलो !!
ठक ठक ठक.. अरे यार श्रेया दरवाजा खोल भी दो ? बहुत थक गई हु..!!
सात से आठ बार दरवाजा खटखटाने के बाद भी अंदर से दरवाजा नही खुला..थकान के आगोश में उलझी मांसी अब उखड़ चुकी थी, और मन ही मन श्रेया को अनाप सनाप बोलना शुरू कर दिया की "ये अच्छी बात थोड़े है पता नी क्या समझती है खुद को"..वगैरह वगैरह, दरवाजे के बाहर खड़े खड़े झुझलाहट बढ़ती ही जा रही थी, मन कि उठापटक में अचानक मांसी ने परिवर्तन किया और तेजी से दरवाजा पीटने लगी, दरवाजा पीटने का तरीका उसके बदहवास होने का सूबूत जबरजस्ती दे रहा था,
थोड़ी देर पीटने के बाद मांसी रूकी और मोबाईल स्क्रीन को स्वाईप किया और कुछ देखा फिर लाक कर दिया..और दरवाजा फिर से पीटना शुरू कर दिया, उत्पन्न हो रही कर्कस आवाज ने पड़ोस के कमरों तक खलल डाला और दो चार लड़कियाॅ वहाॅ आ धमकी, एक लड़की ने उबाऊॅ तरीके से मांसी से कहा !! क्या यार मांसी..क्यु ? दरवाजे पर अपनी ताकत दिखा रही है फोन कर ले न ?
मांसी ने गुस्से से कहा देख ले न ? कितनी बार काल कर चुकी !! ये महारानी उठाऐं तब न ?
असमंजस के दौर में समय तेजी से ढ़ल रहा था और दरवाजे के बाहर लड़कियों का इकट्ठा होना शुरू हो गया था, एक के बाद एक लगभग सबने काल ट्राई कर लिऐ और अंततः परिणाम शून्य रहा..
नीचे के सिढ़ियों से फोन पर बात करते हुऐ प्राईवेट हास्टल कि केयरटेकर आ रही थी, मोटा शरीर लिऐ थोड़ा धीरे धीरे सीढ़ियों से ऊपर पहुॅचने कि जद्दोहद में आखिरकार वह भी दरवाजे तक आ पहुॅची और फोन पर बोला "पांडेय जी रखिऐ कुछ देर बाद आपको याद करते है",
फोन से अलग होकर वे मांसी कि तरफ मुड़ी और पुछा ? क्यु मांसी क्या ड्रामा है !! सुधार नही आ रहा तुम दोनो में !! फिर केयरटेकर मुड़ी और दरवाजे से आवाज लगाई श्रेया !! श्रेया !! श्रेयययया !! प्रतिउत्तर न मिलने पर वे परेशान हो उठी और परेशान होना भी लाज़िमी था क्युकी जवान लड़की अगर घर से कुछ वर्षों के लिऐ बाहर हो और हास्टल दरवाजा न खुले तो मामला संगीन ही होता है|
केयरटेकर आंटी मांसी कि तरफ मुड़कर पुछा !! मांसी कुछ हुआ है श्रेया को ? कोई समस्या है ? वह बिमार तो नही ? कहीं ऐसा न हो कि गाने सुनते हुऐ सो गई हो और इयरफोन कान में ही लगा रह गया हो..आंटी चुप हुई फिर मांसी ने कहा आंटी कुछ हुआ तो नही था लेकिन उसका ब्रेकअप हुआ है कुछ दिन पहले !! तब से वह उदास रहती थी और बहुत रोती रहती थी..कहीं उसने कुछ....?
आंटी बीच में टोकते हुऐ अपनी बातें रखनी शुरू कर देती है और पुछा कितने समय से उसका चक्कर चल रहा था ? मांसी ने जवाब दिया एक साल से......फिर आंटी ने जो कहा अगर आज कल के प्रेमी प्रेमिका समझ ले तो शायद कभी गलत कदम उठाने कि हिम्मत भी न करेंगे !! केयरटेकर आंटी ने कहा कि आजकल के लड़के लड़किया प्यार में इतने मदमस्त हो जाते है कि उन्हे इतना भी याद नही रहता कि उनके परिवार से अधिक उनको कोई और प्रेम कर ही नही सकता है, और कैसी सोच होती है कि 22 साल तक जिस परिवार ने अधिक प्यार कर बचपन से जवां किया उनके प्यार को 1 साल का प्यार इस कदर मजबूर करता है कि वे ऐसे जघन्य कदम उठाने का भी सोच लेते है ! आज कल के प्रेमियो को प्यार का क्या पता ? प्यार तो वह अवस्था है जिनके उदाहरण में भगवान श्री कृष्ण और परम प्रेयसी मीरा का वर्णन होता है लेकिन आज कल के प्रेमी "प्रेम" को भी बदनाम कर दे रहे है, आखिर उन्हे कब समझ आऐगा की प्यार जिंदगी सॅवारता है खत्म नही करता ! और जरूरी नही कि प्यार हासिल ही हो..आंटी को बीच में टोकते हुऐ मांसी ने कहा ! आंटी कुछ करिऐ ...जल्दी ?
दरवाजे से दाहिने जाने पर बालकनी थी और नीचे चायपान कि दुकान !! केयर टेकर उस तरफ मुड़ी और इधर उधर देखने के बाद चाय वाले को आवाज दी...मुन्ना !! मुन्ना !! जरा ऊपर आना तो !!
पलक झपकते मुन्ना ऊपर आ गया और कोई कुछ कहता उससे पहले ही मुन्ना माजरा समझ चुका था, उसने केयर टेकर से कहा ! क्या करना है दरवाजा तोडु !! केयरटेकर कुछ बोलती इतने में पीछे से एक लड़की ने कहा "आंटी बालकनी के साईड जो खिड़की है उधर मुन्ना भैया को भेजकर अंदर देखने को बोलिऐ !! केयरटेकर सहमति देते हुऐ मुन्ना कि तरफ मुड़ी और आओ मुन्ना कहकर बालकनी कि तरफ जाने लगी, पीछे पीछे सारी लड़कियाॅ भी बालकनी कि तरफ पहुॅच .....खिड़की को झुक कर देखने कि कोशिस करने लगी,
वो खिड़की रोड साईड था और ऐसी व्यस्ततम जगह में था जहाॅ किसी पुरूष का पहुॅचना ही मुमकिन था, सब मुन्ना को जाते हुऐ टकटकी लगाऐ उस तरफ देख रहे थे......चंद सेकेण्ड में मुन्ना ने खिड़की धकेलने कि कोशिस की लेकिन मेहनत बेअसर रहा क्युकी खिड़की अंदर से बंद थी !!
मुन्ना केयर टेकर आंटी कि तरफ देखकर बदहवास चिल्लाया !! खिड़की बंद है !!
इतने में बाहर रोड पर पुलिस सायरन कि आवाज आने लगी सब बेचैन हो उठे थे...फिर सन्नाटे को तोड़ते हुऐ एक लड़की ने कहा !! मैंने काल किया था पुलिस को !!
दरवाजे तोड़ने का क्रम प्रारंभ हो चुका था और चार पाच जोरदार धक्के में दरवाजा टुटा...!!
अंदर का दृश्य देखकर सब सन्न हो उठे थे..!! श्रेया दुपट्टे का फंदा बना लटकी थी और पैर तेजी से फड़फड़ा रहे थे...
पुलिस के सिपाही ने तत्परता दिखाते हुऐ पैर पकड़ कर सहारा दिया तो दुपट्टे कि कसावट ढ़ीली हुई..सिपाही ने कहा साॅसे चल रही है..!!
श्रेया अर्धविक्षिप्त अवस्था में थी अब उसको सब हास्पिटल ले जाने कि तैयारी में लग गये..|
श्रेया के हास्पिटल जाने के बाद केयर टेकर को एक सुसाईड नोट मिला जिसमें लिखा था..!!
"डाक्टर न पाने कि वजह से जीवन खत्म कर रही हु"
डाक्टर का सपना देख रही श्रेया अब स्वयं डाक्टर कि निगरानी में है..और स्वास्थ लाभ ले रही है..डाक्टर मैम एक अधेड़ उम्र कि स्वस्थ महिला है उन्होने श्रेया को बस इतना ही कहा " कि हम जीवन देते है समाप्त नहीं करते" संघर्ष करने का हौसला होगा तो जरूर डाक्टर बनोगी..!!
श्रेया अब मन ही मन सोच रही है कि वो तो उस दिन ही हार गई थी जिस दिन उसने सोचा था अगर डाक्टर नहीं बन पाई तो...!! अब श्रेया जीवन का सार समझ चुकी है और उसका एक ही कथन है कि अब तो बस डाक्टर ही बनना है और बनकर रहना है...!!
साथियों आत्महत्या शरीर से छुटकारा जरूर दिलाता लेकिन बहुत से प्रश्नचिन्ह लगा जाता है, और जो इतनी घटिया सोच रखते है वे उस दिन ही असफल हो जाते है जिस दिन वो ऐसा सोच लेते है| जीवन में जरूरी नही कि सारी चीजे मनमुताबिक हो लेकिन हाॅ अगर मेहनत सही दिशा में हो तो हर चीज मनमुताबिक होगी...लेकिन हमें समझना चाहिऐ की किसी लक्ष्य को पाने के लिऐ क्या हमने उतनी मेहनत की जीतनी उस लक्ष्य का पैमाना है, ये ठीक उसी किमत कि तरह है जो हम कोई वस्तु खरीदने के लिऐ चुकाते है और अगर किमत न हो हमारे पास तो वस्तु नही खरीद पाते फिर कोशिस करते है उस किमत कि व्यवस्था करने में...!! और जब हो जाती है तो आखिरकार खरीद लेते है ठीक वैसे हमारा संघर्ष है जब उतना हो जाऐगा तो लक्ष्य आपके कदमों में होगा...सकारात्मक सोंचे और संघर्ष करते रहे !!
-विशाल "अज्ञात"
जौनपुर (उ○प्र○)