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व्यंग ही व्यंग

"योगी जी बतायें पूछ रही आवाम" व्यंग्यात्मक कविता:कृष्णेन्द्र राय

योगी जी बतायें पूछ रही आवाम व्यंग्यात्मक कविता:कृष्णेन्द्र राय
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"योगी जी बतायें पूछ रही आवाम"

ना लेते संज्ञान ।

आपके अधिकारी ।।

आपकी है सत्ता ।

फिर क्यों लाचारी ?

कथनी-करनी अलग ।

ना दिखे परिणाम ।।

योगी जी बतायें ।

पूछ रही आवाम ।।

लालफीताशाही ।

ना हुई दूर ।।

जमे जमाये अफ़सर ।

सपने चकनाचूर ?

व्यंग्यात्मक लेखक : कृष्णेन्द्र राय

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