-"हैलो"
अपने अभी तक जीये जिंदगी में पहली बार मोबाईल पर किसी महिला की आवाज सुनकर अमरेंद्र कुमार सिंह के दिल का लाईट जल गया ।और अपने प्रारब्ध में किये सत्कर्मों के प्रतिफल के रूप में यह सुनहला अवसर उन्हें मोबाईल पर पहला टेलीफोन काॅल के रूप में मिला था ।वह इस अवसर को किसी भी तरह चूकना नहीं चाहते थे ।गहरी साँस लेते हुए अपने आँखो में अथाह प्रेम लिए हुए उन्होनें मोबाईल पर उस महिला वाॅयस का प्रतिउत्तर दिया -
-" यस हैलो ।"
-जी क्या मैं समीर से बात कर सकती हूं, ?
-अमरेन्द्र को यह समझते देर न लगा कि यह रांग नम्बर है ।अमरेन्द्र चाहते तो यह कहकर फोन डिसकनेक्ट कर सकते थे कि "साॅरी मैम यह आपने गलत नम्बर डायल किया है"।
मगर उस कोयल सी आवाज का नशा उनके सर चढकर बोलने लगा ।वो किसी भी कीमत पर इस आवाज को अपने हृदय के सिंहासन का ताज देना चाहते थे ।
-"जी अभी तो समीर घर पे नहीं हैं ।शाम को फोन कीजिएगा मैं बात करा दूँगा ।"
-एक बात पूछूँ? ?
-हां जी पूछिए ।
-आप कौन हैं और समीर से आपका क्या रिश्ता है?
-मैं सारिका हू। हम दोनों अच्छे फ्रेंड हैं ।आप कौन हैं ? और समीर का नम्बर आपके पास कैसे??
-मैं उनका छोटा भाई हूँ ।
-"ओके ।"
उम्र का अर्धशतक पार करने वाले अमरेन्द्र अपने को उस समय बाईस वर्ष का महसूस करके फूले नहीं समा रहे थे ।
लगातार उनके के नम्बर पर उस अनजान काॅल के आने का सिलसिला चल पड़ा ।सुबह फोन आता तो शाम का और शाम में फोन आता तो सुबह समीर से बात कराने का बहाना कर देते । अब सारिका भी इनसे ही बात करने में रूचि लेने लगी ।
-अमरेन्द्र जी ! आप क्या करते हैं?
-"मैं थानेदार हूँ ।"
सारिका को पटाने के लिए अमरेन्द्र पहरेदार से थानेदार तुरंत बन बैठे ।
-अरे वाह! तो मुझे हवालात में बंद कर दीजिए ।
-आपको अपने दिल में हमेशा के लिए कैद कर लूँगा जी ।
दोनों के बीच टेलीफोनिक बातचीत दस सेकेंड से शुरू होकर दस-दस घंटे तक होने लगी ।
सोते-जागते,खाते-पीते,उठते-बैठते सारिका की काल्पनिक तस्वीर अपने दिल में बसाये अमरेन्द्र हर वक्त हसीन स्वप्न में ही खोये रहते ।
जो अमरेन्द्र पहले दो महीने पर बाल दाढ़ी बनाते थे वह अब दिन में दो बार सेविंग और हफ्ते मे दो बार अपने सर के बाल सेटिंग करवाने लगे । उनके रहन-सहन में भी काफी बदलाव झलकने लगा ।पहले धोती-कुर्ता पहनने वाले अमरेन्द्र अब चौबीस घंटा जिंस टी-शर्ट पहनकर गाय का गोबर फेंकने से लेकर लाठी लेकर पहरेदारी तक करने लगे ।उनके अंदर अचानक हुए इतना बदलाव देखकर उनकी धर्मपत्नी, चित्कबरी देवी, अक्सर चिंतित रहने लगी थी । गाँव का शायद ही कोई मंदिर छुटा हो जिसमें इनके पूर्ववत रूप आने के लिए उन्होंने मन्नत न मांगी हो ।
एक दिन अमरेन्द्र ने साहस करके अपने मन की बात सारिका से कह ही दिये ।
-"सारिका जी ।मैं आपसे बहुत प्यार करता हूँ "
-सच? ?
-जी ।मुझे आपकी आवाज बहुत अच्छी लगती है ।समीर नाम का कोई सख्स नहीं है ।मेरे पास आपका रांग नम्बर आया था ।
-क्या?????
नहीं ऐसा नहीं हो सकता ।मैं सिर्फ समीर से प्यार करती हूँ ।
यह सुनते ही अमरेन्द्र की सीटी- पीटी गुम हो गया ।वह तुरंत गिडगिडाते हुए कहने लगे -"ऐसा मत कहो प्लीज ।तुम जो कहोगी मैं वो करूंगा ।मगर मुझसे ऐसे मत रूठो।"
-ठीक है ।मेरे फोन में 1000 रूपये का रिचार्ज करवा दो।
-"इतनी छोटी सी बात ! बस अभी करवा देता हूं ।"
अमरेन्द्र को एक नई आशा की किरण दिखता प्रतीत हुआ ।उस दिन वो बहुत खुश थे ।सारिका फोन पर जब भी जिस चीज का डिमांड करती उसे यथाशीघ्र अमरेन्द्र पूरा कर देते ।
एक दिन वो मोबाईल रिचार्ज के दुकान में जैसे ही अपनी काल्पनिक प्रेयसी, सारिका, के मोबाईल में पैसा डलवाने के लिए गये वहाँ का दृश्य देखकर उनके होश उनके सर के आधे बाल की तरह उड़ गये मानों उन्हें ग्यारह हजार वोल्ट का करंट लग गया जब दुकानदार को एक उनके ही मुहल्ले लड़का '"छिलटुआ'" अपना नम्बर रिचार्ज करने के लिए दुकानदार, प्यारेलाल पचीसीया को जोर-जोर से बोलकर रिचार्ज वाले रजिस्टर पर लिखवा रहा था ।
-'अरे! यह तो सारिका का मोबाईल नम्बर है'।
उनका मुँह ठीक वैसे खुला का खुला रह गया जैसे चोरी के बाद दुकान का शटर । इतना सुनते ही
उनके सर पर आसमान टूट पड़ा ।
अब अमरेन्द्र को पूरा खेल समझ में आ गया यह लड़का,'छिलटुआ' ही सारिका बन कर अमरेन्द्र से अब तक टाईम पास कर रहा था ।छिलटुवा का आवाज हूबहू लड़की की तरह था और वह ऐसे ही लड़की बनकर पुरूषों को बेवकूफ बनाया करता था।
लड़की से फोन पर बात करने का अमरेन्द्र का स्वप्न धरा का धरा ही रह गया ।
एक पल के लिए उनका मन किया कि गुस्से में अपने सर का बाल नोच लें ।मगर जैसे ही वे अपने सर पर हाथ रखे,तब इनको अचानक ख्याल आया कि सर पर तो पहले से ही आधे बाल ही गायब हैं ।तभी रिचार्ज करने वाले दुकानदार के रेडियो में विविध भारती कार्यक्रम के तहत फरमाईशी यह गाना बजने लगा
"दिल ऐसा किसी ने मेरा तोड़ा ,बर्बादी के तरफ ऐसा, ,,,,,,,,,,,,,।"
अपने टूटे हुए मन से जैसे ही अमरेन्द्र दुकान के सीढ़ी से अपना पैर नीचे रखे, उनका पैर सड़क पर सोये एक काटाह कुत्ते पे पड़ गया, फिर क्या था ।कुत्ते ने उन्हें दौड़ा लिया । 180 के स्पीड में भागकर उन्होंने अपने आप को उस कुत्ते से बचाया ।
नीरज मिश्रा
बलिया (यू पी)।।