खूब दनादन कांड हो रहे हैं, और फनाफन लाभ लिया जा रहा है। मध्य प्रदेश में चार लोग ठोक दिए गए। बहुत पहले बॉलीवुड की मसहूर अदाकारा महजबीं कह गयीं थी- "मौत तुम एक कविता हो"। मध्यप्रदेश वाली कविता भी बड़ी धांसू बन पड़ी है, सब इसे अपने अपने राग में गा रहे हैं। एक दल वाले कह रहे हैं कि मरने वाले किसान थे। उनका किसान प्रेम इतना जाग उठा है, कि उस दल के सभी नेता आसाढ़ में गेहूं की खेती करने के लिए जीन्स पहन कर उतर गए हैं। दूसरी तरफ दूसरे दल के लोग कहते हैं, हट! ई ससुरे किसान कहाँ थे, ये तो कांग्रेसी थे। किसान कहीं जीन्स पहनता है? बात सही भी है, भारत के किसान की यह मजाल की वह जीन्स पहने? अरे इस देश के नेता मर गए क्या कि किसान जीन्स पहन लेंगे? जब तक इस देश में लोकतंत्र है, तबतक किसी किसान की इतनी औकात नहीं कि वह ब्रांडेड जीन्स पहनने की सोच सके। उसकी खाल उधेड़ दी जायेगी।
अभी ताजा खबर यह है कि एक युवा ओजस्वी नेता ने यह कहा है कि वे "पाटीदार" थे। बात उनकी भी सही है। लाश आखिर उनकी जाति की है, तो चिता पर रोटी दूसरे क्यों सेंके? रोटी सेंकने का पहला अधिकार उनका है। मैं भी कहता हूँ- वे "पाटीदार" थे।
वैसे मैं कब से सोच रहा हूँ, कि काश! इस देश का कोई नेता यह कहता कि "वे आम आदमी थे और सत्ता के जाल में फँस कर मर गए"। पर अभी हमारा लोकतंत्र इतना नाकारा नहीं हुआ कि नेता सच बोलने लगें।
वैसे जिस कुशलता और तत्परता से मध्यप्रदेशीय किसान बसों को फूंक, और दुकानों को तोड़ रहे थे, वह देख कर लगता है कि मध्य प्रदेश में सचमुच खूब विकास हुआ है। एक हमारे पूर्वांचल के किसान हैं कि दूसरे के खेत में भी बकरी फसल चर रही हो तो साईकिल से उतर कर भगाने लगते हैं। जरा सी भी बर्बादी बर्दास्त नहीं कर सकते कम्बख्त। बस फूंकना तो दूर, गधे साईकिल का टायर भी बचा के रखते हैं कि बच्चा डगरौना खेलेगा। चार गांव दूर तक आग बुझाने के लिए पैदल दौड़ जाने वाले हरामखोर आग क्या खाक लगाएंगे? निरे मुर्ख हैं यहां के किसान। मैं नितीश कुमार और योगी जी से मांग करता हूँ कि वे पूर्वांचल के किसानों को कुछ दिन की ट्रेनिंग के लिए मध्य प्रदेश भेजें ताकि उन्हें उन्नत और आधुनिक किसान बनाया जा सके।
उधर केंद्र सरकार ने कुछ बड़े मीडियाकर्मियों के घर पर छापा डलवा दिया। बताइये भला, कहीं ऐसा अत्याचार होता है? मुझे यह सरकार मिलती तो उसकी कॉलर पकड़ कर पूछता- क्यों बे सरकार, तेरी यह मजाल कि तू लोकतंत्र के चौथे खंभे की तरफ आँख उठा कर देखे? बोल, छापा क्यों डलवाया? छापा आम आदमी पर डाला जाता है। डॉक्टर, इंजीनियर, आईएस, आईपीएस, क्लर्क, और ज्यादा से ज्यादा नेता पर डाला जाता है, पर किस संविधान में लिखा है कि पत्रकार पर छापा डाला जाएगा? इस हरामखोर सरकार ने तो आपातकाल लगा दिया, लोकतंत्र की हत्या कर दी। अरे माना कि मीडियाकर्मी थोड़ी मलाई चाट लेते हैं, हर बड़े एडिटर टाइप कर्मी का पांच साल में अपना चैनल खुल जाता है और वे अरबों में खेलने लगते हैं, पर इसका मतलब यह थोड़ी न हुआ कि उनपर छापा डाल दिया जाय। मीडियाकर्मी पोप जॉन पॉल की तरह पवित्र हैं, असद्दुदीन ओवैसी की तरह सेकुलर हैं और महबूबा मुफ्ती की तरह राष्ट्रवादी, उनपर आँख उठाना लोकतंत्र पर गोली चलाने जैसा है। इस बेवकूफ सरकार को कोई यह बात समझाता क्यों नहीं?
आज पटना में इंटर मेँ फेल हुए छात्रों के संगठन ने रैली निकाल कर प्रदर्शन किया। उनका जोश देख कर मेरा मन खिल उठा। इतने यशश्वी और ओजस्वी बच्चे, जिन्होंने इंटर में ही अपना संगठन बना लिया, वे ही आगे चल कर उच्च कोटि के नेता बनेंगे। पता नहीं किस मुर्ख शिक्षक ने उन्हें फेल कर दिया। इस परीक्षा में मेरे भी दो विद्यार्थी शामिल हुए थे और दोनों सत्तर फीसदी से अधिक नम्बर ला कर पास हुए हैं। मैं उस दिन से सटका ले कर हरामखोरों को ढूंढ रहा हूँ, मिलते तो पूछता कि पास क्यों हो गए बे? फेल होते तो बहुमत के साथ होते। कल जा कर नेता बनते तो मुझे भी कुछ साहित्य अकादमी टाइप कुछ अवार्ड दिलवा देते। पास हो कर बेडा गर्क कर दिया कम्बख्तों ने। मुझे लगता है जिस मास्टर ने इनकी कॉपी जाँच की है, जरूर वह गधा रहा होगा। ऐसे गदहों को फाँसी होनी चाहिए।
मैं पॉल दिनाकरन से प्रार्थना करूँगा कि भारत में ऐसे ही कांड होते रहें, ताकि रोटियां सिंकतीं रहें।
सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।