अभी लगभग तीन महीने पहले ही तो मुरदहिया तिवारी को खुशी भरी तकलीफ हुई थी। खुशी इस बात की कि सामने बैठे उनके क्रांति वीर आलोक जिन्दगी को ठेंगा दिखाते रेंड़ पीटते पिटाते सवर्ण जिन्दगी की धज्जियाँ उड़ा रहे थे।
स्वर्ण हेजेमनी का शिकार आलोक लुक लुक मिस्टर तिवारी कहकर मुरदहिया तिवारी की तुर्श धार को भोथर करने की हेहरई का नोबेल पुरस्कार विजेता सी मुस्कान बिखेर कर कह रहे हैं-
सच्ची किताब हूँ मुहब्बत की पाकिस्तान तक छपा हूँ मैं ।
साहित्य में रूचि रखने वाला मुरदहिया तिवारी को स्वर्ण दलित चेतना का दुर्दमनीय चंगेज मानता है । अनुभवजन्य शोषित स्वर्णदलित विचित्रवीर्य लावा जब मुरदहिया में खौलता है तो उनका लोकतांत्रिक चरित्र पाकिस्तान काबूल चीन अमेरिका होते हुए भारत के उत्तम प्रदेश के बलिया जिले के रतसर कस्बे में आलोक के घर वैसे ही घुस जाता है जैसे सिनेमाई आलोक में निर्वसना बबीता।
मुरदहिया रह रह कर भीषण गगन भेदी किरान्ति करते हैं। उनकी किरान्ति का कीड़ा उनसे पूछ लेता है -ढूँकी का ?
इधर कुछ दिनों से मुरदहिया की किरान्ति में लगन के मौसम ने बाधा डाली है।
आज किरान्ति का भीषण आग में मुरदहिया भभक रहे हैं उखाड़वाद, पछाड़वाद से कहता है -किरान्ति ! किरान्ति!
तब मुरदहिया की क्रूर आग लिए निकल पड़ते हैं ।
बड़े बड़े पेड़ काँपने लगते हैं । चिरई चुरुंग थर थर कांपते हैं । पौधे किरान्ति के पूर्वानुमान से मरूआ जाते हैं चकुले खोड़रा में लुका जाते हैं ।
सारा बिहार यूपी दहल जाता है, रोम रोम सिहर जाता है टोले मुहल्ले फेसबुक पर खलबली मच जाती है ।
इस अद्भुत क्रांति के साक्षी बने लोग तब सकून पाते हैं जब
उनके नासिका रंध्रों तक क्रांति महसूस होती है ऐसे में लोगों के स्वास्थ्य के लिए डा की टीम लगा दी जाती है ।
आपातकाल की तरह ।
किरान्ति के बाद मुरदहिया दर्दे सीवान को बिलखता छोड़कर दाहा बाबा की तरह झूमते हुए लौटते हैं तो उनके मुखमण्डल दिग्विजयी संसार का सुकून होता है ।
आज मुरदहिया के आगमन से आलोक हर्षित हैं ।
मुरदहिया का प्रेमसागरी ज्ञान से आलोक को बबीता रूपी बैतरनी पार करने की आशा बधी है।
मुरदहिया कहते हैं देखो बाबा छोटी छोटी किरान्ती से आदमी का बल घटता है । सरकार पर दबाव भी नहीं बनता ।
बड़ी किरान्ति करो !
तुम आज भी नरकट,दूधिया,भरूकी आ पटरी के सहारे क्रांति करना चाहते हो !
भकचोन्हरई छोड़ दो। जमाना लिखो फेंको का है ।
आलोक भोंकर भोंकर कर रोने लगे। मन कर रहा था कि इन्हीं पैरों को पकड़ कर बबीता रूपी बैतरनी पार कर लें।
मुरदहिया कड़क कर डपटते हैं -उठ! कापुरूष,स्त्रैण तुम्हारी चरण चांपने की आम आदत ने ही तुम्हें खास चाँपने नहीं दिया । मैं आज तुम्हें आखिरी क्रांति का आदेश देता हूँ ।
सवर्णशोषित युग सत्य आलोक की पद दलित चेतना जागती है ।
ऐ मुरदहिया ! मेरी अंतिम क्रांति यात्रा को काँधां दे दो ना !
गहन जलकुंभी के जल में फसा जीव जैसे छटपटाहट में
जल पी लेता है वैसे ही मुरदहिया ने हुंकारी भर कर मानों तिलाक जल पी लिया और खाँसते हुए बोले- चलो आज विश्व की सबसे बड़ी क्रांति होगी। सारा देश दहल जायेगा।
बबीता पुराण के स्वर्ण पदक बिजेता बबीतेश मुस्किया कर
बदरूद्दीन चाचा के यहाँ से आग्रह पर सिलवाया उस दरी के कपड़ा वाला मोटका जींस पैंट ढूँढते है जिसके पिछवाड़ा में पाँच पोकिट लगा है और सीलने में पाँच सुईयाँ शहीद हुई हैं ।
लेखक-नरेंद्र पाण्डेय
बलिया