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दिल्ली मेें किसान मुक्ति संसद ने भरी हुंकार, देश भर के करीब 180 किसान संगठन हुए शामिल

दिल्ली मेें किसान मुक्ति संसद ने भरी हुंकार, देश भर के करीब 180 किसान संगठन हुए शामिल
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संसद का शीत कालीन सत्र शुरू होने से पहले देश भर के किसानों ने सोमवार को संसद मार्ग पर किसान मुक्ति संसद लगाकर अपने हक के लिए हुंकार भरी। अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के बैनर तले आयोजित संसद की शुरुआत आत्महत्या करने वाले किसान परिवार की 545 महिलाओं से हुई।
करीब 180 किसान संगठनों की किसान मुक्ति संसद में दो बिल पास किए गए। इनमें केंद्र सरकार से मांग की कि स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के अनुसार लाभकारी कीमतें उत्पादन लागत से 50 फीसदी ज्यादा हों और सभी तरह के कृषि ऋण एक बार माफ किए जाएं।
मंगलवार को किसान मुक्ति संसद फिर बैठेगी। इसमें बिल को लागू करने से जुड़ी एक्शन प्लान पर चर्चा होगी। हालांकि, किसानों ने दो दिवसीय संसद का एलान किया है, लेकिन सरकार से सकारात्मक जवाब न मिलने पर इसे अनिश्चितकालीन किया जा सकता है।
समाजसेवी मेधा पाटकर की अध्यक्षता में आयोजित किसान मुक्ति संसद की शुरुआत में सिर्फ महिलाओं ने अपनी बात रखी। इसमें महाराष्ट्र की युवा किसान पूजा मोरे ने कहा, यह सरकार बदलने नहीं व्यवस्था बदलने की लड़ाई है। उन्होंने बताया कि उनकी पंचायत में करीब 150 विधवा महिलाएं हैं, जिनके पति किसान थे और जान दे चुके हैं।
वहीं, कविता कुरूघंटी ने महिला किसानों की समस्याओं पर चर्चा करते हुए किसानों की कर्जमाफी व लागत के डेढ़ गुने दाम पर समर्थन मूल्य तय करने के लिए संसद से बिल पारित करने की जरूरत पर जोर दिया। मेधा पाटकर ने कहा कि महिला संसद के माध्यम से किसान मुक्ति संसद के सामने किसानों, खेतिहर मजदूरों, आदिवासियों, भूमिहीनों, बंटाईदारों, मछुआरों के जीवन में आमूल-चूल परिवर्तन के लिए बिल पारित किया जा रहा है।
उन्होंने विकास के मौजूदा मॉडल पर सवाल उठाते हुए कहा कि वह आज के विकास से होने वाले विनाश के खिलाफ है। महिला संसद पूरे देश का विकास चाहती है।
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