धर्म और संस्कृति, महात्मा गाँधी और उनकी सर्वश्रेष्ठ पत्रकारिता – प्रो. (डॉ.) योगेन्द्र यादव

Update: 2017-02-20 03:17 GMT

महात्मा गाँधी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गाँधी है. उनके पिताजी और उनके दादाजी पोरबंदरराजकोट व भावनगर रियासतों के दीवान थे. जो आज के प्रधानमंत्री के समतुल्य है. उनमे संवाद का गुण अनुवांशिक था. उनके दादाजी और पिताजी किसी से संवाद के समय कम से कम शब्दों में अधिक बात कहते थे. शब्द सारगर्भित हुआ करते थे. उनका दूसरों पर गहरा प्रभाव पड़ता था. यह सब मोहनदास करमचंद गाँधी का बालमन नित्य तथा निरंतर अनुभव करता रहता था. सत्य और अहिंसा का गहरा प्रभाव होने के कारण यह दोनों तत्व उनके जीवन में इस प्रकार घुल-मिल गएकि लोग मोहनदास करमचंद गाँधी को सत्य और अहिंसा का पर्याय मानने लगे. यह सब सिर्फ उनकी कथनी में ही नहींकरनी में भी झलकने लगा. वे जो कहते थेवही करते थे और जो करते थेवही कहते थे. इस तरह के आचरण के कारण उनका जनमानस पर व्यापक प्रभाव परिलक्षित होता था. बचपन से शुरू हुआ यह क्रम आजीवन चलता रहा. महात्मा गाँधी अपनी कमुनिकेशन स्किल में निखार लाने के लिये निरंतर प्रयास करते रहते थे. किसी विषय पर बोलने के पहले उसका विशद अध्ययन करते थे,और इसके पश्चात् भारतीय परिप्रेक्ष्य में उसका चिंतन करते थेयदि वह खरा होता थातो ही कहते थे. इसी कारण चाहे उनके भाषण हों,या चाहे उनके लेखपत्र इत्यादिसभी का सम्बंधित व्यक्ति पर गहरा प्रभाव पड़ता था. विरोधी भी उनके कायल होते थे. पुरे जीवन उन्होंने किसी का बुरा नहीं सोचानिरंतर सकारात्मक विचार रखने के कारण उनके कटु वचन भी अत्यंत हितकारी सिद्ध होते थे.

हर व्यक्ति आराम और प्रतिष्ठापूर्ण जीवन जीना चाहता है. हर माँ-बाप भी अपने बच्चों को ऐसा संस्कार देता हैंजिससे उनका पुत्र उनकी प्रतिष्ठा में चार चाँद लगा सके. फिर ऐसा क्या हो जाता है कि उन्हीं लड़कों में से कोई न कोई गुंडा बन जाता है. यदि राजनीतिक संरक्षण मिल जाए तो बाहुबली में उसकी गिनती होने लगती है. आज उत्तर प्रदेश में ऐसे तत्वों की संख्या अधिक हो गयी हैऐसा कहा जाता है. सरकार तथा प्रशासनदोनों बल और कानून का सहारा लेकर उसे दबाने का भरसक प्रयास करते हैं. जितनी जोर से वे दबाते हैंउससे अधिक दृढ़ संकल्प के साथ वह उभर कर आता है. दरअसल भारत के आजाद होने के बाद अपना कोई कानून ही ऐसा नहीं बनाजिससे उनकी समस्यायों का निराकरण करके उन्हें समाज में फिर उसी प्रतिष्ठा के साथ अपनाया जाए. किन्तु ऐसा नहीं होता. न इस प्रकार की कोई पहल समाज में दिखा रहा है. महात्मा गाँधी ने इस बात को स्वीकार करते हुए कहा था - भी तो आखिर हमारे समाज के ही अंग हैं और इसलिए उनका उपचार भी पूरी सहृदयता तथा सहानुभूति के साथ किया जाना चाहिए. आमतौर पर लोग गुंडाशाही इसलिए नहीं किया करते कि उनको यही पसंद है. यह वास्तव मेंहमारे समाज में व्याप्त एक किसी गहरे रोग का लक्षण है. हम शासन तंत्र में व्याप्त गुंडा शाही के साथ अपने संबंधों पर जिस नियम को लागू करते हैंठीक वही नियम समाज की अन्दुरुनी गुंडाशाही के साथ भी लागू करना चाहिए. यदि हमें विश्वास हो गया कि उस अत्यंत ही संगठित किस्म की गुंडाशाही सेअहिंसक ढंग सेइसी तरीके से निपटने के लिए हमें अपने अन्दर कहीं अधिक सामर्थ्य महसूस करनी चाहिए. महात्मा गाँधी को बुराई की जड़ ही सदा दिखाई देती थीऔर वे उसी पर सदैव आघात करते थे. वे किसी व्यक्ति विशेष को न बुरा समझते थेऔर न ही उससे घृणा करते थे. वे तो सभी से प्रेम करते थे. उनका कोई शत्रु होता ही नहीं था. इसी कारण जब किसी बुराई के उन्मूलन की बात भी महात्मा गाँधी करते थेतो उसमे लिप्त व्यक्ति को भी उनकी बात बुरी नहीं लगती थी,अपितु बड़ा ही व्यापक प्रभाव डालती थी.

आज देश का हर आदमी अपने आपको असुरक्षित महसूस कर रहा है. कबकहाँकिस समय दंगें हो जायेंगेकहा नहीं जा सकता है. कहाँ किसकी हत्या हो जायेगीइसका भी अनुमान नहीं लगाया जा सकता है. सरकार और प्रशासन का अधिकांश समयऊर्जा और धन प्रदेश में शांति कैसे बनी रहेइसी में अपव्यय हो रहा है. विकास का काम जिस गति से होना चाहिएनहीं हो पा रहा है. देश के अन्य प्रान्तों को शांति का सन्देश देने वाले प्रदेश की इस धरती पर ऐसा क्या हो गया कि यहाँ कि शांति विनष्ट हो गयी. राजनीति में देश को दिशा देने वाले इस प्रदेश की राजनीति क्या इतनी कलुषित हो गयी कि अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए उन्हें दंगों का सहारा लेना पड़ रहा है. सदियों से एक दूसरे के साथ रहने विभिन्न धर्मों के लोगों में ऐसा क्या हो गयाकि आपसी भाईचारा की मजबूत दीवार भी ढह गयी. जिस प्रदेश की धरती और उसके आंदोलनों ने महात्मा गाँधी को अत्यंत प्रभावित कियाहर आन्दोलन में कंधे से कन्धा मिला कर काम किया. उनके रचनात्मक कार्यक्रम में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लियाउस प्रदेश के लोगों को आज क्या हो गयाजो अपनों के ही खून से रोज खुद को ही रंग रही है. इन सब प्रश्नों का उत्तर महात्मा गाँधी के जीवन और दर्शन में तलाशने का प्रयास कर रहा हूँ. इन सब प्रश्नों का उत्तर ढूढने के लिए हमें अपनी प्राचीन संस्कृति का पुनुरुद्धार कार्यक्रम और धर्म की सही व्याख्या पर विचार करना जरुरी है. क्योंकि वातावरण ख़राब करने के लिए संस्कृति और धर्म को ही सबसे ज्यादा दोषी माना जाता है. इसी को आधार बना कर अपने कुकृत्य को भी सुकृत्य बताया जाता है. महात्मा गाँधी ने इंग्लैंड प्रवास और दक्षिण अफ्रीका से सत्याग्रह आन्दोलन के समय सभी धर्मों का विशद अध्ययन कियाजहाँ कहीं दुविधा बनीउसके सम्बन्ध में लोगों से तब तक बातचीत कीजब तक सही उत्तर उन्हें नहीं मिल गया. सभी धर्मों का सही ज्ञान भी उन्हें एक बेहतरीन कमुनिकेटर बनाने में सहायक बना.

महात्मा गाँधी ने अपने कोलम्बो प्रवास के दौरान अपने एक भाषण में कहा था कि सबसे पहले हमको यह समझना चाहिए कि आखिर प्राचीन संस्कृति है क्याऔर फिर निश्चय ही वह संस्कृति ऐसी होनी चाहिएजिनका पुनरुद्धार करने के इच्छुक हिन्दूईसाई, बौद्ध या कहियेहर धर्म और विश्वास के विश्वास के विद्यार्थी हों. यह इसलिए कि यहाँ मैं यह मान कर चलता हूँ कि आप जब प्राचीन संस्कृति कि बात करते हैंतो केवल हिन्दू विद्यार्थियों तक अपने को सीमित नहीं रखते. यदि हम अपने प्रदेश की सामाजिक संरचना पर दृष्टि डालते हैं तो यह बात बिलकुल स्पष्ट हो जाती है कि यहाँ विभिन्न धर्मों के मानने वाले लोग निवास करते हैं. सिर्फ निवास ही नहीं करतेबल्कि एक दूसरे के कार्यक्रमों और त्योहारों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा भी लेते हैं. किन्तु इसका प्रतिशत दिन पर दिन कम होता जा रहा है. मेरे तर्क पर इस बात का कोई प्रभाव इसलिए नहीं पड़ता कि आज का चरम लक्ष्य तो सभी के लिए स्वराज हासिल करना है. जाफना के हिन्दुओं और ईसाइयों भर के लिए नहीं. आप तो इस द्वीप में बसने वाली समस्त जनता के लिए स्वराज चाहते हैं और जाफना उसका एक हिस्सा है.

अब हम इस स्थिति में हम अपना प्रश्न लेंहम जिसका पुनरुद्धार करना चाहते हैंवह प्राचीन संस्कृति आखिर है क्याइससे स्पष्ट है कि वह ऐसी संस्कृति होनी चाहिएजो इन सभी धर्मावलम्बियों की समान संस्कृति हो और जिसे ये सभी लोग स्वीकार करते हों. इसलिए नि:संदेह ही वह संस्कृति प्रधानतया तो हिन्दू संस्कृति होगी. लेकिन वह मात्र हिन्दू संस्कृति या विशुद्ध हिन्दू संस्कृति कदापि नहीं सकती. वह प्रधानतया हिन्दू संस्कृति होगीमैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँकि प्राचीन संस्कृति का पुनरुद्धार करने के इच्छुक आप लोग  प्रमुखतया हिन्दू ही हैं और आपको सदा उस देश का ध्यान रहता हैजिसे आप गर्व के साथ अपनी मातृभूमि कहने में हर्ष महसूस करते हैं और जो सर्वथा उचित है. देश के निवासियों में भी मातृभूमि का भाव आना जरुरी है.

मैं यह कहने की धृष्टता करता हूँ कि हिन्दू संस्कृति में बौद्ध संस्कृति भी आवश्यक रूप से सम्मिलित है. इसका सीधा सा कारण यह है कि स्वयं बुद्ध एक भारतीय थे और भारतीय ही नहींवे हिन्दुओं में एक श्रेष्ठतम हिन्दू थे. गौतम के जीवन में मुझे ऐसी कोई बात नहीं मिलीजिसके आधार पर कहा जा सकेकि उन्होंने हिन्दू धर्म त्याग कर कोई धर्म अपना लिया हो. मेरा काम और भी आसान हो जाता हैजब मैं सोचता हूँ स्वयं ईसा भी तो एक एशियाई ही थे. इसलिए अब हमारे विचार के लिए यह प्रश्न होना चाहिए कि एशियाई संस्कृति या प्राचीन एशियाई संस्कृति क्या हैऔर इस तरह देखा जाए तो मुहम्मद साहब भी तो एशियाई ही थे. चूँकि आप प्राचीन संस्कृति के उन सभी तत्वों या उपादानों का ही तो पुनरुद्धार करना चाहेंगेजो उच्चादर्श पूर्ण है और जिनका स्थाई महत्त्व हैइसलिए आप किसी भी ऐसे उपादान का पुनरुद्धार तो कर ही नहीं सकतेजो इनमे से किसी भी धर्म के विरुद्ध पड़ता हो. अब प्रश्न यह उठता है कि पता लगाया जाए कि वह कौन सा तत्त्व हैजो इन सभी धर्मों में सर्वाधिक रूप से सामान पाया जाता है और इस प्रकार सभी उच्चादर्श उपादानों की विवेचना करने परआपको जो सर्वाधिक सहज और स्पष्ट उपादान मिलेगावह है सत्यवादिय और अहिंसाइसलिए कि सत्यनिष्ठा और अहिंसा ही इन सभी महान धर्मों में सामान रूप से मौजूद रही हैं.

जाहिर है कि आप उन अनेक रीति-रिवाजों का  पुनरुद्धार तो नहीं करना चाहेंगेजिनको आप और हम सभी भूल चुके हैं और जो कभी किसी समय में हिन्दू धर्म में शामिल थे. मुझे याद पड़ता है कि न्यायमूर्ति स्व. रानाडे ने प्राचीन संस्कृति के बारे में बोलते हुए एक अत्यंत ही मूल्यवान विचार व्यक्त किया था. उन्होंने ने श्रोताओं से कहा था कि उनमे से किसी भी एक व्यक्ति के लिए यह बतलाना कठिन होगा कि प्राचीन संस्कृति का ठीक-ठाक रूप वास्तव में क्या थाऔर वह संस्कृति कब से प्राचीन न रह कर आधुनिक बनने लगी थी. उन्होंने यह भी कहा कि कोई भी विवेकशील व्यक्ति किसी भी चीज को केवल इसलिए प्रमाण नहीं मान लेगाकि वह प्राचीन है. संस्कृति प्राचीन हो या आधुनिकउसे तर्क और अनुभव की कसौटी पर खरा उतरना ही चाहिए.

आज हमारे देश में ही नहींबल्कि सारे संसार में प्रतिक्रियावादी शक्तियांहमारे चारो ओर सर उठा रही हैंभारत के अपने अनुभव के आधार पर मैं कह सकता हूँ कि प्राचीन संस्कृति के पुनरुद्धार की दुहाई देने वालेअनेक व्यक्ति पुनरुद्धार की आड़ में प्राचीन पूर्वाग्रहों और अंधविश्वासों को पुन: जीवित करने में कोई संकोच नहीं करते. मैं आपको अपने अनुभव की बात बतला रहा था. मैं बतला रहा था कि हमारी मातृभूमि में ही कुछ शक्तियां सक्रिय हो गईं हैं. प्राचीन परम्पराओं और प्राचीन नियमो के गड़े मुर्दे उखाड कर अस्पृश्यता का  औचित्य सिद्ध करने की कोशिश की जा रही है. मैं समझता हूँ कि इस प्रदेश के सौहार्दपूर्ण वातावरण को बिगाड़ने में भी इसी तरह के औचित्य को सिद्ध करने की कोशिश की जा रही है.

मैंने आपको चेतावनी दी है कि पुनरुद्धार के नाम परबह्कावें में आकर आप गलत काम न करें. अब आप शायद यह समझ गये होंगे कि यह चेतावनी कितनी महत्त्वपूर्ण हैक्योंकि यह चेतावनी आपको ऐसा व्यक्ति दे रहा हैजो प्राचीन संस्कृति का मात्र प्रेमी ही नहींवह जीवन भर इस कोशिश में भरसक लगा रहा कि प्राचीन संस्कृति के सभी उच्चादर्श पूर्ण और स्थाई महत्त्व के उपादानों को नया जीवन दिया जाए. प्राचीन संस्कृति के छिपे हुए खजाने खोज करते-करते हीमुझे यह अनमोल रत्न हाथ लगा है कि प्राचीन हिन्दू संस्कृति में जितना भी कुछ स्थाई महत्त्व का हैवह हमें ईशाबुद्धमुहम्मदऔर जरथ्रुष्ट के उपदेशों में भी सामान रूप से मिलता है. इसलिये मैंने अपने लिए यह तरीका निकाल लिया है कि जब मुझे हिन्दू धर्म में कोई ऐसी बात दिखाई पड़ती हैजिसके बारे में प्राचीन शास्त्रकार सहमत हैंकिन्तु जो मेरे ईसाई बंधू या मेरे मुसलमान भाई को स्वीकार नहीं हैतब मुझे तत्काल उसकी प्राचीनता पर संदेह होने लगता है.

इसके आलावा मोहनदास करमचंद गाँधी के जीवन में सत्यअहिंसा सहित एकादश व्रत और रचनात्मक कार्यों के कारण ही वे सर्वश्रेष्ठ कमुनिकेटर बन सके.  सिर्फ शब्दों का पुलिंदा बाँध लेने भर से कोई अच्छा कमुनिकेटर नहीं हो सकताउसके लिये उसे महात्मा गाँधी के जीवन और दर्शन को समझना होगाअपने जीवन में अपनाना होगातभी वह एक सर्वश्रेष्ठ पत्रकार बन सकता है. महात्मा गाँधी ने इसे सिद्ध अपने द्वारा प्रकाशित समाचार पत्रों इंडियन ओपिनियनयंग इंडियानवजीवनहरिजन के सभी संस्करणों के माध्यम से सिद्ध भी किया.

 

(यह लेख मेरी पुस्तक का अंश है, जनता की आवाज की अनुमति के बिना इसका प्रकाशन आपको कानूनी पचड़ों मे उलझा सकता है । )

 

प्रो. (डॉ.) योगेन्द्र यादव

विश्लेषकभाषाविद, वरिष्ठ गांधीवादी-समाजवादी चिंतक व पत्रकार

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