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उत्तर प्रदेश

निकाय चुनाव के बागियों से भाजपा परेशान, कई मंत्रियों पर गिरेगी गाज,

निकाय चुनाव के बागियों से भाजपा परेशान, कई मंत्रियों पर गिरेगी गाज,
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निकाय चुनाव में गढ़ों में भाजपा की हार के कारण जानने के लिए हुई समीक्षा ने पार्टी नेताओं को चिंता में डाल दिया है। शुरुआती रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आने के बाद कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव में भाजपा का अच्छा साथ देने वाले इलाकों में निकाय चुनाव में पार्टी की हार और कम वोट मिलने की वजह स्थानीय नेताओं, सांसदों और विधायकों का ही नहीं, बल्कि प्रदेश सरकार में शामिल कुछ मंत्रियों का भी रवैया रहा।
कहीं मनपसंद उम्मीदवार न होने के कारण इन्होंने किसी और को खड़ा कर दिया तो कुछ स्थानों पर अंदरखाने पार्टी के अधिकृत उम्मीदवारों को हराने की कोशिश की। कुछ जगह बाहर से आकर भाजपा से सांसद, विधायक और मंत्री बनने वालों के समर्थकों को टिकट दिया जाना स्थानीय कार्यकर्ताओं को हजम नहीं हुआ। उन्होंने जमकर विरोध किया। प्रदेश नेतृत्व इन पर कठोर कार्रवाई के पक्ष में है।
संगठनात्मक पुनर्गठन के साथ ही प्रदेश के मंत्रिमंडल पुनर्गठन में इसका असर दिख सकता है। कुछ की विदाई हो सकती है तो कुछ के विभाग बदले जा सकते हैं।
सभी छह क्षेत्रों में कराई गई समीक्षा से प्रदेश नेतृत्व को पता चला है कि कुछ मंत्रियों के आचार-व्यवहार से नाराज लोगों ने भाजपा को वोट नहीं दिए। वहीं कुछ ने अपनी पसंद के उम्मीदवार को टिकट दिलाने के बाद नाराज कार्यकर्ताओं को मनाने की कोशिश ही नहीं की। इससे भी नतीजे प्रभावित हुए।
प्रदेश नेतृत्व भी मजबूर
पार्टी का प्रदेश नेतृत्व भले ही बागियों और भितरघातियों पर कठोर कार्रवाई के पक्ष में हो, पर मंत्रियों सांसदों, विधायकों के कठघरे में खड़े होने से उसके हाथ बंध गए हैं। प्रदेश नेतृत्व की मुश्किल यह है कि राष्ट्रीय नेतृत्व से बात किए बिना इन पर कैसे और किस प्रकार कार्रवाई करे।
एक तो निकाय चुनाव में इतनी बड़ी संख्या में पार्टी के कार्यकर्ता बागी होकर लड़े हैं कि सब पर कार्रवाई होने से एक-एक वार्ड में दो से अधिक नए गुट बन जाएंगे। इससे आगे की चुनौतियों से पार पाने में मुश्किल होगी। स्थानीय बड़े नेताओं, सांसदों और विधायकों पर कार्रवाई से भी पार्टी की किरकिरी होने और नई मुश्किल खड़ी होने का खतरा नजर आ रहा है।
यह भी है वजह
पार्टी नेतृत्व को आशंका कि कार्रवाई से लगभग डेढ़ साल बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में भी समीकरण गड़बड़ा सकता है। भाजपा नेताओं को पता है कि लोकसभा चुनाव काफी चुनौतीपूर्ण रहने वाला है। विपक्ष उस चुनाव में गठबंधन समेत हर वह फॉर्मूला अपनाने की कोशिश करेगा जो भाजपा की सत्ता में वापसी न होने दे। ऐसे में अगर किसी कार्रवाई से भाजपा में और बिखराव हो गया तो मिशन 2019 की राह मुश्किल हो सकती है।
भाजपा की एक मुश्किल यह भी
सांसद और विधायकों पर अधिकतम यही कार्रवाई हो सकती है कि उन्हें पार्टी से निकाल दिया जाए, पर, भाजपा के एक प्रमुख पदाधिकारी की मानें तो रणनीतिक दृष्टि से यह बहुत ठीक नहीं लगता। इससे संबंधित सांसद या विधायक को सदन से लेकर सड़क तक मनमानी की स्वतंत्रता मिल जाएगी।
इसका फायदा विपक्ष भी उठा सकता है। पार्टी के पास पुख्ता सूचना है कि दूसरे दलों से आए कुछ सांसद टिकट कटने की आशंका देख दूसरे ठिकाने तलाशने लगे हैं। ऐसे में कोई कार्रवाई इन्हें मनमानी की पूरी छूट दे देगी। सूत्रों के अनुसार, पार्टी के लिए एक मुश्किल कुछ स्थानों पर सांसदों के तेवर भी हैं। इनके दूसरे दलों से संपर्क की सूचनाओं ने भी पार्टी की चिंता बढ़ा दी है।
गुजरात चुनाव बाद फैसला
भाजपा के उच्च पदस्थ सूत्र बताते हैं कि इस बारे में कोई फैसला गुजरात चुनाव के बाद ही होगा। वैसे प्रदेश संगठन का मन है कि एक-दो बड़े लोगों पर कार्रवाई करना सही रहेगा। इससे संदेश ठीक जाएगा और दूसरों को भी लगेगा कि उनकी मनमानी के आगे पार्टी झुकने वाली नहीं। हालांकि इस बारे में फैसला केंद्रीय नेतृत्व से बातचीत के बाद ही हो पाने की संभावना है।
मामले पर भाजपा के प्रदेश महामंत्री विजय बहादुर पाठक का कहना है कि लोकसभा चुनाव से लेकर अब तक हम अपना मत प्रतिशत बनाए हुए हैं, यह उपलब्धि है। नतीजों ने जनता के भाजपा के साथ होने की बात को एक बार फिर प्रमाणित कर दिया है। सभी छह क्षेत्रों में गहराई से समीक्षा की गई है। कुछ बातें नेतृत्व की जानकारी में आई हैं। उन्हें ठीक किया जाएगा।
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