सामयिक संदर्भो में लोहिया की सोशलिस्ट धारा

Update: 2018-03-23 02:07 GMT
लोहिया का निधन हुए पचास साल हो गए। किसी भी विचार परंपरा के नायक का मूल्यांकन उसके न रहने पर करना कई मायनो में बेहद जरुरी एवं नई पीढ़ी के लिए राजनीति को समझने का उपयोगी दिशापत्र हो सकता है जिसके माध्यम से समाज में उनके विचारों के प्रभाव का आकलन करने में मदद मिलती है।

डॉ राममनोहर लोहिया भारतीय समाजवाद के शिखर पुरुष के रूप में जाने जाते हैं।जिन्होंने देश में गांधी के बाद भारतीय समाज की कुरीतियों और जनहित के वाजिब सवालों पर लोकतांत्रिक सरकारों को जनता के प्रति जवाबदेह बनाने का बड़ा काम किया। अन्याय का प्रतिकार सिविल नाफरमानी के जरिए करना लोहिया के व्यक्तित्व की मूल आत्मा थी।

देश के आजादी के तत्काल बाद जवाहरलाल नेहरु जैसे विराट व्यक्तित्व और कांग्रेस जैसी भीमकाय राजनैतिक दल के जन हितैषी नीतियों से दूर होने पर उनके विरोध करने का दुस्साहस डॉ लोहिया ही कर सके।यही कारण है कि देश की आजादी के बाद लोहिया की साख ऐसे मौलिक नेता के तौर पर हुई जिन्होंने अपने सप्तक्रांति  सिद्धांतों के माध्यम से समूची मानवता के समता एवं संपन्नता आधारित समाज की परिकल्पना  को जमीन पर उतारने की राह दिखाई।जिसके अंतर्गत उन्होंने नर-नारी,चमड़े के रंग, जातिगत आधार,विदेशी गुलामी, निजी-पूँजी, निजी-जीवन जैसे मसलों में हो रही असमानता को दूर करने और इसमें शामिल अन्याय और हथियारों के खिलाफ सत्याग्रह एवं स्वतंत्रता के आधार पर विश्व लोकतांत्रिक शासन की स्थापना के लिए सोशलिस्ट पार्टी का गठन किया।

डॉ लोहिया सड़क से संसद तक समाज के कमजोर तबके को मुख्यधारा की राजनीति में उनके अधिकार दिलाने के लिए आजीवन संघर्षरत रहे।वंचित समाज का जीवन स्तर सुधारने की दिशा में उनके जैसा प्रतिबद्ध कार्य करने वाला दूसरा कोई उदाहरण दूर-दूर तक दिखाई नही देता है।राममनोहर लोहिया की सबसे बड़ी विशेषता एक ऐसा राजनैतिक नेतृत्व तैयार करने की रही जिसने उनके साथ रहते हुए और अनुपस्थिति में भी समाज के अंतिम व्यक्ति को गरिमामय जीवन प्रदान करने में समर्पित रहे।

पिछले पांच दशकों में देश की राजनीति में नेतृत्व परिवर्तन के बाद भी जनता का लोकतंत्र में हिस्सेदारी और नेतृत्व का सवाल जितना लोहिया के समय मौजूं था उतना आज भी है।लेकिन यह राहत की बात है कि लोहिया की विचारपरम्परा को आगे बढ़ाने में समकालीन समाजवादी नेतृत्व क्षमतावान और भरोसेमंद पहचान के रूप में जनता के बीच अपनी लोकप्रियता बनाये हुए है।जिसके प्रतीक स्तंभ अखिलेश यादव बने हुए हैं।धर्म,जाति, विकास,जनहितैषी नीति सहित नौजवानों एवं उपेक्षित वर्गों की लड़ाई को लोहिया विचार से लड़ते हुए समाजवाद के रास्ते को मजबूत करने का उनका कौशल राजनीति के केंद्र में जनता के बने रहने की उम्मीद जगाता है और सच्चे अर्थों में यह सोशलिस्ट विचार की सफलता को ही दर्शाता है।

उत्तर प्रदेश डॉ लोहिया की जन्म स्थली  है साथ ही यह सूबा हिंदुस्तान की सामाजिक राजनैतिक क्रांतियों को दिशा देने में बड़ी भूमिका निभाता रहा है।लोहिया ने धर्म में जकड़े समाज को सीताराम राज्य और रामायण मेले के माध्यम से मुक्त कराने की दिशा में प्रभावी कार्य किया।धर्म के साथ ही उन्होंने जाति तोड़ो के सवाल पर पूरे देश को आंदोलित किया साथ ही जातीय विषमता का दंश झेल रहे समूहों को मुख्य धारा में लाने का महान कार्य किया।

आज जब हम लोहिया जयंती मना रहे हैं ऐसे में हाल ही में सम्पन्न हुए लोकसभा के उपचुनाव के परिणाम कही न कही लोहिया के विचारों के अमली जामा पहनाने से उपजे सन्देश समझा रहे हैं।यूपी में विपक्षी दलों की एकता से हासिल विजय के संदर्भ में लोहिया-अम्बेडकर के ऐतिहासिक प्रसंग को जानना वर्तमान सियासी माहौल में बेहद कारगर और सामयिक जान पड़ता है।इस संदर्भ में 1956 के आसपास डॉ लोहिया-अंबेडकर की बढ़ती आपसी निकटता को समझना भविष्य की राजनीति के लिए एक संदेश की भांति हैं।उस समय देश के विकास के लिए दोनों नेता इस बात के लिए राजी हो रहे थे कि उनके पार्टियों के बीच सिद्धांतो-नीतियों-कार्यक्रमों-लक्ष्यों में समानता के चलते आपसी सहमति बने।जिसके तहत सोशलिस्ट पार्टी और आल इंडिया बैकवर्ड क्लास एसोसिएशन के आपसी समझ में व्यापक सहमति बने।यह ऐतिहासिक योजना मूर्त रूप लेती उसी दौरान दिसंबर 1956 को डॉ अंबेडकर का निधन हो गया और यह विचार आकार ही नहीं ले सका।

समग्रता में लोहिया को जानने के क्रम में एशिया महासंघ,भाषा के सवाल,तिब्बत के सवाल,वीजा मुक्त दुनिया सहित नदी और तीर्थस्थल सफाई जैसे महत्वपूर्ण विमर्शों पर ईमानदारी से काम करना होगा।साथ ही देश दुनिया में बढ़ रही नकारात्मकता को दूर करने में लोकतांत्रिक व्यवस्था को और अधिक जन हस्तक्षेपकारी बनाने में सार्थक योगदान करना सामयिक जरूरत है।लोकतंत्र में बुनियादी मुद्दों को बहस के केंद्र में लाते हुए मानव मात्र के कल्याण आधारित समाजवादी अवधारणा को स्थापित करना ही उस महान आत्मा और परंपरा को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।


मणेंद्र मिश्रा मशाल

संस्थापक-समाजवादी अध्ययन केंद्र

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