"दूध देखिह, हम अबे आवतानी। " माई कहिके बाहर चल गईली।
"ठीक बा।" हम कहनी अउरी दूध जहा अवटात रहे ओइजा बैठ गईनी। गोइठा के आग पर दूध गरम होत रहे।
काल्ह हमके b.sc. में एडमिशन लेबे खातिर, प्रवेश परीक्षा देबे जाये, इलाहाबाद जाये के रहे। जतरा बनावे खातिर माई इ दूध लियायिल रहली। जब भी कभी घर में कवनो नया काम होखे, खासकर कवनो नया प्रयोजन खातिर घर से बाहर जाए के होखे त माई अपना हाथ से दही जमावस अउरी निकलला के बेरी चीनी मिलाके खिलावस। इहो दूध, दही जमावे खातिर, अवटात रहे। माई ५ मिनट बाद वापस अईली। पर इ का हो गईल। दूध त फाट गईल रहे।
"तू कुछु डलल ह का ऐमे ?" माई खिस से पूछली।
"नाही त। हम काहे कुछु डालब ?" हमहू आश्चर्य करत कहनी।
"इ जरूर रउतायिनिया के काम होइ। काल्ह के दूध दे देले होइ। अब काल्ह जतरा कवनिगा बनी।" माई के क्रोध अउरी बढ़ गईल रहे " चल के सारा दूध उनका मुह पर मारतानी। "
माई दूध उतारके रउताईन के घर की अउरी चलली अउरी हमहू उनके पीछे पीछे लॉग गईनी।
"काहो रउताईन, धोखा देबे खातिर हमहि मिलल रहनी ह। " माई दूध के तसली उतारत कहली "इ काल्ह के दूध देले रहलू ह। सारा दूध फाट गईल, जबकि तहके हम काल्ह ही कह देले रहनी की बाबू के जतरा खातिर दही जमावे के बा। "
"का कहतारू ?" रउताईन आश्चर्य प्रकट कईली " भला हम तहसे धोखा करेब। दूध त आजुवे के ह। "
"त फेरु फाटल ह काहे "
" का कही राजू के माई, इ सब घुरवा के वजह से भईल बा। "
घुरवा के वजह से दूध कवनिगा फाटी, बात हमरा समझ में ना आयिल।
"उ मलेच्छ्वा छुवले रहल ह का ?" माई तनी नरमात कहली।
"अरे काल्ह चौधरी बजारे चल गईल रहले अउरी भईस के घुरवा के गाय के साथै लगा दिहुवे।"
"पर ऐसे दूध कैसे फाटी ?" हम आश्चर्य से पूछनी।
" तू का बुझब। ओकर पउरा ही अइसन ह। जहा जाला पत्थर पड़ेला " माई हमके डाट के चुप करा दिहली।
"तू चिंता मत कर राजू के माई, हम तहके अबे दूध के व्यवस्था करवा के भेजतानी। अब वो माटीलगवनु के अपना भईस पर परछाई भी ना पड़े देब। " रउताईन कहके पट्टीदारी में दूध खोजे चल गईनी।
हमरा समझ में ना आवे के आखिर घुरवा के भईस चरावला से दूध कैसे फाटी। ना ए बात के कवनो तार्किक आधार रहे नहीं इ कवनो ज्ञान -विज्ञानं पे आधारित रहे। पर पूरा गाव में इ मानल बात रहे की घुरवा के आंगछ अपशकुन लियावेला। ऐई पर कवनो बहस के गुंजाइश ना रहे अउरी रहित भी कैसे, जब ए विश्वास पे पंडित रामशरण के ठप्पा लागल रहे। बचपन में एक बार पंडितजी कवनो नया प्रयोजन से कही जात रहले अउरी घुरवा सामने आ गईल अउरी पंडितजी के काम ना भईल। शाम के अईले त फेरु घुरवा सामने आ गईल अउरी उ ओके कवनो काम अरहवले अउरी उ मना क दिहलस। फेरु का पंडितजी ओके अपशगुनी होखे के ठप्पा लगा देहले। पंडित जी के ठप्पा एक तरह से गाव के नियम बन जाऊ। रामशरणजी हमरा गाव ही नहीं अगल बगल के आठ दसगो गाव के इकलौता पंडित रहले। उनका एतना मान सम्मान कलक्टर - कमिश्नर के भी ना होई। गाव ही नाही ज्वार के लोग उनसे हर नया काम पूछ के ही करे। अगर केहु बेमार पड़ जाऊ त लोग डॉक्टर के पास ना जाके पाहिले पंडितजी के पतरा से मुहूर्त देखवावे अउरी तब डॉक्टर के पास जाऊ। दिन अउरी मुहूर्त के हिसाब से पंडित जी सलाह देस की कवना डॉ के लगे जाए के बा अउरी लोग उनका सलाह के आदेश मान के पालन करे। लड़िका कुल के परीक्षा देबे जाये के होखे त पंडितजि मुहूर्त देख के बताई की क बजे घर से प्रस्थान करके बा, कवना रंग के कपडा पहनेकेबा अउरी कौन पेन से लिखे के बा, सब उहाँ के पोथी के हिसाब से होखे। बच्चन के साल भर के मेहनत, पंडितजी के पतरा के आगे आके बेकार हो जाऊ अउरी अगर केहु परीक्षा में सफल होखे त ओकर श्रेय रामशरणजी के अउरी असफल त ओकर कारन उनका सलाह के ना मानल। लड़की कुल के शादी होखे अउरी ससुरा में जाके अगर उ सुख करसन त सारा श्रेय पंडितजी के अउरी अगर दुःख होखे त उनकर बतावल मार्ग के अनुसरण न कईल। कहला के मतलब की,शादी वियाह , मरन -जीयन ,पढ़ाई -लिखाई ,इलाज, हर चीज में रामशरण जी के दखल रहे। पर लोगन के एतना सेवा कईला के बाद भी पंडीजी कभी अपना इ मेहनत के कवनो मेहनताना ना मांगी। जेकरा जवन बुझाऊ दे देबे। पंडित जी चुकी कुछ मांगी ना ए वजह से लोगन के मन में उहाँ के प्रति सम्मान अउरी बढ़ जाऊ। पंडितजी मांगी त ना पर उहा के हर सेवा के एगो शुल्क रहे जवनकी उहा के ही मालूम रहे अउरी जे ओइसे कम देऊ ओइसे लेबे के दूसर तरीका भी उहा के मालूम रहे। कभी केहु से सब्जी, त कभी बाल , रहर, सरसो,चना,मटर, दूध, चाउर, गेहू, जवन उपलब्ध रहे लेली, केहु ना न करे बल्कि आपन सौभाग्य समझ के अउरी ज्यादा देऊ।
घुरवा उम्र में हमरा से एक या डेढ़ साल छोट होई, पर ज्यादा पढ़ लिख ना पवलस। उ अपना माई -बाप के छठवा संतान रहे। एकरा से पहिले के सब बच्चा कुल मर गईल रहल सन, ए वजह से पंडितजी के सलाह पर ओकर माई बाबूजी, जिए खातिर ओकर नाम घूरा राखल पर गाँव में शायद ही केहु ओके घूरा कहे अउरी ओकर नाम घुरवा प्रसिद्व हो गईल। घुरवा के नाम त ओकरा सह गईल पर चार साल बाद ही ओकर माई मर गईली अउरी फेरु ओकर बुरा दिन चालू हो गयील। बरिस भीतरे ओकर बाबूजी दूसर वियाह क लेहले अउरी मैभा महतारी जुल्म के सारा हद तूर देहलस। उ खाना भी ओके भरपेट ना देऊ अउरी सारा काम करवावे, स्कूले भेजला के त सवाले ना रहे। ओकर बाबूजी त बीबी के गुलाम बन गईल रहले अउरी घुरवा के धुनाई आम बात रहे। गाव के भी सब लड़िका ओके चिढ़ाव सन अउरी साथै ना खेलाव सन । अगर पूरा गाव में केहु ओकर हितैषी रहे त उ रहली हमार माई। माई के ओकरा ऊपर बड़ा दया आवे अउरी अक्सर उ ओके अपना इहाँ खाना खियावस अउरी गाहे बगाहे घुरवा के माई बाबूजी से ओकरा उपरवाति लड़ आवास। इ माई के लडला के फल रहे की घुरवा के मार खाइल लगभग बंद हो गईल रहे। एकदिन माई जाके ओकरा नवका माई के इनार में लटका देहले रहली अउरी फेरु तबसे उ कभी घुरवा के हाथ ना लगवलस। हमके भी सख्त आदेश रहे की ओके साथै खेलावे के बा। हमरा साथ रहला से ओकर फायदा भईल की अब गाव के बच्चन के साथै खेले के इजाजत मिल गईल। धीरे धीरे उ हमार चेला बन गईल अउरी हमरा खातिर कुछु करे के तैयार रहे।
पर जैसेही पंडीजी ओकरा ऊपर अपशकुनी के ठप्पा लगवले ओकर मुसीबत फेरु से चालू हो गईल । जतरा के समय गलती से भी केहु के सामने आ जाऊ त लाख लाख गारी लोग देऊ। माई के स्नेह भी ओकरा पर कम हो गईल । पंडितजी के बात अकाट्य रहे माई खातिर। ऊपर से एक दिन जैसे ही माई नानी से मिले खातिर घर से निकलली घुरवा सामने पड गईल। फेरु त वोइदिन नानी किहा जाये के कवनो सवारी ना मिलल अउरी हार थक के माई शाम के मोड़ पर से घरे वापस आ गईली। अब त पंडितजी की बात पे पूरा भरोसा हो गईल। अब उ ना चाह्स की घुरवा घरे आउ, खासकर जब केहु घर से नया प्रयोजन खातिर निकले। पाहिले त घुरवा सामान्य रूप से आवल चालू रखले रहे पर जल्द ही ओकरा माई के व्यवहार में बदलाव महसूस हो गईल अउरी फेरु धीरे धीरे उ हमरा घरे आवल बंद क दिहलस पर हमरा प्रति ओकर प्रेम अउरी श्रद्धा बनल रहे। खेल में अब केहु ओकरा के अपना टीम में ना रखे काहे की ओकर मतलब हार निश्चित रहे। घुरवा खातिर एकहि राहत के बात रहे की ओकरा साथै मारपीट ना होखे। धीरे धीरे बचपन से हमनी के युवावस्था में आ गईनी जा अउरी गुल्ली डंडा ,चिका बाड़ी ,कबड्डी के जगह क्रिकेट ले लेहलस। ओने घुरवा के कम उम्र में वियाह हो गईल अउरी फेरु ओकर माई बाबूजी ओके अलग क दिहल लोग। साल में दू कुंतल चावल अउरी गेहू मिल जाऊ ओकरा हिस्सा के जवन की ओ दुनू परानी खातिर काफी रहे। साथ में ससुरारी से मिलल गाय दू लीटर सुबह शाम दूध देऊ। एक बेरा के दूध पियेवू अउरी एक बेरा के बेच देऊ। ससुरारी से मिलल साइकिल से मेहरारू के ले जाके फिलिम भी देखा लियावे महीना में एक बार। कुल मिलाके गाव के लोग के घृणा कईला के बाद भी उ मजा में रहे अउरी सबके काम भी करे के तैयार रहे। माई से चोरा के हमहू ओकर नया साइकिल लेके खूब दंगरची। पूरा गाव में ए गो हमके ही उ आपन साइकिल देऊ अउरी हमरा खातिर कुछु करे के तैयार रहे।
"रउताईन कह त देली ह पर अगर दूध के व्यवस्था ना होइ त का होइ ? केकरा घरे दूध मिल सकेला। " माई घरे आके बड़बडईली।
"घुरवा किहा दूध मिल सकेला। " हम सुझवनी " कह त पता क आई। "
"नाम मत ल ओ आगलगावना के। वोही के वजह से इ सब भईल बा अउरी वोही के दूध लेब हम। "
"माई तू गरियावेलु काहे। ओकर का दोष बा। "
"तू वोकर वकालत मत कर। "
"बहारना बाकी ना? अगर होइ त बुला लियाव ?" कुछ देर सोचला के बाद माई कहली "उ मलेच्छ्वा जब काम होला त नानी किहा भाग जाला। जतरा त इ घुरवा बिगाड़ ही देहलस।"
"छोड़ ना माई तू का ये अन्धविश्वास के चक्कर में रहेलु। " हम समझवनी।
"हमके सिख मत द। जवन कहनी ह उ कर।" माई रौद्र रूप देखवली त हम बहारना के घरे चल देहनी।
दुनिया में अइसन बीमारी बाड़ी सन जवना के कवनो इलाज नइखे, अइसन रहस्य बाड़ सन जवना के लोग सुलझा नइखे पवले, अइसन समस्या बाड़ी सन जवना के हल नइखे, पर हमरा गाव के समस्या के हल ना होखे अउरी उहो पंडित रामशरणजी के जीते जी इ कैसे हो सकेला। घुरवा के अपशकुनी के हल भी उ एक दिन निकाल देहले बहारना के रूप में। अगर केहु के जतरा घुरवा के वजह से ख़राब हो जाऊ त बहारन ओके काट देउ । गाव ही नाही जवार के सबसे शुभ आंगछ वाला अगर केहु रहे त उ रहले बहारन।
घुरवा के हमउम्र अउरी नाम में समानता भईला के वावजूद,बहारना भगवान किहा से भाग्य लेके पैदा भईल रहे। चार गो बहिन के बाद बड़ा जतन, भखउती अउरी पंडितजी के पूजा पाठ के बाद उ पैदा भईल रहे अउरी ओके लम्बा जिंदगी खातिर पंडितजी ओकर नाम बहारन तय कईले जवन की ओकर माई बाबूजी सहर्ष स्वीकार क लिहल लोग। ओकर बाबूजी शहर में नौकरी करस अउरी घर में कवनो कमी ना रहे। पंडितजी के उम्मीद से कई गुना ज्यादा दक्षिणा मिलल।
घुरवा के अपशकुनी घोषित भईला के एक साल बाद पंडितजी कवनो अइसन काम से जवना के भईला के उम्मीद ना के बराबर रहे , घर से निकलत रहले अउरी बहारन सामने आ गईले। संयोगवश पंडितजी के काम भी हो गईल अउरी घरे अईला पर बहारना के बाबुजी के भेजल नया धोती कुरता मिलल। फेरु का वोहिदीन से बहारन गाव ही नाही पूरा ज्वार के सबसे शुभ मुह अउरी पउरा वाला आदमी घोषित हो गईले। पंडीजी के पतरा के हिसाब से बहारन आगे चल के अतना बड़हन आदमी बने वाला रहले जइसन की अबतक गाव जवार का पूरा राज्य में ना भईल होई। जब इ खबर बहारन के माई के लगे पहुँचल त पेटी में जेतना पैसा रहे सब लेके आके रामशरणजी के चरणो में साक्षात गिर गईली। कुछ दिन बाद जब इ खबर बहारन के बाबूजी के लगे पहुँचल त दू सेट अउरी धोती कुरता भेजले।
बहारन के त एतना मांग बढ़ गईल जेतना की भगवान के भी ना होई। जतरा बनावे खातिर लोग भगवान के दर्शन करे चाहे ना पर बहारन के दर्शन जरूर करे। निमन -बाउर , हर जगह बहारन ही बहारन। पट्टीदार लोग में अगर मुक़दमा चले त ओकरा फैसला से पहले बहारन के सबेरे दर्शन करे के खबर उ लोग शाम के ही दे आउ। पर बहारना के माई भी बहुत चालाक रहे, अइसन मौका पर उ बहारना के अपना माई किहा भगा देऊ काहेसेकी मुकदमा में एक पक्ष के त हार निश्चित ही रहे अउरी जे हारित उ बहारना के दुश्मन बन जाइत।
बहारन के पूछ खाली जतरा बनावे खातिर ही ना होखे बल्कि खेल में भी हर केहु ओके अपना टीम में रखे चाहे। ओकरा टीम में रहला के मतलब की जीत पक्का हालॉकि अइसन कमहि होखे पर हारला के बाद इ सोचे के मौका केकरा लगे रहे।
पढ़ाई में बहारन के मन ना लागे अउरी उ अक्सर स्कूल छोड़ के फिलिम देखे भाग जाऊ, पर ओकर माई बाबूजी मास्टर साहब से साफ़ कह देले रहे की ओकरा लड़िका के केहु हाथ ना लगावे। एकरा खातिर उ लोग मास्टर साहब के अलग से पैसा देऊ लोग। पैसा से मास्टर साहब त चुप हो जाऊ लोग पर पास होखे खातीर पढ़ाई त जरूरी रहे। परिणाम स्वरूप बहारना १०वि में २ साल फेल हो गईल अउरी फेरु पढ़ाई छोड़ देहलस। स्कूल छोड़त छोड़त उ सुरति , गुटका अउरी सिगरेट के इस्तेमाल बढ़िया से सिख गईल रहे। दारू भी कभी कभी पि लेउ। अब फुल टाइम उ मोड़ पर ढकेलुवा के पान के टंकी पर मिले। सवेरे ६ बजे आ जाऊ अउरी शाम तक रहे। जहा ओकरा इ जिन्दगी से ओकरा माई के कवनो तकलीफ ना रहे, काहे से की ओकरा खातिर ओकर जियल ही काफी रहे त वही गाव के लोग अब काफी खुश रहे। जतरा बनावे खातिर अब एडवांस में सुचना देहला के जरुरत ना रहे। जेकरा भी जतरा बनावे के होखे, ढकेलुवा के टंकी पे आके बना लेउ।
बहारन के शुभ पउरा के डिमांड क्रिकेट में भी रहे अउरी हमनी के ओके हर मैच में लिया जाई जा। ओकरा के लिया गईला के एगो अउरी फायदा रहे। ओकरा नया साइकिल पर सारा सामान -बैट ,पैड ,ग्लव्स बाधा जाऊ अउरी उ ख़ुशी ख़ुशी ले जाऊ। बस ओकरा माई से आँख बचा के इ सब करे के पड़े नात अगर उ अपना लइका के केहु दूसरा के काम कईल देख लेउ त गारी से भर देऊ। पर हमरा जरुरत होखे त बहारना के जाए के इजाजत रहे, ओकर माई हमरा के कबो कुछु ना कहस, काहे से की हमरा माई के बहुत बढहन अहसान रहे उनका ऊपर पर। बहारना के इया जब ओके माई के घर से निकाल देले रहली त पूरा गाव में एगो हमार माई ही अइसन रहे जेकि उनके जाके बेइज्जत कइली अउरी वापस घर में लेबे पे मजबूर कइली। तबसे बहारना के माई बिना खरीदल गुलाम बन गईल रहली हमरा माई के अउरी घोर अन्हरिया में भी माई के बुलावा पर नंगे पाँव दौड़ के आवस।
बहारना के क्रिकेट खेले त ना आवे पर हमनी के ओके अपना टीम में जरूर राखी जा। कारण एकमात्र -ओकर पउरा बढ़िया भईल पर बदला में ओकरा के सुरति अउरी गुटखा खियावे के पड़े तब उ जाऊ। फील्डिंग में त उ बॉउंड्री पर खड़ा होखे इ वजह से चोट लागला के डर ना रहे पर बैटिंग में दू तीन बार ओकर भूभुन फूटल रहे काहे से की उ बैट के जगह अपना मुह से ही बॉल के मारे के कोशिश करे। एक मैच में जब ओकर गेंद से कान छिला गईल त ओकरा खातिर हेलमेट ख़रीदे के फैसला भईल काहे से ओकरा बिना खेले के जोखिम हमनी का ना उठा सकत रहनी जा। ओकरा टीम में रहला से अइसन ना रहे की टीम हारे ना पर जीत का सारा श्रेय बहारना के अउरी हार के दोष पूरा टीम के दियावु।
एक बार जरुरी काम से जब उ नानी किहा चल गईल अउरी गाव में कवनो दूसर लड़िका ना मिलल सन त हमरा जिद पर घुरवा के टीम में शामिल कईल गईल । जवन घुरवा कभी बैट ना पकडले रहे उ जीते के लास्ट २० रन में से अकेले १० रन बना देहलस पर आखिरी खिलाडी के रन आउट भईला वजह से हमनी ले मैच हार गईनी जा अउरी फेरु उहे भईल जवना के उम्मीद रहे। सब केहु हार के जिम्मेदार घुरवा के ठहरावल अउरी कुछ कुछ ओकर दोष हमरा के भी दियायिल। तय भईल की अगर बहारना ना रही त मैच खेले ना आवल जाई पर घुरवा के कबो ना लियावल जाई।
बहारना खाए खातिर घरे आयिल रहे, घर पर ही ओसे अउरी ओकरा माई से मुलाकात हो गईल। हम माई के फरमान बता दिहनि अउरी बहारना के माई ख़ुशी ख़ुशी हमरा साथै ओके भजे देहली। घर पहुचनी त नया दूध आ गईल रहे अउरी माई ओके गोइठा के आग पर चढ़ा देले रहली गरम होखे खातिर। पूरा बात बहारना के माई समझा दिहली अउरी ओके सबेरे ९ बजे आवे के आदेश देहली। तय भईल की उहे हमके स्टेशन पे ले जाके छोड़ भी दी।
"अरे माई अतना सकराहे जाके का करेब हम स्टेशन ?" हम उनका निर्णय पर विरोध कईनी "ट्रैन त १२ बजे बा। "
"तू चुप रह। पंडीजी ९ बजे के मुहूर्त ही बतवले बाड़े निकले खातिर। "
अब कुछ बोलल बेकार रहे। एक त माई के फैसला अउरी ओइपर पंडितजी के निकालल शुभ मुहूर्त, एकरा बदलला के कवनो गुंजाइश ही ना रहे।
घर से निकले के समय ९ बजे रहे, माई बहारना के सवेरे ६ बजे से इन्तजार करे लगली। कई बार उनका मुह से निकल जाऊ की अबे ले ना आयिल। तब हमके उनके याद दिलाई की ९ बजे जाए के बा अउरी उनका रहत होखे।
पर इ का, ९ बज गईल बहारना ना आयिल , फेरु सवा ९ हो गईल ना आयिल। माई के त ब्लड प्रेशर काफी ऊपर हो गईल।
"कहा मर गईल। जाके बोला के आव। सवा ९ हो गईल अबे ले ना आयिल। " माई आदेश सुनवली अउरी हम ओकरा घर के तरफ भगनी।
वैसे त चिंता के कवनो खास बात ना रहे। काहे से की स्टेशन ४ km दूर रहे अउरी साइकिल से ज्यादा से ज्यादा आधा घंटा लागित पर माई के एतना चिंता के वजह पंडित जी के बतावल शुभ मुहूर्त के बीतल रहे। उनका हिसाब से ९ से साढ़े ९ तक ही घर से निकले के शुभ मुहूर्त रहे। बहारना के घरे त चिरई चुरुंग के भी पता ना रहे। घर पर बड़का ताला लटकल रहे। अब हमरो चिंता भईल की कवनिगा जाएब। ओकरा पडोसी से पता चलल की आधी रात के ओकरा नानी के तबियत ज्यादा सीरियस हो गउवे अउरी एहिसे ओकर पूरा परिवार नानी किहा चल गउवे।
घरे पहुंच के माई से जब इ बतवनी तब त उनकर टेंशन अउरी बढ़ गईल। बहारन से लेके उनकर माई, दुनू जाना के खूब सुनवली। फेरु अब नया आदमी के तलाश भईल हमके स्टेशन पहुँचावे खातिर। पर ओ बेरा अधिकतर लोग गाव से बाहर चल गईल रहे। लड़िका कुल पढ़े अउरी काम वाला काम पर। घुरवा के छोड़ के केहु साइकिल वाला ना रहे। बैग लेके ४ km पैदल चलल गर्मी में हमरा बड़ा दुरूह लागे अउरी घुरवा के साथे जाए के माई इजाजत दिहे एकर उम्मीद बिलकुल ना रहे। फेरु भी हम एगो कोशिश करे के सोचनी।
"माई घुरवा के साइकिल बा। " हम डेरात डेरात कहनी " अगर तू कहतू त हमके उहे छोड़ आयित। "
"ओकरा साथे गईला से बढ़िया बा की तू पैदल चल जा। "
"हम ए गर्मी में पैदल ना जाएब। एकरा से बढ़िया हम परीक्षा छोड़ दे तानी। " अब हमके भी खिस बर गईल।
"परीक्षा छोड़ चाहे, घुरवा के साथै जा, परिणाम त एकहि होई।" उ मायूसी से कहली। वैसे भी अब उनका परीक्षा में पास भईला के उम्मीद खतम हो गईल रहे, काहे से की पंडितजी के बतावल शुभ मुहूर्त के समय बीत गईल रहे।
"ठीक बा तब हम परीक्षा छोड़ दे तानी। " हम शर्ट के बटन खोलत कहनी।
"ठीक बा जा बोला लियाव। " उ निराशा से कहली।
घुरवा के त पैर जमीं पर ना पडत रहे जब उ सुनलस की माई ओके बोलवले बाड़ी। साइकिल लेके १०० के speed में आयिल। माई बिना मन के ओके समझवलि की ले जाके बढ़िया से ट्रैन पे चढ़ा देबे के बा। स्टेशन जाके, घुरवा हमार खूब खातिरदारी कईलस। अपना पैसा से ठंडा पियवलस अउरी लिट्टी चोखा भी खियवलस। फेरु ट्रैन आयिल अउरी अच्छा से बैठ गईनी।
परीक्षा भी उम्मीद से बढ़िया भईल अउरी फेरु उ दिन भी आ गईल जब प्रवेश परीक्षा के परिणाम आयिल। हमरा पास भईला के खबर सुनके माई के पैर जमीं पर ना पडत रहे। उनका जिंदगी के सबसे बड़का सपना रहे की उनकर लड़िका इलाहाबद यूनिवर्सिटी में पढ़े। अब उ सपना सच होखे के समय आ गईल रहे। माई सारा देवी देवता लोग के गोड़ लागली अउरी फेरु परीक्षा में पास भईला के सारा श्रेय पंडितजी के झोली में डाल दिहली। घुरवा के अउरी हमार मेहनत कूड़ा के ढेर में गईल।
माई पहिले से भखले रहली की अगर हम परीक्षा में पास हो जाएब त सत्यनारायण भगवान के कथा कहवइये अउरी पूरा गाव के खियइहे । रामशरणजी के बुलाके कथा के दिन निकला गईल। कथा के दिन भोरे भोरे भुटेलिया पूरा गाँव के कथा अउरी खाए के निमंत्रण दे आयिल, घुरवा के घर छोड़ के। बहारना सबेरे ६ बजे से ही आके बैठ गईल रहे। माई एतना बढहन जग करत रहली अउरी एकर ठीक से सम्पन्न भईला के लेके बड़ा चिंता रहे। गाँव में कई बार देखल रहे की लोग बड़का बड़का जग ठानले पर अंत में पता चलल की खाना ही खत्म हो गईल अउरी बहुत सारा लोग बिना खइले गईल। कई बार जवार के नामी हलवाई भईला के बाद भी दाल जर जाउ या सब्जी में नमक मिर्चा ज्यादा हो जाओ,कभी कभी चावल कच्चा रह जाउ अउरी प्रशंशा के जगह थुथु होखे। ए वजह से माई रमाशंकर हलवाई के पहिले ही हिदायत दे देले रहली की कवनो उच नीच ना होखे के चाही । ऊपर से शगुन खातिर बहारना के बोला के बिठा दिहल रहे। बहारना के माई भी वोइदीन बड़ा लजाईल रहे जब हमके उ स्टेशन ना छोड़ पवले रहे अउरी ओके भरपाया खातिर उहो सबेरे से अपनी लईकिन कुल के साथै काम में हाथ बटावत रहे। बाहर बहारना हाथ बटावत रहे।
रामशरण जी १० बजे आ गईनी अउरी फेरु कथा प्रारम्भ हो गईल। आँगन सब मेहरारू अउरी बच्चा कुल से भर गईल रहे। पर इ का पाचवा अध्याय खत्म होते ही रसोई घर से बड़का धुँआ उठ गईल अउरी देखते देखत तेज आग के लपट उठे लागल। सब लोग जान बचावे खातिर बाहर भागल। हम बाहर ना जाके रसोई घर के तरफ चल गईनी आग के पता लगावे। पर ओइजा अतना ज्यादा धुँआ रहे की कुछु लऊके ना। ढेर सारा धुँआ हमरा अंदर घुस गईल अउरी बाहर अंगना में आके मूर्छित होके गिर पड़नी। आग दलानी में पहुंच के विकराल रूप ले लेले रहे। बहुत सारा बोरी अउरी बिछावन राखल रहे वोइजा । मिटटी के तेल के डब्बा भी रहे ओइजा। ओइसे आग अउरी भड़क गईल। सब लोग बाहर से तमाशा देखत रहे पर केहु के कुछ समझ में ना आवे की का गईल जा। दो तीन मिनट बाद माई अउरी गाव के लोग के हमरा अंदर भईला के बात पता चलल। अब त माई लगली छाती पिटे अउरी अंदर जाये के कोशिश करे। दलानी में आग एतना तेज रहे की ओइमे गईला के मतलब मौत निश्चित रहे। पर बेटा खातिर दुनिया के कवनो माई के मौत के का भय होइ। उ बार बार कोशिश करे पर लोग जोड़ से पकड़ लेले रहे।
"रे बहारना ते जो ना। " माई गिड गिडाईली "तोर त पउरा शुभ ह। ते हमरा लाल के बचा लेबे। "
"का कहतानी ए बाबू के माई " बहारना के माई कहली " राउर हमरा ऊपर अहसान बा पर एकर मतलब इ त ना की हम अपना कुल के दिया बुझा दी। "
उ कहिके अपना बेटा के लेके चल गईल। माई बेहोश हो गईली। गाव के मर्द लोग बाल्टी से पानी फेके लागल अउरी गाव के सबसे योग्य अउरी बुद्धिमान आदमी रामशरण पंडित आग के बुझावे खातिर एगो कोना में मंत्र पढ़त रहले पर आग पर एकर कवनो असर ना होखे अउरी उ अउरी प्रचंड होत जात रहे।
आग के खबर घुरवा के मिलल त उ बाई के झोक में आयिल। जब ओके ई पता चलल की हम अंदर बानी तब त ओकर खून सूख गईल। आव देखलस ना ताव, तुरंत ही ओइजा रखल कम्बल के गीला क के ओढलस अउरी दलानी में कूद गईल। कम्बल गिला भईला के वजह से ओइमे आग ना लागल अउरी उ अंगना में पहुंच गईल। फेरु हमके भी कम्बल में घुसा के अउरी बाहर निकाल ले आयिल। हमके जिन्दा देख के गाव के लोग के त विश्वास ही ना भईल। घुरवा जिंदाबाद के नारा से गाव गूज गईल। हल्ला से माई के मूर्छा टूटल अउरी हमके जिन्दा घुरवा के अक्वारी में देखके उनका सब समझ में आ गईल। मुह से त कवनो शब्द ना निकलल, उ दौड़ के घुरवा के गोड पकड़ लेहलीं। उनका चेहरा पर जवान ख़ुशी अउरी कृतज्ञता के भाव उठल ओके शब्द में बयान कईल मुस्किल बा।
"धन्य बड़े भगवान की राजू सही सलामत बाड़े। बढ़िया जतरा बनवला के इहे फल होला। " पंडित रामशरण कहले।
"बंद करी आपन ढकोसला ए पंडीजी। " माई खीस से कहली " अगर राउर जतरा से सब बढ़िया होइत त इ आग ही काहे लगित। हमार लाल मौत के मुह में काहे जइते। इ जतरा पतरा सब बेकार बा। सब से उत्तम मनुष्य के कर्म बा। जवना घुरवा के रउवा अपशकुनी कहके गाव में कुजात छाट देहनी, उ आज हमरा बेटा के नया जिंदगी देहलसिह अउरी जवना बहारना के रउवा गाव के सबसे बढ़िया पउरा वाला बनवनी, आज ना त ओकर पउरा ही काम कयिलसिह नाही उहे। "
इ बात त पंडितजी पहिले सही जानत रहले पर एके स्वीकार कईला के मतलब आपन एतना साल के प्रभाव के खत्म कईल रहे।
"तहरा इ ना बुझाई। " पंडितजी कहिके आपन पोथी पतरा कांख में दबा के ओइजा से निकल गईले।
पर माई के साथे अब गाव के लोग के भी आँख पर से पट्टी हट गईल रहे। वोइदिन के बाद अधिकतर लोग बहारना के देख के जतरा बनावल छोड़ दिहल अउरी घुरवा से घृणा कईल। माई के घुरवा के प्रति पुरनका स्नेह वापस लौट आयिल रहे अउरी अब उ अक्सर उनका हाथ के बनल खाना खाए लागल।
आज ए घटना के बीस साल से ज्यादा बीत गईल बा अउरी बहुत सारा बदलाव आ गईल बा। घुरवा अब घूरा सेठ हो गईल बा अउरी पूरा गाव जवार अब ओके घूरा जी कहिके बोलवेला। घुरवा ओ घटना के बाद से किराना के दोकान खोल दिहलस अउरी उ अतना चलल की मोड़ पर ओकर बड़हन शॉपिंग काम्प्लेक्स खुल गईल। चार चारगो बोलेरो बाड़ी सन। जब ओकर सौतेला भाई ओकरा माई बाबूजी के घर से निकल देहलसन, तबसे ऊ ओ लोग के अपना इहा रखले बा। जवन गाव के लोग ओकर मुह ना देखे जतरा बिगड़ला के डर से, ओ लोग के जतरा घुरवा से वजह से बनेला। गाव के अस्सी प्रतिशत लोग के ऊपर ओकर उधारी बा, खासकर पंडित रामशरणजी के। अब उनकर इलाका में उ प्रभाव नइखे ना कवनो आमदनी के साधन। घुरवा के वजह से उनका दुनू बेरा के खाना मिलेला। दू चार महीना पर कबो कही बढहन दान दक्षिणा मिल जाला त कुछ घुरवा के दे आवेले। पर उ तगादा कभी ना करेला।
बहारना अब बड़का पियक्कड़ बन गईल बा। ओकरा चिंता में ओकर माई बाबूजी ऊपर जा चुकल बा लोग अउरी उ आपन सारा जर जमीन दारू के भेट चढ़ा देले बा। ओकरा मारला से तंग आके, ओकर मेहरारू भी भाग के दूसर शादी क लेहलस अउरी अब बहारना दिन भर बोखरन के दोकान के अगल बगल मण्डराला। कभी केहु शराबी के दया आ जाला त दू चार घुट मिल जाला। अगर गाव के कई लोग के कवनो नया काम से जात समय ओकर दर्शन हो जाला त लोग ओके खूब कोसेला अउरी जाके घूरा सेठ के दर्शन क के आपन जतरा फेरु से बनावेला। भले पंडितजी के पूछ ख़तम हो गईल बा पर उनकर दिहल सिख के असर कई लोग ऊपर अब भी बा।
माई अब ऐ दुनिया में नइखी अउरी हम नौकरी करे शहर में आ गईल बानी पर हमरा प्रति घुरवा के उहे मान सम्मान बा। हमरा खातिर उ अभियो घुरवा ही बा। हफ्ता में जरूर एक बार फ़ोन करेला अउरी हम जब भी गावे जानी त ओकर एगो बोलेरो हमरा सेवा में चौबीसो घंटा खड़ा रहेला। खाना भी अधिकतर हम ओकरा इहा ही खानी।
धनंजय तिवारी