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उत्तर प्रदेश

जिउतिया स्पेशल...

जिउतिया स्पेशल...
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गांव से सोलह सौ किलोमीटर दूर जब किसी एलईडी लाइटेड और फुल्ली ए.सी ऑफिस में बैठकर लैपटॉप पर इंडेक्स फिंगर को रगड़ रहा होता हूँ ना.... तो मन करता है हमेशा के लिए इस रगड़ाहट से कहीं दूर चला जाऊं जहां शांति और सुकून महसूस किया जा सके ।

दिल करता है चला जाऊं वापस अपने गांव और बिना मोल भाव किये खरीद लूँ मनोहर चचा के दुकान से बड़का निप्पो बैटरी और प्रवाहित कर दूँ डी.सी करंट पुरानी पड़ी हुई रेडियों में, जिसे बाबू जी सरसों और मकई बेचकर ख़रीदे थे। दिल करता है उसी पे फिर से रामायण का एपिसोड सुनूँ, जयमाला, सखी सहेली, ताजा खबरें, फ़िल्मी गाने और गीत सुनूँ। जब स्टेशन की लाइन कट जाए तो एंटीना को एक हाथ बाहर खींचते हुए छत पे चहड़ जाऊं, ट्यूनिंग करते हुए कोई प्यारा सा गीत लगाऊं और जब बबिता भी छत पे दिख जाए तो आवाज तेज करते हुए उसे अपने प्यार का अहसास करवाऊं, उसके मुस्कुराने पे मैं भी मुस्कुराऊं।

दिल करता है कभी पुरानी पड़ी साइकिल को बनवाते हुए फिर से अपने हरामखोर दोस्तों के साथ मैदान में रेस लगा लूँ, पानी से भरे खेत में साइकिल को डबल स्टैंड पे खड़ा करके तेजी से पैंडिल को घुमाऊं, घुमते चक्के की गति निकालूँ, पानी के उड़ते हुए फुहारों में अपना खोया हुआ बचपन को ज़ूम इन और ज़ूम आउट करूँ। घर लौटते समय बबिता को देख कर लहरिया कट में साइकिल को लहराते हुए बेवजह उसकी घण्टियाँ बजाऊं, एक हाथ से हैंडिल पकड़कर दूसरी हाथ से बालों को सुलझाऊँ।

दिल करता है फिर से साइकिल के कैरियर पे बीस किलो गेंहूँ लादकर, पुरानी ट्यूब से उसे बाँध लूँ और साइकिल को रेंगाते हुए बड़का बाजार ले जाकर महेंदर पासवान के मील में ये कहते हुए पिसवा लाऊँ कि ''पिछलका बेर भी अटवा मोटा पीस दलहो हल, अबकी बेर महीन पीसो खल''।

दिल करता है घर के सभी चाभियों में लगे ब्रांडेड रिंग को फेंक कर बोलबम या बाबाधाम का बदही लगा दूँ। घर में पड़े ऐनक को कॉलिन से ना पोछकर मुंह के भाप से अपना और बबिता का नाम लिखते हुए मिटाऊं। दतमन खत्म हो जाने पर घेरबारी में से अमरुद का दतमन तोड़कर दांत को चमकाऊँ, कभी माँ के कहने पर फिर से हनुमान मंदिर के चापाकल से दाल सिझाने वाला पानी ले आऊँ। मेरे रूठ जाने पर दादा जी के दिए पैसे को फिर से गोलकी के डिब्बे में रख आऊँ, सप्ताह भर में सारे पैसे को निकालूँ और बचपन के सारे खुशियों को खरीदकर करोड़पति बन जाऊं।

ताखे पे पड़ी पुरानी कॉपियों और किताबों में फिर से जींद लगाऊं, उसपे स्टीकर चिपकाकर सुंदर अक्षरों में नाम, वर्ग, विषय, रॉल नंबर और स्कूल का नाम लिखूं, हाथ में थूक लगाते हुए पन्नों को तेजी से पलटूँ, गणित की कॉपियों में गलत बनाये गए लघुत्तम, महत्तम और भिन्न के जोड़ को फिर से कॉपी के दाहिने भाग में रफ करते हुए बनाऊँ जिसे कॉपी चेक हो जाने के बाद मैंने कभी नहीं बनाया। उठा लूँ जूनियर इंग्लिश ट्रांसलेशन वाली किताब और एक ही दिन में प्रेजेंट, पास्ट और फ्यूचर टेंस का पूरा एक्सरसाइज बना डालूं। भार्गव पॉकेट डिक्शनरी से रोज सुबह उठकर पांच-पांच मीनिंग याद करूँ।

उठा लूँ माँ के हाथों से सिला अपना स्कूल का झोला, टांग लूँ उसे अपने कन्धों पर, शामिल हो जाऊं फिर से प्रार्थना में, बन जाऊं फिर से क्लास का मॉनिटर, बाएं हाथ पे तसिल कर रख लूँ हिंदी और अंग्रेजी का लिखना कॉपी। सर के चेक करने के बाद नाम पुकार, घिरनी की तरह नचाकर कर बाँट दूँ सारी कॉपियां। चला जाऊं घण्टी के पास और देर तक छुट्टी की घण्टियाँ बजाऊँ कि बच्चे ये कहते हुए स्कूल से बाहर निकले - "छुट्टी के बेलबा होलौ कुबेलबा"।

हाँ,..मैं खो जाना चाहता हूँ फिर से अपने अतीत में, बचपन की याद में, गांव के उन गलियों में, चौराहों में, खेतों और खलिहानों में, किस्सों में, चुटकुलों में, बाबा के प्यार और माई के दुलार में जहां 4जी और 5जी के रगड़ाहट से बचकर शांति और सुकून महसूस किया जा सके ।

( दिल कर रहा है अभी ट्रेन पकड़कर घर जाऊं और माँ के हाथों का बना अठारह प्रकार का तरकारी, दाल और भात खाऊं। माँ मुझे जिउतिया पहनाये और मैं उसे पहनकर फिर माँ को पहनाऊँ।)

जिउतिया की असीम शुभकामनाएं। आप सब भी भरपेट दाल भात और तरकारी लपेटिये।

जय हो

अभिषेक आर्यन

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