मड़ुआ भक्षी द्विज का राहुल के नाम पत्र
BY Anonymous3 April 2018 8:15 AM GMT
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Anonymous3 April 2018 8:15 AM GMT
प्रिय राहुल गाँधी जी!
सादर प्रणाम। पहले यह बता दूँ कि मैं आपके बाप-दादों का चारण-भाट नहीं हूँ, न ही मुझे यह कहने में रत्ती भर हिचकिचाहट है कि आप एक सिरे से न केवल अयोग्य हैं, बल्कि इस देश के नाम पर आपके बाप-दादा तक काले धब्बे रहे हैं, इसलिए डीएनए की बात न ही करें तो बेहतर है। यह जान लीजिए, भारत का एक सामान्य से सामान्य आदमी आपसे हर लिहाज से बेहतर है, बस कमी यह है कि वह किसी नेहरू या किसी छद्म नामधारी-गाँधी के घर नहीं पैदा हुआ।
आप आत्म-मंथन बहुत करते हैं सुना। कभी आत्म-मंथन करेंगे तो कुछ किताबें जरूर पढ़िएगा। किताबें सहायक होंगी। नाम मैं नहीं बताऊंगा, आपको गूगले सर्च आता ही है, न आता होगा तो अपने किसी कैंपेन मैनेज करने वाले बंदे से सर्च करवा लेंगे और पढ़ लेंगे। जब आप उसे पढ़ेंगे तो कसम से कहता हूँ, आप का चेहरा शर्म से झुक जाएगा। आपका चेहरा झुकेगा, क्योंकि आप देखेंगे कि जिन पादुका ढोने वाले तथाकथित विद्वानों से आपके बाप-दादाओं ने अपना गुणगान करवाया है, उन्हें भी उनके कुकर्मों को ढँकने में बड़ी मुश्किल हुई है।
ओह! मैं तो भूल ही गया, आपके पास तो शर्म है ही नहीं, आपका चेहरा क्यों झुकने लगा? अभी पुरानी बात नहीं हुई है, जब आप जनेऊ लहराते घूमते थे। कहाँ गया जनेऊ, है हिम्मत, तो दिखाइए कि आप जनेऊधारी द्विज हैं और फिर भी आप चाहते हैं कि आपके 'सवर्ण' भाई-बंधु झूठे मुकदमों में फँस कर अपनी जिंदगी चौपट करवाते रहें। आप फट से घुस जाएंगे इस तर्क के आवरण में कि मुझे सर्टिफिकेट नहीं चाहिए।
अगर आपको सर्टिफिकेट नहीं चाहिए फिर देने वाले कौन होते हैं आप? आप कौन होते हैं यह कहने वाले कि मेरे बाप-दादा अत्याचारी थे? है कोई प्रमाण आपके पास? यह दोगलापन बंद कीजिए, जिनके बाप-दादों ने देश पर राज किया है, वह किस खूबसूरती से अपने कुर्ते की जेब फटी दिखा देते हैं, यह देश ने खूब देखा है। आपके बाप-दादों ने भी बिना किसी पैकेज के लोगों की जमीनें छीनी हैं राहुल गाँधी जी, यह आप किताबें पढ़ेंगे तो आपको पता चल जाएगा। ओह मैं तो भूल गया था, आपने नेशनल हेराल्ड केस में पेशी के समय भी अपने कार्यकर्ताओं से नौटंकी करवाई थी। देश के राजा का डीएनए है भई, रक्षा तो होनी ही चाहिए।
मेरे बाप-दादे पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक अति पिछड़े, गरीब घर से आते हैं, जिन्होनें मड़ुआ और कोदो खाकर बचपन बिताया है। सॉरी आपको मड़ुआ नहीं मालूम होगा, क्योंकि जिनके घरों के लोग विदेश से वकालत पढ़ कर आते हैं और जिनके लिए पूरा स्वाधीनता संग्राम केवल 'हाई-क्लास सोसाइटी' का 'आइडियलिस्म' दिखाने का जरिया होता होता है, वे मड़ुआ नहीं खाते, बल्कि उनका अयोग्य डीएनए भी देश पर राज करने के लिए होता है, जैसा कि आपके उदाहरण से स्पष्ट है।
तो राहुल जी, मैं निहायत ही गरीब मड़ुआ भक्षी द्विज का डीएनए हूँ। आपको और आपके बाप-दादाओं को यह कहने या कहलवाने का आधिकार नहीं था कि मेरे पुरखे हत्यारे थे। यह सब उन्होनें न तो किया है और न ही आपके कहने भर से यह हो जाएगा। मैं लड़ूंगा जब तक मेरे जान में जान है, मैं हार भी जाऊँ तब भी लड़ूंगा, जानते हैं क्यों, क्योंकि मेरे लिए जनेऊ वोट पाने का जरिया भर नहीं है।
मिलिएगा आप चुनाव में, मेरी औकात जितनी होगी उतना डेंट मैं दूंगा आपको।
सादर
वर्तमान आरक्षण नीति विरोधी,
मड़ुआ भक्षी द्विज का डीएनए
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