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जिस विकास कार्यों पर है अखिलेश को नाज, वही बने हार के कारण

जिस विकास कार्यों पर है अखिलेश को नाज, वही बने हार के कारण
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इस समय मैं कोरेना और पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए कोरेना पर्यावरण जागरूकता अभियान शहीद सम्मान सायकिल यात्रा पर हूँ । समाजवादी चिंतक होने के नाते समाजवाद की दिशा और दशा जानने के लिए जब कोई समाजवादी कार्यकर्ता या नेता मिल जाता है, तो कोरेना और पर्यावरण के प्रति उसे जागरूक करने के साथ साथ समाजवादी पार्टी और उसके कार्यकर्ताओं की कार्यशैली पर भी थोड़ी सी चर्चा कर लेता हूँ । इस यात्रा के दौरान जब मैं मैनपुरी जिले से छिबरामऊ पहुंचा, तो मुझे मेरे तीन मित्र लेने आए। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा शनिवार और रविवार को लॉक डाउन घोषित किया गया है, इसलिए दो दिन मुझे कन्नौज में विश्राम करना था। इसलिए अपनी साइकिल छिबरामऊ में एक परिचित के यहां रखने के बाद कन्नौज आ गए। क्योंकि वे तीनों मित्र कन्नौज में रहते हैं और इन्हीं तीनों मित्रों के ऊपर मेरे रहने खाने और विश्राम की जिम्मेदारी मैंने डाल रखी थी। रास्ते मे चर्चा के दौरान यशवीर भदौरिया और कल्लू नेता ने संदर्भित विषय पर चर्चा छेड़ दी। और उनका मानना था कि 2017 की हार विकास कार्यों और सुधारों के कारण अखिलेश हारे । हालांकि मैं उनकी बातों से पूरी तरह सहमत नही हूँ। लेकिन उनका पक्ष सुनने के बाद इस बात से पूरी तरह सहमत हूँ कि विकास कार्य और उच्च लेबल के सुधार के बाद चुनाव की रणनीति और प्रचार के मुद्दों को प्रस्तुत करने का तरीका अलग होना चाहिए था। जो समाजवादी पार्टी नही कर सकी ।

अब हम मूल विषय पर आते है, और एक एक करके आपको समझाते हैं कि किस प्रकार विकास कार्य और उच्चकोटि के प्रशासनिक सुधार 2017 के विधानसभा चुनाव में हार के कारण बने ।

एक आम कार्यकर्ता की तरह मैं भी इस बात पर विश्वास करता हूँ कि चुनाव में भावात्मक मुद्दे और जनता के प्रति कार्यकर्ताओं का व्यवहार और नेताओं की जनता में छवि महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने भाजपा से सबक नही लिया । लक्ष्य कहीं और था और तीर कहीं और चला रहे थे। जैसे आगामी विधानसभा चुनाव में जिस पर तीर चलाएंगे, उन योगी आदित्यनाथ जी को वे कहीं सामने रखेंगे ही नही। चुनाव योगी के नाम और नेतृत्व में नही लड़ा जाएगा । मोदी के नाम पर लड़ा जाएगा । और मोदी का उत्तर प्रदेश की जनता के उत्पीड़न से कोई संबंध ही नही है । और सामने पाकर जब समाजवादी पार्टी मोदी पर प्रहार करेंगे, तो वह जनता ही नही, किसी को भी नागवार गुजरेगा । इसीलिए मैं अपने कई लेखों में इस बात का जिक्र करता हूँ कि अखिलेश को दिल्ली पर अपने दावे को नकारना नही चाहिए। इससे दिल्ली मिले या न मिले, लेकिन अगर दावा करते रहते हैं, तो दूसरे प्रदेशों में सपा मजबूत होगी, और उत्तर प्रदेश में जब मोदी चुनाव करने आएंगे, तो जनता को लगेगा कि मोदी अखिलेश को यहां इसलिए रोकने आये हैं कि वे उनके लिए चुनौती न बन जाएं ।

अब हम विषय संगत बात कर लेते हैं । सबसे पहले 100 नंबर की बात कर लेते हैं। उत्तर प्रदेश में अपराध को रोकने और अपराधियों पर त्वरित कार्रवाई करने के साथ पीड़ित को न्याय दिलाने के लिए डायल 100 लांच की । उत्तर प्रदेश में कहीं पर कोई घटना होती, लोग 100 नंबर डायल करते और 20 मिनट के अंदर पुलिस आ जाती। इससे प्रदेश की जनता को राहत मिली। लेकिन सपा नेताओं का नुकसान हो गया। क्योंकि की गांव में जब कोई झगड़ा होता, तो आपसी समझौते के लिए लोग सपा नेताओं के पास आते । वे दोनों का पक्ष सुनते और समझा बुझा कर दोनों में समझौता करा देते । या किसी के साथ कोई वारदात हो जाती, तो वह अपने स्थानीय नेता के पास जाता। अपने साथ घटी घटना का उल्लेख करता और इसके नेताजी थाने पर एक फोन कर देते, और उसकी एफआईआर दर्ज हो जाती । अगर किसी को प्रताड़ित करने की गरज से कोई पुलिस द्वारा परेशान कराता, तो नेताजी के पास जाकर वह सही प्रकरण से अवगत कराता और राजनीतिक हस्तक्षेप दे उसका उत्पीड़न नही होता। या किसी समाजवादी पार्टी के किसी मतदाता की पारिवारिक लड़ाई होती, दोनों सपा के वोटर समझ कर नेता ऐसी धाराओं को हटवा देता, जिससे उसका परिवार तबाह हो जाता। इन सभी सेवाओं से क्षेत्र की जनता से उसका सामाजिक संबंध बनता और उसका सामाजिक दायरा बढ़ता। और इसी सामाजिक दायरे का लाभ उसे चुनाव में मिलता। कहीं से कोई नुकसान होता, तो इस प्रकार बने नए संबंधों के वोटों से उसकी भरपाई हो जाती । लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव द्वारा डायल 100 चला देने से इस प्रकार के प्रकरण में जनता ने सपा नेताओं के पास जाना छोड़ दिया। जब कोई घटना होती, तो लोग सीधे 100 नंबर डायल करते, तुरंत पुलिस पहुचती। एफआईआर भी दर्ज हो जाती और कार्रवाई भी होती । डायल 100 का सीधा संबंध लखनऊ से होने के कारण कोई भी नेता किसी प्रकार का हस्तक्षेप भी नही कर सकता था। मेरे अपने अध्ययन के अनुसार एक विधानसभा में प्रतिवर्ष करीब 150 घटनाएं ऐसी होती हैं, जिसमे पहले सपा नेता जनता की किसी न किस रूप में मदद करते आये हैं । इस प्रकार पांच वर्ष में करीब 750 घटनाएं होती हैं । ऐसी घटनाओं में काम से कम दो परिवार यानी 10 वोटों का लाभ मिलता रहा है । यानी एक विधानसभा में नेताओं की इस प्रकार की मदद से करीब 7500 वोटों की मदद मिलती रही है। अगर किसी कारण बस कुछ लोग नाराज भी हो जाएं, तो फिर भी करीब 2500 वोट का लाभ तो होता रहा है। जब मैं इस दृष्टि से विचार करता हूँ, तो यह बात साफ हो जाती है कि जिन विधानसभाओं में 3000 तक वोटों से हार हुई, उसका कारण अखिलेश यादव द्वारा लांच की गई डायल 100 रही है ।

मैं इसे अर्ध सत्य मानता हूं । निश्चित रूप से मैं ही दुनिया के हर व्यक्ति ने अखिलेश यादव द्वारा लांच की गई डायल 100 की प्रशंसा की। उसके लांच होने से अपराध और अपराधियों के खिलाफ प्रभावी कदम उठाए गए । प्रदेश की जनता ने चैन की सांस ली। आम जनता को राहत मिली। लेकिन प्रचार में अखिलेश यादव सहित सभी सपा नेताओं ने ढिढोरा तो खूब पीटा, पर वह तरीका गलत था। अखिलेश यादव सहित सभी नेताओं को अपने भाषणों में यह कहना चाहिए था कि हमारी सरकार ने डायल 100 देकर नेताओं का चक्कर लगाने से आपको बचा लिया । हो सकता था नेता आ0के साथ पक्षपात कर सकता था । डायल 100 से वह भी गुंजाइश हमने खत्म कर दी। डायल 100 लांच होने की वजह से आपकी एफआईआर लिखने के लिए हर थानेदार बाध्य हो गया और आपका उत्पीड़न रोकना उसकी नैतिक जिम्मेदारी हो गई। अब चाहै पक्ष का नेता हो या विपक्ष का, डायल 100 की वजह से पुलिस या किसी व्यक्ति द्वारा आपका उत्पीड़न नही करा सकता। तो फिर इससे लाभ मिलता। इसका अभिप्राय यह है की जो नुकसान डायल 100 से प्रत्यक्ष रूप से हुआ, उसकी भरपाई की जा सकती थी।

यही हाल डायल 102 और 108 को लेकर रहा। पहले जब कोई बीमार होता था, तो लोग नेता के पास जाते, हॉस्पिटल में भर्ती कराने से लेकर उनकी दवा दारू में नेता सहयोग करता। मदद के रूप में थोड़ा ही सही, पर आर्थिक मदद जरूर करता। जब तक वह पेशेंट ठीक नही हो जाता, टैब तक हॉस्पिटल सुबह शाम उसे देखने जाता । इस तरह से उसके अपने विधानसभा के लोगों से आत्मीय संबंध बनते और उसका लाभ चुनाव में मिलता। मेरे अपने अध्ययन के अनुसार हर विधानसभा में एक साल में करीब चार सौ ऐसी छोटी बडी बीमारियों से लोग पीड़ित होते। यानी 5 साल में करीब दो हजार लोगों की मदद स्थानीय नेता इस प्रकार करता। इस प्रकार पांच साल में सभी नेता मिल कर 20 हजार वोटों का इजाफा करते । लेकिन अखिलेश यादव द्वारा अपनी सरकार द्वरा डायल102 और 108 लांच करने और उसे प्रभावी ढंग से लागू कराने की वजह से उनकी सरकार के दौरान जब कोई बीमार पड़ता, तो लोग अपने रिश्तेदारों, सगे संबंधियों को फोन करने के पहले डायल 102 या 108 को फोन करते। कुछ ही समय मे वह गाड़ी पहुचती और मरीज या प्रसूता की हॉस्पिटल में भर्ती करा देती । इस तरह जान कल्याण का एक उदाहरण अखिलेश सरकार ने प्रस्तुत किया। लेकिन प्रचार की रणनीति की वजह सेजो 30 हजार वोटों का समाजवादी पार्टी को फायदा होना चाहिए था, वह पूरा नही मिल सका । इसकी वजह से सपा के वोट तो बढ़े, लेकिन उतने नही बढ़े, जितना सेवा कार्य प्रति विधानसभा वाइज हुआ था। इसका भी समाजवादी प्रचार के दौरान ढिढोरा तो खूब पीटा, लेकिन उसका प्रस्तुति करण कैसे करना चाहिये, इसमें चूक कर गए। इस कारण भी 2017 विधानसभा चुनाव में नुकसान उठाना पड़ा। 5 हजार से लेकर 10 हजार वोटों से जो हार हुई, अगर ठीक से रणनीति बनाई गई होती, हार को जीत में तब्दील किया जा सकता था ।

यही हाल लखनऊ आगरा एक्सप्रेस वे का रहा। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सबसे कम समय मे और सबसे कम बजट में जो उल्लेखनीय कार्य किया । वह एक नजीर बन गया । उस पर लड़ाकू विमान उतार कर वायुसेना ने अखिलेश यादव सरकार में बनी इस सड़क पर गुणवत्ता की मुहर लगा दी। लेकिन विपक्ष ने गांव के लोगों के बीच नकारात्मक प्रचार करके चुनाव में अखिलेश को नुकसान पहुँचा दिया। वे एक्सप्रेस वे की बुराई करते, और समाजवादी कार्यकर्ता से ही हामी भरवा लेते है । आज भी कई सपा नेता एक्सप्रेस वे की बुराई करते सुने जा सकते हैं । उन्हें एक्सप्रेस वे के लाभ नही दिखाई दिया। उनके घर का कोई बीमार हुआ, वे एक्सप्रेस वे कारण ही उसे लखनऊ या सैफई पीजीआई में भर्ती करा आये, जिससे उसे जीवनदान मिला । परिवार का एक सदस्य जिंदा बच गया, यह उन्हें दिखाई नही देता । लोगों को कोई आकस्मिक जरूरत पड़ती है, चंद घंटों में लखनऊ या दिल्ली पहुच जाते हैं, यह लाभ उन्हें नही दिखाई देता है । चंद घंटों में कहीं दूर नौकरी करने वाला उनकी आंखों के सामने होता है , यह उन्हें नही दिखाई देता है । एक्सप्रेस वे की वजह से उनकी बाजार में किसी वस्तु की शॉर्टेज यही होती, यह उनकी समझ मे यही आता। केवल यह समझ मे आता है कि गांव की सड़क क्यों नही एक्सप्रेस वे की तरह बनी हुई हैं।

इसी तरह अखिलेश यादव सरकार की हर योजना बेमिसाल है। उससे लोगों का जीवन स्तर भी बढ़ा, लोगों को राहत भी मिली। किंतु उससे आये परिवर्तनों के अनुरूप प्रचार रणनीति न वना पाने की वजह से 2017 का जीता जिताया चुनाव समाजवादी पार्टी हार गई ।

प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

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