PoK के 73 फीसदी लोग चाहते हैं पाक हुकूमत से आजादी
BY Anonymous13 Sep 2017 4:11 PM GMT
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Anonymous13 Sep 2017 4:11 PM GMT
पाकिस्तान अक्सर दावा करता है कि उसके अधीन कश्मीर का जो हिस्सा है वहां के लोगों में पाक सरकार के प्रति कोई विरोध न होकर भारत के खिलाफ माहौल है। लेकिन इस पाकिस्तानी झूठ का पर्दाफाश रावलकोट के एक ऐसे अखबार के सर्वेक्षण ने किया है जिसे पाक सरकार ने बंद करा दिया है। इस सर्वे में करीब 73 फीसदी लोगों ने माना है कि वे पीओके में पाक सरकार का दखल नहीं चाहते हैं।
पाक सोशल मीडिया पर स्थानीय 'रिपब्लिकन चैनल' में प्रसारित इस सर्वे रिपोर्ट को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं। यह सर्वेक्षण रावलकोट से प्रकाशित होने वाले अखबार 'डेली मुजादाला' को पाक सरकार ने बंद करा दिया है लेकिन उसने पांच साल में पाक अधिकृत कश्मीर के भीतर एक सर्वे किया जिसमें लोगों से पाकिस्तान में रहने को लेकर सवाल पूछे गए।
चैनल द्वारा जारी सोशल मीडिया की एक छोटी सी रिपोर्ट में बताया गया कि सर्वेक्षण में 73 फीसदी लोगों ने पीओके के पाकिस्तान से अलग होने पर सहमति जताई है।
चैनल ने जब अखबार के संपादक हारिस क्वादर से बात की तो उन्होंने बताया कि - 'हमने पीओके के लोगों से दो तरह के सवाल पूछे। पहला यह कि क्या पीओके के लोग 1948 के कश्मीर की डेमोग्राफी को बदलना चाहते हैं। इस पर अधिकांश लोग सहमत दिखाई दिए।
जबकि दूसरे तरह के सवालों में पूछा गया कि क्या वे पाकिस्तान की हुकूमत को स्वीकार करते हैं? तो करीब 73 फीसदी लोगों ने कश्मीरी पाकिस्तान से आजादी का विकल्प चुना।' क्वादर ने स्वीकार किया कि पाक सरकार ने उनके खिलाफ नोटिस भेजकर अखबार का दफ्तर सील करा दिया है।
पीओके में उठती रही है आजादी की मांग
कश्मीर में आजादी के लिए जनमत संग्रह का मसला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाने वाला पाकिस्तान अपने ही प्रशासित कश्मीर में विरोध नहीं रोक पा रहा है। हाल ही में 18 अगस्त को पीओके स्थित जनदाली में जम्मू-कश्मीर राष्ट्रीय छात्र संघ ने विशाल रैली आयोजित करके आजादी के नारे लगाए।
इसी साल मई में पाक अधिकृत कश्मीर के हजीरा स्थित डिग्री कॉलेज में छात्रों ने पाकिस्तान के खिलाफ आवाज बुलंद की और कहा कि पाक सेना उन पर अत्याचार कर रही है। पीओके स्थित गिलगित और बाल्टिस्तान इलाके में भी पाकिस्तान पर आतंकियों की आड़ में उनका शोषण करने के आरोप लगे हैं। इसी तरह सिंध प्रांत में भी पाक सेना द्वारा वहां के नागरिकों पर अत्याचार को लेकर विरोध के स्वर उठते रहे हैं।
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