भोजपुरी कहानी : औलाद जवन करा देबे

Update: 2017-05-17 06:14 GMT
साँझ के बेरा भईल रहे । सूरज देव धीरे धीरे डूबत रहलें । चिरई चुरूंग सब अपना खोंता में लौटत रहलें । दिन के गर्मी खतम होके साँझ वाला पछूआ हवा बहत रहे । गाँव के सब लोग अपना-अपना दुआर पर हवा के आनंद लेत रहे । नारायण अपना दुआर पर बईठ के आपन बीतल दिन के बारे में सोचत रहलें आ उनकर मेहरारू घरे रोटी बनावत रहली । 
नारायण तब सोलह बरिस के रहलें जब उनकर बियाह विमला साथे भईल रहे । विमला जईसन नाम के रहली स्वभाव से भी ऊ ओतने विमल रहली । उनका के उनकर चाल-चलन देख के ससुराल के सब लोग खुश रहे । नारायण के माई त गाँव में घूम-घूम के आपन पतोह के बड़ाई करस आ कुल्ही मेहरारू उनका भाग के सराहऽ सन । 
जब विमला बियाह करके ए घर में आईल रहली ओ घरी एह घर में नोकर-चाकर के चहल-पहल रहत रहे । एगो चम्मच तक केहु अपना हाथे ना उठावे । हालाँकी राजवाड़ा चाहे जमींदारी ना रहे नारायण के पुरनीया लोग के लेकिन व्यवसाय से अतना आमदनी रहे कि जमींदार लोग आपन अंगुरी अपना दाँत से काट लेत रहे । ओही घरी नारायण आ विमला के एगो बेटा रघुवीर के जनम भईल । खूब दुलार आ सनेह से उनकर पालन-पोषण भईल । नारायण के त खुशी के ठेकाना ना रहे अपना संतान के मुँह देख के । बरियार दावत भईल आ लोग जम के मजा लिहल । जेही आवे एगो खूब बढिया सोहर सुना के जाए । नारायण के दुआर कुछ दिन ले बेटा भईला के खुशी में जगमगात रह गईल । रघुवीर अब सेयान होत रहले आ स्कुल जाए लगलें आ बदमाशी के ओर कदम राखे लगलें । स्कुल त रोज जास लेकिन केहु ना केहु से रोज लड़ के आवस आ पीट के आवस । जब केहु उनका बेटा के शिकायत लेके नारायण के लगे आवे त उ मनबे ना करस । रघुवीर उनकर दुलरूआ बेटा रहलें आ ऊ उनका के बढिया संस्कार देले रहलें , एसे उनका अपना लईका पर विश्वास रहे लेकिन रघुवीर अपना बाप के दिहल संस्कार के धज्जी उड़ावत आपन मनमानी करस लेकिन तबो नारायण उनका दोष के ना देख पावस । उनका इ बूझाए कि हमार एगो लईका बा त लोग ओकरा के बाऊर कहता आ एहसे अब ऊ लोग से लड़ बईठस जब केहु शिकायती पहुँचे । एने रघुवीर के शैतानी रोज रोज बढत जात रहे । अब घर से रूपिया भूलाए लागल रहे , अनाज गायब हो जाए आ नारायण के शंका नोकर सन पर होखे । 
एक दिन अलमारी में से रूपिया निकालत विमला देवी देख लेहली आ चिल्ला उठली रघुवीर पर । ऊ डेरा गईले आ झट से अलमारी खुला छोड़ के भाग चललें । विमला आके अलमारी ठीक करके बंद कईली आ ई बात ऊ केहु से ना कहली लेकिन रात में जब रघुवीर अईलें त उनका के घर में बंद करके बढिया से खातिरदारी कईली आ रघुवीर से ई वादा लेहली कि कबो फेर चोरी ना करीहन । रघुवीर सब शर्त मान लेहलन तब विमला उनका के छोड़ली । कुछ दिन तक सब कुछ ठीक चलल लेकिन बाद में अब सामान गायब होखे लागल रहे । विमला के पता रहे कि इ रघुवीर करत होईहें लेकिन ऊ बिना सबूत के कुछु ना कहे भा पूछे के चाहस । एने रघुवीर के केहु टोकत ना रहे त उनकर हिम्मत दिने-दिने बढल जाए लेकिन कब तक । एक दिन अपना पाॅकेट में से पईसा निकालत रघुवीर के देख लेहलें नारायण आ रघुवीर के बोला के प्रेम से समझवलें कि यदि तहरा पईसा के काम लागे त तू माँग लिहल करऽ , चोरावे के का जरूरत बा । इ सब तहरे नू ह त तू केकर चोरावतारऽ लेकिन रघुवीर के ऊपर एह बात के कवनो असर ना पड़ल ।
अब रघुवीर के मन में ई बईठ गईल रहे कि नारायण आ विमला उनका राह के बाधा बन गईल बा लोग आ जल्दिए एह लोग के कवनो उपाय करे के पड़ी । उनका इ मन में रहे कि हेतना सम्पत्ति बा आ जदि हम तनी सा खर्चा कर देतानी त बाबूजी आ माई के कवनो खोज ना करे के चाहीं । इ लोग बेकार में हमरा के बोलता । इहे कुल्ही अब ऊ रोज सोचस आ एक रात जब ऊ बहरी से घुम के घरे अईलें त माई आ बाबूजी के सूतल देखलें आ बगल में राखल लाठी उठाके नारायण के माथा पर चला देहलें । लाठी नारायण के लागल ना लेकिन आवाज सुन के विमला जाग गईली आ ऊ चिल्लाए लगली उनका पर । माई के चिल्लाईल देख के रघुवीर डेरा गईलें आ बाबूजी के देह पर फेर एक लाठी मरलें आ लाठी लागते नारायण गिर गईलें । विमला के इ देख के ठकुआ लाग गईल आ ऊ दरवाजा के पीछा राखल दाब उठाके रघुवीर के गर्दन पर चला देहली आ देखते देखत रघुवीर के गर्दन आ देह अलग अलग पड़ल रहे । नारायण इ कुल्ही देख के उठ के खड़ा भईलें आ विमला के डाँटे लगलें । ओही राते ऊ गाँव के लोग के बोला के रघुवीर के दाह-संस्कार कर अईलें आ गाँव वाला लोग से ई बात केहु से ना कहे के निहोरा कईलें । सब लोग एक सुर में केहु से कुछ ना कहे के वादा कईलें आ ई बात गाँव से बाहर ना गईल । रघुवीर के श्राद्ध करके ऊ दुनु बेकत अब गुमसुम रहे लागल रहे आ केहु से ना कुछ बोले आ ना केहु लगे जाए । रोज दिन रोवते बीतत रहे आ दिन पर दिन ऊ लोग कमजोर भईल जात रहे ।

आज जब नारायण सोच के दुनिया में डूबल रहलें तबतक विमला खाना लेके अईली तब ऊ सोच के दुनिया से बहरी अईलें आ विमला के देख के रो देहलें । विमला भी उनका के ध के रोवे लगली । ई बस ओह दिन के बात ना रहे , ई ओ दुनु पराणी के रोज के आदत बन गईल रहे कि रोज कुहुक के जिनगी बीतावे लोग । मन भर रोवला के बाद अंत में इहे कहे लोग कि औलाद जवन करा देबे ।

आज फेर नारायण आ विमला के मुँह से निकलल , औलाद जवन करा देबे ।

प्रीतम पाण्डेय सांकृत
अपने घर छपरा से ।

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