असित कुमार मिश्र बेवफा है।

Update: 2017-05-22 14:59 GMT
एक पढ़ा लिखा और काबिल युवक जब नौकरी मांगता है, तो बहुत क्रोध आता है। अमां मियां, ईश्वर ने आपको एक अच्छे, शिक्षित, सम्पन्न और शोषक परिवार में जन्म दिया, सरकार ने आपके जिले में उच्च शिक्षा के अनेकों केंद्र दिए, जिससे आपने उच्च योग्यता और डिग्री हासिल कर ली, और इतने एहसानों के बाद भी जब आप सरकार से नौकरी मांगते हो तो आपको शर्म नहीं आती? अरे नौकरी क्या पढ़े लिखे लोगों के लिए होता है? आपको उच्च शिक्षा क्या इसी के लिए दिलवायी गयी कि आप नौकरी मांगो?
सरकार स्वरोजगार के लिए कितनी सहायता दे रही है यह आप नहीं जानते? कुछ स्वरोजगार कर लेते। किसी सज्जन ने सलाह दी कि कि मुर्गी फार्म खोल लो, खोल क्यों नहीं लेते? तनिक सोच कर तो देखो, एक बीएड डिग्रीधारी युवक जब मुर्गियों के मध्य रहने लगेगा तब मुर्गियों का बौद्धिक स्तर कितना उच्च हो जायेगा। अपने देश में मनुष्यों से ज्यादा मुर्गियों के बौद्धिक विकास की आवश्यकता है। सदैव पुक पुक पुक पुक करने वाली अभद्र मुर्गियां जब आपका सानिध्य पा कर सूरदास के भजन गाने लगेंगी तो देश विदेश के पर्यटक "ऊधो, मन न भये दस बीस" सुनने के लिए भदर भदर गिरने लगेंगे। इस तरह देश के पर्यटन उद्योग का भी विकास हो जायेगा। फिर उन बज्र बुद्धिजीवी मुर्गियों का मांस खाने वाले बच्चे भी उच्च बौद्धिक होंगे। इस तरह कुछ ही दिन में पूरा बलिया बुद्धिजीवी हो जायेगा। फिर धीरे धीरे पूरा यूपी, और फिर पूरा देश बुद्धिजीवी हो जायेगा। एक तरह से किरान्ति हो जायेगी और आनेवाली असंख्य पीढियां आपको किरान्तिकारी की तरह पूजेंगी।
मैं सोचता हूँ, कितना अद्भुत होगा वह दिन जब कोई इंजीनियर बीड़ी बनाने का स्वरोजगार करेगा। एक उच्च कोटि का इंजिनियर यदि बीड़ी बनाये तो धुंआ मुह की बजाय कहीं और से भी निकल सकता है।  वह यदि मिठाई की दुकान खोले तो संभव है कि उसकी मिठाई प्लेट से बिना उठाये गपाक से मुह में चली जाय, और फिर छपाक से सचिवालय में चली जाय। कितने नये अनुसन्धान हो जायेंगे।
एक इलेक्ट्रिशियन यदि जूता बनाने का धंधा करे तो उसकी बनाई जोड़ी के दाएं जूते में ऋण आवेश होगा, और बांये जूते में धन आवेश। अँधेरे में चलता व्यक्ति यदि चाहे तो दोनों एड़ियों को सटा कर बल्ब जला कर उजाला भी कर सकता है।
एक फिटर यदि दलाली का स्वरोजगार करे तो वह किसी का टांका किसी के साथ फिट कर सकता है। उसकी मदद से किया जाने वाला भ्रष्टाचार सीबीआई के बाप से भी नहीं पकड़ायेगा।

तनिक सोच कर देखिये तो, एक अच्छा शिक्षक यदि हल चलाने का स्वरोजगार करे तो क्या वह बैल के पाकिस्तान में पैना खोद हट हट करेगा? वह मोर के पंख से उसकी पीठ सहलाते हुए लता मंगेशकर की तरह मखमली आवाज में प्रेम से कहेगा- हे बैल देव, कृपया शीघ्रता करें,आपकी अकर्मण्यता से कार्य प्रभावित हो रहा है। यकीन मानिए, बैल ट्रेक्टर से तेज दौड़ने लगेंगे। कृषि के क्षेत्र में क्रांति आ जायेगी।
एक शिक्षक यदि गोबर से उपले बनाने का धंधा करे तो वह हर उपले पर गणित के सूत्र, भौतिकी की परिभाषाएं, रसायन के समीकरण इत्यादि भी छाप कर बेंच सकता है। इस तरह उपले से अध्ययन कर के घर में खाना बनाने वाली अनपढ़ महिलाएं भी मैडम क्यूरी हो सकती हैं।
मुझे तो लगता है कि सरकार को हर पढ़े लिखे नौजवान के लिए स्वरोजगार को नेसेसरी कर देना चाहिए, और पटक पटक के स्वरोजगार कराना चाहिए।
असित मिश्र जैसे वे तमाम युवक जो सरकार से नौकरी मांग रहे हैं, वे मुर्ख हैं। नौकरी तो अनपढ़, गँवार के लिए होती है, पढ़े लिखे लोगों को स्वरोजगार करना चाहिए। और असित मिश्र तो वैसे भी ब्राह्मण हैं, उन्हें तो सरकार से कुछ भी मांगने का अधिकार ही नहीं। उन्होंने नौकरी के लिए आवाज उठा कर जो बेवफाई की है, उसके लिए उनकी कड़ी निंदा की जानी चाहिए।

सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।

Similar News

गुलाब!