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बिस्मिल ने जेल में लिखा था 'मेरा रंग दे बसंती चोला', पढ़ें पूरा काकोरी कांड

बिस्मिल ने जेल में लिखा था मेरा रंग दे बसंती चोला, पढ़ें पूरा काकोरी कांड
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जिस प्रकार अंग्रेज सरकार की पुलिस चौकी को जला दिए जाने के कारण गोरखपुर का चौरीचौरा स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में दर्ज है, ठीक उसी तरह, लखनऊ के निकट काकोरी का ट्रेन एक्शन भी हमेशा चर्चा में रहा है। इसके कारण रामप्रसाद बिस्मिल, राजेंद्रनाथ लाहिड़ी, अशफाक उल्लाह खान और रोशन सिंह को फांसी की सजा मिली थी साथ ही कई क्रांतिकारियों को कारावास हुआ था।बैठक में तय हुआ कि सहारनपुर से लखनऊ आने वाली आठ डाउन पैसेंजर से रोजाना जाने वाले अंग्रेजों के खजाने को लूट लिया जाय। अगर सब कुछ ठीक रहा होता तो काकोरी ट्रेन एक्शन की घटना स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में आठ अगस्त की तिथि के साथ दर्ज होती, लेकिन आठ अगस्त को क्रांतिकारी इसमें असफल रहे थे।

वे करीब 10 मिनट देर से वहां पहुंचे थे और उनके पहुंचने के पहले ही ट्रेन निकल चुकी थी।आठ अगस्त को असफल रहने के बाद नए सिरे से योजना बनाई गई और इसे नौ अगस्त को अंजाम दिया गया। नौ अगस्त 1925 को क्रांतिकारी काकोरी स्टेशन पहुंच गए और उसी ट्रेन पर सवार हो गए।

ट्रेन को जंजीर खींचकर रोक लिया गया और योजना के अनुसार क्रांतिकारी अपने-अपने कामों में लग गए। गार्ड को पेट के बल लिटा दिया गया। खजाने के संदूक को नीचे गिरा दिया गया। पटरी के दोनों तरफ पिस्तौल लेकर कई क्रांतिकारी पहरा देने लगे। उस ट्रेन में कई ऐसे लोग भी थे जिनके पास हथियार थे, लेकिन किसी ने क्रांतिकारियों के विरोध का साहस नहीं किया।इस बीच, एक ट्रेन उधर से गुजरी तो क्रांतिकारियों लगा कि अंग्रेजों ने सैनिक भेज दिए हैं, लेकिन वह ट्रेन धड़धड़ाते हुए गुजर गई। इस एक्शन में चंद्रशेखर आजाद, अशफाक उल्लाह खान, राजेंद्रनाथ लाहिड़ी, शचींद्र नाथ बख्शी, केशव चक्रवर्ती, मुरारीलाल, मुकुंदीलाल, बनवारी लाल सहित कई क्रांतिकारी शामिल थे।

इसमें जर्मनी माउजर पिस्तौल का प्रयोग किया गया था और मन्मथनाथ गुप्त की गलती से गोली चल गई थी, जिससे एक यात्री की मौत हो गई थी। क्रांतिकारियों ने जल्द खजाना लूट लिया। साढ़े चार हजार की रकम मिली।घटना के बाद अंग्रेज सरकार घबरा गई और वह क्रांतिकारियों के पीछे हाथ धोकर पड़ गई।उन पर पांच हजार रुपये के इनाम घोषित किए गए और 40 क्रांतिकारी पकड़े गए, लेकिन आजाद फरार रहे और इलाहाबाद में घिर जाने पर शहीद हुए। बिस्मिल, अशफाक उल्लाह खान, रोशन सिंह और राजेंद्र नाथ लाहिड़ी को फांसी की सजा सुनाई गई।
शचींद्र नाथ सान्याल, मुकुंदी लाल, गोविद चरण, योगेशचंद्र चटर्जी और शचींद्र नाथ बख्शी को आजीवन कारावास की सजा हुई।

मन्मथनाथ गुप्त को 14 वर्ष तथा कई अन्य क्रांतिकारियों को तीन से 10 वर्ष तक की सजा हुई। लाहिड़ी को 17 दिसंबर 1927 को गोंडा जेल में तथा 19 दिसंबर को बिस्मिल को गोरखपुर जिला जेल, अशफाक उल्लाह खान को फैजाबाद जिला जेल और रोशन सिंह को इलाहाबाद के मलाका जेल में फांसी दी गई। जेल में बंद रहते हुए बिस्मिल ने मेरा रंग दे बसंती चोला गीत लिखा।


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