कृष्ण जन्माष्टमी:- (अचिन्त्य पांडेय, डाल्टनगंज)

Update: 2020-08-12 12:39 GMT


प्रेम का सागर लिखूं!

या चेतना का चिंतन लिखूं!

प्रीति की गागर लिखूं,

या आत्मा का मंथन लिखूं!

रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित,

चाहे जितना लिखूं....

ज्ञानियों का गुंथन लिखूं ,

या गाय का ग्वाला लिखूं..

कंस के लिए विष लिखूं ,

या भक्तों का अमृत प्याला लिखूं।

रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं....

पृथ्वी का मानव लिखूं ,

या निर्लिप्त योगेश्वर लिखूं।

चेतना चिंतक लिखूं,

या संतृप्त देवेश्वर लिखूं ।।

रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं....

जेल में जन्मा लिखूं ,

या गोकुल का पलना लिखूं।

देवकी की गोदी लिखूं ,

या यशोदा का ललना लिखूं ।।

रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं....

गोपियों का प्रिय लिखूं,

या राधा का प्रियतम लिखूं।

रुक्मणि का श्री लिखूं

या सत्यभामा का श्रीतम लिखूं।।

रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं....

देवकी का नंदन लिखूं,

या यशोदा का लाल लिखूं।

वासुदेव का तनय लिखूं,

या नंद का गोपाल लिखूं।।

रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं....

नदियों-सा बहता लिखूं,

या सागर-सा गहरा लिखूं।

झरनों-सा झरता लिखूं ,

या प्रकृति का चेहरा लिखूं।।

रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं....

आत्मतत्व चिंतन लिखूं,

या प्राणेश्वर परमात्मा लिखूं।

स्थिर चित्त योगी लिखूं,

या यताति सर्वात्मा लिखूं।।

रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं.....

कृष्ण तुम पर क्या लिखूं,

कितना लिखूं...

रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं....

सभी को अखण्ड ब्रह्मांड के नायक कृष्ण-कन्हैया के

जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं.

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