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उत्तर प्रदेश

बस यही कुम्भ है.....धर्म की जय हो

बस यही कुम्भ है.....धर्म की जय हो
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उनतीस राज्य, हजारों भाषाएं, हजारों जातियाँ, काले-गोरे, धनी-निर्धन, विद्वान-निरक्षर... जैसे पूरे विश्व को एक घाट पर ला दिया है कुम्भ मेले ने! दिन भर में बीसों बार ताना मारने वाली बहु आज सास की उँगली पकड़ कर धीरे धीरे ले चल रही है। कभी भिखमंगे को चवन्नी न देने वाले कंजूस बूढ़े बाबा आज हर भिखारी के कटोरे में सिक्का डाल रहे हैं। जिस देश में सड़क पर तड़पते व्यक्ति को कोई उठाने वाला नहीं मिलता, उसी देश में किसी के माथे से बोरा गिर जाने पर दसियों लोग उठाने के लिए आगे बढ़ आते हैं। भाषा, जाति, कुल, गोत्र, परम्परा आदि के नाम पर लड़ जाने वाले लोग यहाँ साथ चलने वाले से उसका नाम तक नहीं पूछते। सब चले जा रहे हैं धर्म की ओर... सब बहे जा रहे हैं गङ्गा की ओर... यहाँ न कोई स्त्री है न पुरुष, न धनी है न दरिद्र, सब श्रद्धालु हैं। यह कुम्भ है...

मौनी अमावस के दिन नहाने उतरी चार करोड़ लोगों की भीड़ वस्तुतः चार करोड़ लोगों की भीड़ नहीं, चार करोड़ निश्छल हृदयों की पवित्र आस्थाओं की भीड़ है। हाँ भाई, निश्छल ही हैं ये लोग... जीवन की मजबूरियों ने कभी-कभी बेईमान बनने पर मजबूर कर दिया है, नहीं तो किसी का कुछ बिगाड़ना नहीं चाहते ये लोग... किसी का कुछ बिगाड़ते भी नहीं। कभी किसी देश में घुसपैठी नहीं भेजते, कभी किसी देश पर आतंकवादी हमला नहीं करते... यह दुनिया की एकमात्र ऐसी सभ्यता है जहाँ चार करोड़ लोग इकट्ठा होते हैं तो "विश्व का कल्याण हो" चिल्लाते हैं, नहीं तो इसी धरती पर हजार-दस हजार की भीड़ इकट्ठी होते ही दुनिया को लूट लेने के नारे लगते हैं। कुम्भ मात्र एक धार्मिक मेले का नाम नहीं, दुनिया की सबसे पवित्र भीड़ का नाम है। कुम्भ भारत की आत्मा का नाम है।

लोग कहते हैं कि गङ्गा स्नान पाप धोने के लिए किया जाता है। पूरी तरह फर्जी बात है यह, कोई यहाँ पाप धोने नहीं आता... गङ्गा में डुबकी लगाते समय कोई नहीं कहता कि मइया मेरा पाप धो देना। जो कुछ कहने की सोच कर आते हैं वे भी डुबकी लगाते समय सब भूल जाते हैं। कोई कुछ नहीं कहता... यह भीड़ बस आस्था ले कर अपनी माँ के पास आई है। सरस्वती नदी के सूखने पर जब उसके तट के गाँवों में भयानक दुर्भिक्ष फैला तो पानी की खोज में निकले लोग गङ्गा के तट पर आ कर बसे, गङ्गा तबसे उस सभी पूर्वजों और उनके समस्त वंशजो की माता है। गङ्गा ही क्यों, यमुना,गंडक, कावेरी, नर्मदा सभी माएँ हैं। सनातन कृतघ्न नहीं है, वह उपकार का बदला श्रद्धा से चुकाता है। गङ्गा के ये असंख्य बेटे गङ्गा से कुछ माँगने नहीं जाते, बस उसकी गोद मे कुछ पल खेलने, उछलने जाते हैं। एक निश्छल बच्चे की तरह... माँ को ममता का सुख देने... माँ भी तो अपने धूल में लिपटे बच्चे को गोद मे उठा कर हुलस पड़ती है न? गङ्गा मैया भी हुलसने लगती है कुम्भ में... कभी कोई बच्चा कुछ मांगता भी है तो उसी तरह, जिस तरह माँ की गोद मे चढ़ कर अगराया हुआ कोई बच्चा तुतलाते हुए कहता है," मम्मी, मुधे लिमोत वाला काल खलीद दो न..."

कभी-कभी डुबकी लगाते समय रोने लगते हैं लोग! मनुष्य की भावनाएं जब उफान के चरम पर हों तो अश्रु निकलने लगते हैं। किसी घोर दुख को झेलता कोई व्यक्ति बिना समझे ही रो देता है। क्यों? यह वह भी नहीं जानता.. बस माँ जान जाती है कि उसके बेटे की आँखों से आँसू क्यों निकले हैं... पूरा करती है, जितना कर सकती है।

बस यही कुम्भ है... समुद्र मंथन, अमृत कलश, अमृत का छलकना... यह कथा हो सकती है, पर माँ की गोद मे बच्चों का रोना परम् सत्य है।

मैं यहाँ लम्बी लम्बी हाँकता हूँ न? जानते हैं गङ्गा तट पर बीस घण्टे रह कर भी क्या कह पाए हम? बस इतना-" धर्म की जय हो"

बस यही मैं हूँ, और यही सनातन है।

पाप किसने किया था जो धोते, गङ्गा के बेटे पाप नहीं करते भाई....

सर्वेश तिवारी श्रीमुख

गोपालगंज, बिहार।

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