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व्यंग ही व्यंग

"बढ़े बांग्लादेशी निकाल करो बाहर" व्यंग्यात्मक कविता: कृष्णेन्द्र राय

बढ़े बांग्लादेशी निकाल करो बाहर  व्यंग्यात्मक कविता: कृष्णेन्द्र राय
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बढ़े बांग्लादेशी ।

निकाल करो बाहर ।।

ढूँढ कर निकालो ।

छुपे गाँव शहर ।।

हो सकते घातक ।

दिमाग़ ख़ुराफ़ाती ।।

भेजो इनके मुल्क ।

चढ़े हमारे छाती ।।

निदान है ज़रूरी ।

घातक ये नासूर ।।

हम क्यों झेलें..?

हमारा क्या क़सूर...?

व्यंग्यात्मक लेखक : कृष्णेन्द्र राय

Krishnendra Rai

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