अखिलेश के निर्देश की अवहेलना कैसे बनेगी सरकार ?

Update: 2020-09-16 11:32 GMT


किसी घर की प्रगति और प्रतिष्ठा तभी तक बनी रहती है, जब तक ऊज़ घर के सभी सदस्य परिवार के मुखिया के आदेश और निर्देश की अवहेलना नही करते । उसके हर आदेश और निर्देश का अक्षरशः पालन करते हैं। जब तक परिवार के मुखिया के प्रति निष्ठा और विश्वास बना रहता है, तब तक वे बड़ा से बड़ा लक्ष्य भेद कर लेते हैं । परिवार की व्यवस्था सुचारू रूप से चलती है। इसके पीछे जिस बात का अहम योगदान होता है, वह है कि परिवार के हर सदस्य किसी न किसी बहाने एक दूसरे के साथ बैठते हैं। दिन भर की गतिविधियों और अनुभवों को एक दूसरे से बांटते हैं। कहीं कोई अड़चन होती है, या आती है, तो घर के मुखिया द्वारा उसका निदान किया जाता है। परिवार अथवा समाजवाद के इस मर्म को समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने समझा और वर्तमान परिस्थितियों के अनुरूप निर्णय लिया। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को जो क्षेत्रीय सूचनाएं प्राप्त हो रही है कि पार्टी के सत्ता में रहने पर जिन कार्यालयों पर नेताओं, कार्यकर्ताओं, और जनता की भीड़ लगी रहती थी । अब वीरान पड़े हुए हैं। बैठने उठने और मिलने के जो ठीहे बने हुए थे, वे सब समाप्त हो चुके हैं। अखिलेश यादव की ओर से 351 विधानसभा चुनाव जीतने का जो लक्ष्य निर्धारित किया गया, वह भी सोशल मीडिया पर कुछ दिन सुर्खियों में बने रहने के बाद दम तोड़ चुका है। अखिलेश यादव ने यह सोचा था कि यह लक्ष्य देने के बाद नेता और कार्यकर्ता सक्रिय हो जाएंगे, लेकिन नही हुए । तीन साल बीत गए, अभी तक बूथ लेवल पर संगठन का गठन नही हो पाया । जिसका नतीजा यह है कि अभी तक जमीनी सरगर्मी नही शुरू हुई । दूसरी ओर केंद्र और प्रदेश दोनों जगह सत्ता होने के बावजूद भारतीय जनता पार्टी सक्रिय बनी हुई है। बूथ स्तर पर उसने संगठन बना लिए हैं। कार्यकर्ता की हैसियत के अनुसार उन्हें काम दे दिए हैं। अगर किसी कार्यकर्ता की हैसियत सायकिल की है, तो उसे सायकिल वाला ही काम दिया है। मोटर सायकिल है, तो उस हिसाब से काम सौंपा है । कार है, तो उस हिसाब का काम । यानी से संसाधन के अनुरूप कार्य वितरण। इतना ही नही। उसी प्रकार की उसकी आर्थिक और सांगठनिक मदद भी की जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन को व्यापक रूप से मनाने का निर्णय लेकर सेवा सप्ताह मनाया जा रहा है। इसके माध्यम से रक्तदान से लेकर फल वितरण तक के कार्य किये जा रहे हैं । दूसरी ओर समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता और नेता चुप बैठे हैं। अपने घरों में दुबके हैं । जनता के बीच में जाने को कौन कहे, आपस मे भी नियमित रूप से कहीं मिल बैठ नही रहे हैं। किसी की तेरहवीं बरसी में ही कभी कभार उनकी मुलाकात हो जाती है, तो हो जाती है। तभी चंद मिनटों में कुछ बातचीत हो जाती है। समाजवादी समर्थक मतदाता को जब कभी मदद के लिए सपा नेताओं और कार्यकर्ताओं की जरूरत पड़ती है, तो वह खोजे से भी नही मिलता है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने उनकी इस पीड़ा को समझा, अपने सलाहकारों से राय मशविरा करके इस दिशा में चिंतन मनन किया और फिर एक आदेश निर्गत किया। सभी विधानसभा अध्यक्षों, पूर्व विधायकों, विधायकों आदि को भेजे गए अपने पत्र में उन्होंने लिखा कि हर विधानसभा में एक ऐसा स्थान नियत किया जाए, या कार्यालय खोला जाए, जहाँ पर उस विधानसभा के सभी नेता बैठें, आपस में विचार विमर्श करें और पार्टी की गतिविधियों को संचालित करें । 2022 के चुनाव के मद्देनजर क्षेत्र की जनता के बीच मे जाएं या अगर कहीं अत्याचार या अनाचार हो, तो उसके खिलाफ खड़े हो।

 इस समय मैं कोरोना - पर्यावरण जागरूकता अभियान शहीद सम्मान यात्रा के तहत गाँव गाँव भ्रमण कर रहा हूँ । यह यात्रा 12 जुलाई, 2020 को कानपुर नगर से शुरू की । कानपुर देहात, औरैया, इटावा, मैनपुरी, कन्नौज, फर्रूखाबाद, बदायूँ, संभल, मुरादाबाद, अमरोहा, रामपुर, बरेली होते हुए इस समय शाहजहांपुर के कांठ क्षेत्र के गावों में विचरण कर रहा हूँ । अपनी इस यात्रा के दौरान करीब 50 विधानसभाओं से गुजरा। कहीं भी इस तरह के कार्यालय या बैठक की किसी नेता या कार्यकर्ता ने चर्चा नही की। जबकि हर विधानसभा में किसी न किसी रूप से मुलाकात और संवाद भी होता रहा। न ही कहीं इस तरह का कोई बोर्ड ही दिखाई दिया। इससे साफ जाहिर है कि समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने जो आदेश अपने कार्यकर्ताओं, नेताओं को भेजे थे, उस पर कहीं भी कोई तामील नही हुई है। अगर कहीं हुई भी है, तो उनकी संख्या उंगलियों पर गिनने योग्य है। ऐसे में जब अखिलेश यादव ने 2022 फतह करने के लिए 351 विधानसभाओं को जीतने का लक्ष्य निर्धारित किया हो, फिर भी उनके कार्यकर्ता उनके निर्देश का पालन नही करना चाहते। अपनी इस यात्रा के दौरान मेरी तमाम समाजवादी कार्यकर्ताओं से भेंट हुई, उनसे चर्चा के दौरान ऐसा प्रतीत हुआ, जैसे वे बहुत भयभीत हों । और किसी प्रकार की राजनीतिक और सामाजिक गतिविधि करने से परहेज कर रहे हों । अखिलेश यादव के निर्देश का पालन न करने की वजह से विधानसभा स्तर पर कहीं कोई रणनीति भी नही बन पा रही है। उपचुनाव की दुंदुभी भी बज चुकी है। अन्य विधानसभाओं की बात छोड़िए, जिन विधानसभाओं में उपचुनाव होने हैं, वहां भी अखिलेश यादव के इस निर्देश की तामील नही हुई है। इस सबंध में जब मेरी सपा कार्यकर्ताओं नेताओं से चर्चा हुई, तो उन्होंने कहा कि हर विधानसभा में इस प्रकार की जगह तलाशने पर मिल सकती है, कहीं कहीं कार्यकर्ताओं के घर में भी जगह मिल सकती है। लेकिन कोई भी 30 दिन के लिए सैकड़ों लोगों के लिए चाय पानी की व्यवस्था नही कर सकता। इसलिए ऐसी जगह किराए पर ही ली जा सकती है। पार्टी से लाभ तो सभी लेना चाहते है, लेकिन आज की डेट में कोई हर महीने 10 हजार रुपये खर्च करने की स्थिति में नही है। दूसरा समाजवादी पार्टी का कार्यकर्ता और नेता भी स्वार्थी हो गया है। वह सोचता है कि वह क्यों खर्च करे ? जिसे विधानसभा चुनाव लड़ना है, वह खर्च करे। जब तक टिकट की घोषणा न हो जाये, तब तक टिकट की दौड़ में हर विधानसभा में दो इस दो से अधिक लोग चुनाव लड़ने के दावे कर रहे हैं । लेकिन उनमें से कोई भी उम्मीदवार बनने के पूर्व ऐसे कार्यक्रमों के लिए धन नही खर्च करना चाहता है। इसी कारण अखिलेश यादव के विधानसभा वाइज कार्यालय या बैठक स्थल बनाने की व्यवस्था अभी तक नही हो पाई है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को इस प्रकार का आदेश निर्गत करते समय धन की व्यवस्था के लिए वहां के नेताओं को नामित कर देना चाहिए। कार्यकर्ताओ की हिसाब से आज भी समाजवादी पार्टी एक सशक्त और बड़ी पार्टी है। अगर विधानसभा वाइज इनकी गणना की जाए, तो हर विधानसभा में शताधिक लोग मिल जाएंगे। उन पर ऐसे कार्यालयों की आर्थिक जवाबदेही तय कर देनी चाहिए। इस प्रकार के अगर 24 लोग भी सम्पन्न नेता मिल गए तो फिर उनका नंबर दो साल बाद आएगा।

अखिलेश यादव के निर्देश की उपेक्षा से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता और नेता यह मान बैठे हैं कि सरकार की नाकामियों से वे चुनाव जीत जाएंगे। जबकि जमीनी हकीकत इससे विपरीत है। मुसलमानों और यादवों के अतिरिक्त ऐसी भाषा कोई नही बोल रहा है । अन्य पिछड़ी जातियों के अन्य मतदाताओं से जब मेरी चर्चा होती है, तो वे सरकार से असंतुष्ट तो दिखते हैं, लेकिन जब वोट देने की बात करता हूँ, तो गर्दन फेर लेते हैं । मेरे अपने अनुभव के अनुसार भारतीय जनता पार्टी का एक वोट भी टूटा नही है। जिसकी झलक उपचुनाव के परिणाम आने के बाद प्रमाणित हो जाएगी । परिणाम सकारात्मक हो सकते हैं जब पार्टी मुखिया अखिलेश यादव के हर निर्देश, आदेश की तामील कार्यकर्ताओं व नेताओं द्वारा जमीनी स्तर तक ईमानदारी से की जाएगी। जीत आसानी से नही, एक एक वोट का संघर्ष करने के पश्चात ही मिलेगी ।

प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

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