गिद्धों की घटती आबादी से रेबीज का बढ़ा खतरा
BY Anonymous11 Dec 2017 3:55 PM GMT
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Anonymous11 Dec 2017 3:55 PM GMT
बहराइच। आनंद प्रकाश गुप्ता
जिले के वन सम्पदाओं से घिरे अधिकांश क्षेत्रों मे पाये जाने वाले गिद्धों का प्रकृति में अतुलनीय योगदान रहा है। किन्तु धीरे धीरे विलुप्त हो रही यह प्रजाति से स्वचछ और निर्मल वातावरण करने वाले गिद्ध हमारी प्रकृति का हिस्सा न हो तो हमारी धरती हड्डियों और सड़े मांस का ढेर हो जाती। गिद्ध प्रकृति का सफाईकर्मी होने के साथ ही समाज में कई प्रकार की सुविधा देते हैं। जिसमें सबसे बड़ा है मृत शरीर का भक्षण, गिद्ध हमे कई तरह की बीमारियों से बचाता है। गिद्धों की घटती संख्या से मृत शरीरों के निस्तारण की सबसे ज्यादा समस्या आ गई है। जिसके कारण आवारा कुत्तों और चूहों की संख्या बढ़ी है, ये मृत मवेशियों के मांस का भक्षण करते हैं जिनसे रेबीज रोग का खतरा फैलने की आशंका रहती है।
मनुष्य और रासायिनक दवाओ के वायरस से गिद्धों की घटती संख्या
गिद्धों की संख्या कम हो रही है इसको लेकर सत्तर के दशक से लेकर अभी तक वैज्ञानिकों ने कई रिसर्च किया है। प्रदेश के मुख्य वन संरक्षक के अनुसार पहले माना जाता था कि पशुओं के मृत शरीर में डीडीटी का अंश बढ़ेने के कारण यह गिद्धों के शरीर में पहुंच गया जिससे उनकी मौत हो जारी है लेकिन उसके बाद वैज्ञानिकों का मानना है कि गिद्धों पर किसी वायरस का हमला हुआ है। जिस कारण वह सुस्त हो जाते हैं। गिद्ध अपने शरीर का तापमान कम करने कि लिए ऊंची उड़ान भरते हैं, ऊंचाई में वायुमंडल में ऊपर का तापमान कम होता है। वहां जाकर ठंढक प्राप्त करते हैं। वायरस के आक्रमण के कारण वह सुस्त हो गए और उड़ान नहीं भर पा रहे थे। जिससे बढ़ते तापमान के कारण उनके शरीर में पानी की कमी हो गई। इससे यूरिक एसिड के सफेद कण इनके हृदय, लीवर और किडनी में जम जाते हैं। जिससे उनकी मौत हो जाती है। रिसर्च में पता चला कि पशुओं में बुखार, सूजन और दर्द कम करने के लिए डायक्लोफेनेक दवाई दी जाती है। मृत पशु को गिद्ध जब खाते हैं तो उनके शरीर में यह दवा पहुंच जाती है। जिससे गिद्धों के किडनी में गाउट नामक रोग हो जाता है और गिद्धों की मृत्यु हो जाती है। इस रिसर्च के बाद 11 मई 2006 को सरकार ने इस दवा को बैन कर दिया। जिसमें इसका उत्पादन और बिक्री कोई नहीं कर सकता। इसके साथ ही पेड़ों की कटाई-छंटाई के कारण गिद्धों के घोंसले खत्म हो गए। साथ ही खनन में होने वाले धमाके कारण भी गिद्धों की संख्या कम हो गई।
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