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उत्तर प्रदेश

छठें दिन माँ कात्यायनी देवी के इसी स्वरुप की उपासना करें

छठें दिन माँ कात्यायनी देवी के इसी स्वरुप की उपासना करें
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भगवती दुर्गा के छठें रूप का नाम कात्यायनी है। महर्षि कात्यायन के घर पुत्री के रूप में उत्पन्न हुई थी। आश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेकर शुक्ल सप्तमी, अष्टमी तथा नवमी तक तीन दिन उन्होंने कात्यायन ऋषि की पूजा ग्रहण कर दशमी को महिषासुर का वध किया था। इनका स्वरूप अत्यंत ही भव्य एवं दिव्य है। इनका वर्ण स्वर्ण के समान चमकीला, और भास्वर है। इनकी चार भुजाएँ हैं। माता जी का दाहिनी तरफ का ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में है तथा नीचे वाला वरमुद्रा में, बाई तरफ के ऊपर वाले हाथ में कमल पुष्प तथा नीचे वाले हाथ में तलवार है। इनका वाहन सिंह है।
दुर्गा पूजा के छठवें दिन इनके इसी स्वरुप की उपासना की जाती है। माँ कात्यायनी की भक्ति और उपासना द्वारा मनुष्यों को बड़ी सरलता से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति हो जाती है। नवरात्रि के 6 दिन देवी कात्यायनी के रूप में मां दुर्गा की पूजा इसकी बहुत महत्व है। योगियों और साधकों इस दिन पर आज्ञा चक्र पर तपस्या। इस दिन पर पूजा करते हुए मां को मानव के प्रस्ताव से सब कुछ। वह अपने भक्त को आशीर्वाद देता है। लाल और सफेद रंग के इस दिन पर पहनने के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए। कात्यायनी देवी का स्वरूप - दिव्य रुपा कात्यायनी देवी का शरीर सोने के समाना चमकीला है। चार भुजा धारी माँ कात्यायनी सिंह पर सवार हैं। अपने एक हाथ में तलवार और दूसरे में अपना प्रिय पुष्प कमल लिये हुए हैं। अन्य दो हाथ वरमुद्रा और अभयमुद्रा में हैं। इनका वाहन सिंह हैं। देवी कात्यायनी के नाम और जन्म से जुड़ी एक कथा प्रसिद्ध है। एक कथा के अनुसार एक वन में कत नाम के एक महर्षि थे उनका एक पुत्र था जिसका नाम कात्य रखा गया। इसके पश्चात कात्य गोत्र में महर्षि कात्यायन ने जन्म लिया। उनकी कोई संतान नहीं थी। मां भगवती को पुत्री के रूप में पाने की इच्छा रखते हुए उन्होंने पराम्बा की कठोर तपस्या की।
महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर देवी ने उन्हें पुत्री का वरदान दिया। कुछ समय बीतने के बाद राक्षस महिषासुर का अत्याचार अत्यधिक बढ़ गया। तब त्रिदेवों के तेज से एक कन्या ने जन्म लिया और उसका वध कर दिया। कात्य गोत्र में जन्म लेने के कारण देवी का नाम कात्यायनी पड़ गया। देवी कात्यायनी का मंत्र - चंद्र हासोज्ज वलकरा शार्दू लवर वाहनाद्य, कात्यायनी शुभं दद्या देवी दानव घातिनिद्यद्य ।
पूजा में उपयोगी खाद्य साम्रगी षष्ठी तिथि के दिन देवी के पूजन में मधु का महत्व बताया गया है। इस दिन प्रसाद में मधु यानि शहद का प्रयोग करना चाहिए। इसके प्रभाव से साधक सुंदर रूप प्राप्त करता है। मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी मानी गई हैं। शिक्षा प्राप्ति के क्षेत्र में प्रयासरत भक्तों को माता की अवश्य उपासना करनी चाहिए।

देवी कात्यायनी के मंत्र :
चन्द्रहासोज्जवलकरा शाईलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
माता कात्यायनी की ध्यान :
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्॥
स्वर्णाआज्ञा चक्र स्थितां षष्टम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रसन्नवदना पञ्वाधरां कांतकपोला तुंग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम॥
माता कात्यायनी की स्तोत्र पाठ :
कंचनाभा वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलां।
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकार भूषितां।
सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
परमांवदमयी देवि परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति,कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
देवी कात्यायनी की कवच :
कात्यायनी मुखं पातु कां स्वाहास्वरूपिणी।
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी॥
कल्याणी हृदयं पातु जया भगमालिनी॥
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