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व्यंग ही व्यंग

शत्रु बदला लेने के लिए कोई भी रास्ता चुन सकता है..

शत्रु बदला लेने के लिए कोई भी रास्ता चुन सकता है..
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गुस्से या बदले की भावना में बदला लेना या नुकसान पहुंचाना इंसानी फितरत है. बच्चे, बाप का कुछ नहीं बिगाड़ पायेंगे तो उनके मोटरसाइकिल की चाबी ही बेड के पीछे गिरा देंगे.. और पूछने पर घाघ की तरह चुप्प मार जायेंगे. मम्मी से नाराज हों तो नेलपॉलिश की शीशी खोलकर चलते बनगें.. बड़े भाई की मोटी किताब से कोई आठ पन्ना फाड़कर.. झाड़ी में फेंक आयेंगे...माट्साब की साईकिल के पहिये की छूछ्छी खोल ले जायेंगे. अपनी गुलेल से पड़ोसी का गमला या बल्ब उड़ा देंगे.

अब एक वाकया सुनिए!

एक बार मैं एक ट्रेन में सफर कर रहा था. उसी ट्रेन में एक रेलवे मेडिकल विभाग के लैब टैक्नीशियन अपने मित्रों से एक घटना का जिक्र कर रहें थे.. घटना कुछ यूं थी कि एक बार लैब टैक्नीशियन को किसी आकास्मिक कार्य हेतु अचानक से अपने घर जाना हुआ. जल्दी में वो रेल पास लेना भूल गये या पास उपलब्ध नहीं हुआ. ट्रेन में टीटी ने जब उनसे टिकट मांगा तो इन्होंने खुद को रेल कर्मी बताया. टीटी ने 'पास' दिखाने को कहा.. अब जब पास नहीं था, तो करते क्या! खुद को रेलवे कर्मचारी ही बताते रहे...किन्तु टीटी महोदय उनकी बात नहीं मानें.. टैक्नीशियन महोदय ने रेल के कुछ अधिकारियों-कर्मचारियों का हवाला देकर खुद को रेल परिवार का सदस्य बताने का हर संभव प्रयास किया लेकिन टीटी महोदय अपनी बात पर अड़े रहे और अंतोगत्वा टीटी साहब ने उसने पेनाल्टी वसूल ली..

बात आयी-गयी... कुछ छह माह बाद टीटी महोदय को कुछ मधुमेह रोग की आशंका लगी. उन्होंने अपने विभाग के रेलवे अस्पताल में डाक्टर से परामर्श लिया. डाक्टर साहब ने लक्षणों के आधार पर उनका यूरीन, लैब में जांच के लिए भेजा.. मेडिकल किताब पर नाम पता सब दर्ज था और इत्तेफाक देखिए टीटी साहब की वो किताब उसी लैब टैक्नीशियन के हाथ चली गई..जो ट्रेन में पेनाल्टी भरा था. लैब कर्मी उनका नाम पढ़ते ही जान गया कि यह वही साहब हैं जो ट्रेन में मुझ पर पेनाल्टी ठोंके थे.

कहानी अब यहाँ से शुरू होती है... लैब कर्मी के सामने वो मरीज...मरीज न होकर उसका शत्रु हो गया तथा उसने बदले की भावना में उनके यूरीन में एक चुटकी 'चीनी' मिला दिया. रिपोर्ट 4 पाजिटिव उतरी.....अब जब रिपोर्ट डाक्टर के पास गयी तो उन्होंने रिपोर्ट के हिसाब से शुगर की तगड़ी दवा लिखी.

चीनी बाहर से मिलाई गयी थी तो दवा तो ओवरडोज होनी ही थी.. सो दवा के ओवर डोज से टीटी साहब की हालत बिगड़ गयी.. वो हाइपोग्लाइसीमिया में चले गये. बिचारे लाद-फांद के रेलवे अस्पताल लाये गये... फिर जांच करायी गई.....ऊधर लैब कर्मी भी भरा बैठा था उसने फिर झोंक दिया "चीनी"......रिपोर्ट फिर जस की तस.. डाक्टर साहब हैरान....वो दवा देने से डर रहे थे.. लेकिन रोग है तो दवा तो देनी ही पड़ेगी.. अबकी दवा की खुराक थोड़ा कम किया. लेकिन दवा की वो खुराक भी ओवरडोज ही थी... टीटी साहब.. दूसरे दिन भी अचेत हो गये.. घरवाले फिर उनको अस्पताल लेकर आये..अब डाक्टर साहब की सारी डायग्नोसिस कबूतर हो गई.. बिचारे समझ नहीं पा रहे थे कि माजरा क्या है.. अबकी बार डाक्टर साहब खुद उनका यूरीन हाथ में थामकर लैब में गये और अपनी आंखों के सामने चेक करवाया. इस बार की रिपोर्ट नार्मल आयी.. डाक्टर साहब.. लैब टैक्नीशियन को घूरे.."अबे! रिपोर्ट तो नार्मल दिखा रहा है और तू कैसे करता है कि.. 4 पाजिटिव चली जाती थी.."

टैक्नीशियन ने घबराकर बताया कि " सर हम "चीनी" मिलाकर जांच करते हैं."

"चीनी मिलाकर!" डाक्टर साहब चौंक गये...

फिर टैक्नीशियन ने अपनी सारी बात-व्यथा बतायी....

डाक्टर साहब ने कहा.. "अबे! हमको बता देता. तू तो जान ले लेता उसकी.. खैर डाक्टर साहब ने फिर अपने हिसाब से मैनेज किया.

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मित्रों! इस वक्त, चाइना का हाल उस लैब टैक्नीशियन की तरह ही समझें.. वो अब कहां "चीनी" मिला दे कुछ कह नहीं सकते. इसलिए उसके लैब में यूरीन नहीं भेजना है.. क्योंकि शत्रु बदला लेने के लिए कोई भी रास्ता चुन सकता है..

रिवेश प्रताप सिंह

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