ॐ नमश्चण्डिकायै
न चोत्पत्तिरनादित्वान्नृप तस्याः कदाचन |
हे राजन्! वे भगवती अनादि है अतः उनकी उत्पत्ति नही होती है!
नित्यैव सा परा देवी कारणानां च कारणम् |
वर्तते सर्वभूतेषु शक्तिः सर्वात्मना नृप ||
वे भगवतीही केवल मात्र नित्या है, परा है!
हे राजन्..! वे देवी माँ सभी कारणों की भी कारण है! वे जगदंबा सभी पाराणियोंमे विविध प्रकारकीं शक्तियों की रूप मे रहती है क्षुधा, तृष्णा, धारणा.... आदि! आत्मशक्ती के रूपमें! प्राणशक्ति के रूपमें!
शववच्छक्तिहीनस्तु प्राणी भवति सर्वथा! अतः शक्तिहीन होनेपर प्राणि शव कीं भाँति हो जाता है, या फिर शव ही हो जाता है (आत्मशक्ती चैतन्य शक्ति के अभावसे)
चिच्छक्तिः सर्वभूतेषु रूपं तस्यास्तदेव हि |
सभी प्राणियोंके अंतर्भूत जो चैतन्य शक्ति है, जो चिती शक्ति है, जो consciousness जाननेवाली, द्रष्टा है वही भगवती है.
आविर्भावतिरोभाव देवानां कार्यसिद्धये |
उन भगवती का आविर्भाव याने प्राकट्य और तिरोभाव देवताओं के कार्यसिद्धी केलिए होता है!
यदा स्तुवन्ति तां देवा मनुजाश्च विशाम्पते |
प्रादुर्भवति भूतानां दुःखनाशायचाम्बिका ||
जब कभीभी देवता तथा मनुष्य गण उन भगवती पराम्बा की प्रार्थना करते है तभी सभी प्राणियोंके दुःख नाश हेतू वे अम्बिका प्रकट हो जाती है. नानाप्रकार की शक्तियों सहित वे नानाप्रकार के अवतार धारण करती है.
नानारूपधरादेवी नानाशक्तिसमन्विता |
आविर्भवति कार्यार्थं स्वेच्छया परमेश्वरी |
दैवाधीना न सा देवी यथा सर्वे सुरा नृप ||
हे नृप सभी देवताओं के भाँति वे जगदंबा दैवाधीन या कर्माधीन नही है वे तो स्वेच्छा से ही अवतार धारण करती है!
न कालवशगा नित्यं पुरूषार्थप्रवर्तिनी |
वे सनातनी चित् शक्ति नारायणी काल के भी परे है, वे काल से भी परे है, नित्या है, परमपुरूषार्थकी प्रवर्तिनी ब्रह्मविद्या है!
यया व्याप्तमिदं सर्वं भगवत्या चराचरम् |
जो भगवती इस चराचर विश्व के व्याप्त करती है, जो सर्वव्यापक है!
©️निरंजन मनमाडकर पुणे महाराष्ट्र!
०९ /०७/२०२० ॐ नमश्चण्डिकायै