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व्यंग ही व्यंग

मेघदूत (व्यंग्य)

मेघदूत (व्यंग्य)
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इक्कीसवीं शताब्दी के दूसरे दशक की बात है, एक मंत्री की सेवा में नियुक्त अरविन्द सिंह नामधारी एक यक्ष जब अपने कार्य से अतिरिक्त कार्य करते पकड़ा गया, तो मंत्री ने उसपर पोटा लगवा कर तड़ीपार करवा दिया। यक्ष का अपराध यह था कि उसने अपने स्वामी का वह गुप्त फेसबुक स्क्रीन शॉट 'जिसमें उसने अपनी तीसरी प्रेमिका के साथ रोमांटिक वार्तालाप किया था' उनकी पत्नी को दिखा दिया था। फिर पत्नी के घातक पद प्रहारों से त्रस्त मंत्री ने यक्ष को वर्ष भर के लिए अंडमान भेज दिया।
अपनी सुन्दरी पत्नी के वियोग में गोधरा की तरह जल रहे यक्ष का वक्ष पेट में घुस गया था। उसकी हड्डियां निकल आयीं थी। उसकी आँखों से निरन्तर बह रही अश्रुधारा देख कर लगता जैसे वह पाकिस्तान या बंग्लादेश का अल्पसंख्यक हिन्दू हो।
अंडमान की उस पुण्यभूमि पर, 'जहाँ बीर सावरकर ने राष्ट्रप्रेम के दण्ड स्वरूप कोल्हू में जुट कर तेल पेरा था' दण्ड भोगता यक्ष प्रिया वियोग में दिन काटने लगा।
असाढ़ का प्रथम दिवस था। मॉनसून की कृपा से लोकतंत्र के अल्पसंख्यक की तरह धन्य हुआ एक मोटा ताजा मेघ(बादल) मचलता हुआ यक्ष के माथे पर मंडराने लगा। प्रिया वियोग से पीड़ित यक्ष ने आधुनिक नियमों के अनुसार कुछ समय पूर्व ही विदेशी मदिरा का तीन पैग लगाया था। उसका मिजाज सेकुलर हो रहा था। सावन के अंधे की भांति उसे सबकुछ हरा हरा ही सूझ रहा था। यक्ष नें हाथ जोड़ कर मेघ से कहा- हे मित्र, तनिक रुको तो। मुझ वियोगी का संदेश मेरी प्रिया तक पहुँचा दो, तुम्हें बड़ा पुण्य मिलेगा।
हवा थम गई थी, मेघ यक्ष के माथे पर ही रुक गया था। यक्ष को लगा जैसे मेघ उसकी बात सुनने के लिए ही रुका है, वह उसका सन्देश अवश्य उसकी प्रिया तक पहुँचायेगा। सन्त शिरोमणि मोतीझील वाले बाबा ने सच ही कहा है, "प्रेम में सेकुलर हुआ मनुष्य रोहिंग्या या बंगलादेशी आतंकियों को भी भाई कहने लगता है।" यक्ष की दशा भी कुछ ऐसी ही थी।
उसने मेघ से कुहुक कर कहा- हे मित्र! तुम्हें मेरी भार्या को चीन्हने में तनिक भी कष्ट नहीं होगा, छत्तीसगढ़ के भिलाई में मेरी प्रेयसी मुझसे भी अधिक कुहुक रही होगी। उसके सूखे मुखड़े को देख कर तुम्हें लगेगा, जैसे चुनाव हार चुकी कोई नेत्री हो। मेरे वियोग में उसने अपने आभूषण उसी प्रकार उतार दिए होंगे, जिसप्रकार कश्मीर के पहाड़ों से हिन्दुओं को उतार दिया गया। इस युग में फिल्मों की सबसे सुन्दर हीरोइन को भी बिना मेकप के देखने पर भले अच्छे अच्छों की चीख निकल आती हो, किन्तु अच्छे वस्त्रों और आभूषणों से रहित मेरी प्रेयसी पवित्रता की मूर्ति लग रही होगी। जिन पादुकाओं से प्रतिदिन वह मेरे पृष्ट भाग को सेंका करती थी, उसमें पाँव डाले उसे महीनों हो गए होंगे। सम्भव है कि उसके पैरों में बिवाय फट गई हो।
हे मित्र! मेरी प्रेयसी को चीन्हने की सबसे सरल युक्ति अब मैं तुम्हें बताता हूँ। कॉलेज काल में मेरी प्रेयसी वामपन्थी रह चुकी है, अतः उसे मुझे चूमते रहने की आदत है। मेरी अनुपस्थिति में भी वह अपनी आदत से बाज नहीं आती होगी। तो मित्र! सन्ध्याकाल में जो स्त्री तुम्हें लॉन के पेड़ों को चूमती दिखे, समझ लेना वही मेरी प्रेयसी है।
यक्ष नें क्षण भर को साँस लिया, फिर कहा- मित्र, अब मैं तुम्हें भिलाई का मार्ग बताता हूँ।
यहाँ से सीधे उत्तर दिशा में बढ़ना। रघुकुल शिरोमणि श्रीराम द्वारा बाँध दिए गए समुद्र को पार करते ही तुम्हें बड़े बड़े चर्च दिखाई देंगे। तुम समझ लेना कि यह महान दार्शनिक आदिशंकराचार्य की जन्मभूमि केरल है, जो अपनी सेकुलरता का दंड भुगत रही है। यह वह धरती है जहाँ नित्य ही वामपन्थी आतंकवादी दलितों की हत्या करते हैं, पर भारत के महान पत्रकार और साहित्यकार उसे दलित उत्पीड़न नहीं मानते। दलितों की हत्या दलित उत्पीड़न तभी होती है जब कोई सवर्ण हत्या करे। अन्य धर्मावलम्बियों द्वारा की गई हत्या सेकुलर हत्या होती है।
यहाँ से थोड़ा आगे बढ़ोगे तो तुम्हें लघु केरल बन चुका एक ऐसा प्रदेश मिलेगा जहां बिदेशी पैसे के बल पर ईसाई मिशनरियां लगातार धर्मपरिवर्तन करा रही होंगी। दक्षिण के आदि देवता मुरुगन को भी यीशू मसीह का रूप बताता, और यीशु के शरण में आते ही एड्स जैसी बीमारी ठीक हो जाने के दावे करता कोई पादड़ी जहाँ दिखे, समझ लेना वह तमिलनाडु राज्य है। तुम वहाँ पल भर भी मत रुकना, जिस स्थान पर अपनी कथित सेवा भावना के लिए वेटिकन से 'सेंट' की उपाधि पा चुकी मदरें, सिस्टरें भी बिना धर्मपरिवर्तन कराये किसी निरीह की सहायता नहीं करतीं, वह स्थान रुकने योग्य नहीं।
वहाँ से तुम अपनी राह तनिक बदल कर पश्चिम की ओर दब जाना।
पश्चिमी समुद्र के तट पर जहाँ नग्न लेटी आधुनिक लेडियाँ और उन्हें निहारते असभ्य बूढ़े दिखने लगें, समझ लेना यह भारत के बीच में बसा छोटा इंग्लैंड 'गोवा' है। भारत को छोड़ कर जाते अंग्रेजों ने गोवा में अपना संस्कार यह सोच कर उतार कर रख दिया कि धीरे धीरे इसका संक्रमण पूरे भारत में फैल जाएगा। जिसदिन भारत का चौथाई हिस्सा भी गोवा का संस्कार पा लेगा, भारत पुनः गुलाम हो जाएगा।
समुद्र का तट पकड़े ही तुम उत्तर की ओर बढ़ना मित्र, आगे एक चमचमाती हुई नगरी मिलेगी। अद्भुत मायालोक है वह नगर। दुब्बई में बैठे आतंकियों के भय से थरथर काँपते नचनिये वहां नायक कहलाते हैं, और चंद सिक्कों के लिए नग्न हो जाने वाली स्त्रियां नायिका। वहाँ कोई किसी का मित्र नहीं, सब अपनी भूख मिटाने के लिए भाग रहे हैं। किसी के पास भी तनिक समय नहीं, तनिक आराम नहीं... जहाँ अपने ही देश के अन्य भाग से आये प्रवासी लोगों को मार काट कर भगाने वाले लोग राष्ट्रवादी होने का दावा करें, समझ जाना कि वह मुम्बई है। तुम वहां से चुपचाप निकल जाना।
तनिक और आगे बढ़ने पर तुम्हें विशुद्ध व्यवसायियों का राज्य गुजरात मिलेगा। तुम वहाँ क्षण भर भी मत रुकना अन्यथा तुम्हें भी बेच कर कुछ लाभ कमा लेंगे गुजराती।
वहाँ से आगे बढ़ने पर तुम्हें वह पुण्य भूमि मिलेगी जिसपर यह धरती माता गर्व करती है। मातृभूमि के लिए विश्व में सर्वाधिक रक्त चढ़ाने वाले बीर राजपूतों की धरती है यह, तुम क्षण भर रुक कर अवश्य ही राजस्थान की मिट्टी को प्रणाम कर लेना।
वहाँ से अब उत्तर की ओर मत बढ़ना मित्र, अन्यथा रो उठोगे। कभी वेदमन्त्रों से गूंजने वाली पंजाब की धरा आज पूरी तरह नशे की चपेट में क्यों है, इसका उत्तर किसी के पास नहीं। असहायों की सहायता के लिए बने सिक्ख सम्प्रदाय के युवक खलिस्तानी आतंकी कैसे हो गए, यह भी कोई नहीं बताएगा।
सत्ता के लोभ में डूबे सत्ताधारी किस तरह एक गौरवशाली राष्ट्र का नाश कर देते हैं, पंजाब इसका उदाहरण हैं।
पंजाब के उत्तर में लोकतंत्र और सेक्युलरिज्म की अवधारणा पर पेशाब करता कश्मीर है, जहाँ से लाखों कश्मीरी हिन्दुओं को सरेआम मार कर भगा दिया गया और लोकतंत्र के राजा कुछ न कर सके। शाण्डिल्य ऋषि की इस पावन धरा पर उनका नाम लेने वाला एक भी व्यक्ति नहीं बचा मित्र, तुम उधर मत जाना।
मैंने तुम्हें पूर्व दिशा की राह से इसलिए नहीं भेजा क्योंकि उस दिशा में तुम्हें कश्मीर बनने को अग्रसर जलता हुआ बंगाल मिलेगा। स्वतंत्रता के समय शांति के लिए अलग बंग्लादेश के रूप में अपना आधा शरीर दे चुका बंगाल सत्तर वर्षों बाद ही पुनः क्यों जलने लगा, इसका उत्तर किसी के पास नहीं।
उसी रास्ते में आगे तुम्हें बिहार मिलता। युगों से त्रस्त बिहार, बेरोजगार बिहार, पलायन का दंश झेलता बिहार, लुटने-पिटने को अभिशप्त बिहार। कभी देश की राजधानी हुआ करता था यह, आज दुनिया भर को मजदूर सप्लाई करने को अभिशप्त है... लोकतंत्र और कथित आजादी ने उसे अभिशाप ही अभिशाप दिया है।
तुम उधर मत जाना मित्र...
तुम राजस्थान से ही पूर्व की ओर मुड़ जाना। आगे तुम्हें महाकाल की भूमि मध्यप्रदेश के दर्शन होंगे। लोकतंत्र में शासक कितने असभ्य हो सकते हैं, यह तुम वहां देख सकते हो।
मध्यप्रदेश पार करते ही तुम्हें छत्तीसगढ़ मिल जाएगा। उसी राज्य के भिलाई नगर में सिसकती हुई मेरी प्रेयसी तुम्हें मिलेगी। तुम्हारे मुख से मेरा सन्देश सुन कर वह तुम्हें इस प्रकार पूजने लगेगी, जिस प्रकार भारत की जनता अपनी जाति के नेताओं को पूजती है।
तुम मेरी प्रेयसी से कहना कि तेरा पति दूर अंडमान में तुम्हारे वियोग में जल रहा है। वह चौबीस घण्टे केवल तुम्हारा ही स्मरण करता है। तुम्हारे वियोग में उसका शरीर गल गया है... वह अब यक्ष नहीं, अपितु किसान की तरह दिखने लगा है....
यक्ष अभी और कहता, पर तभी हवा के एक तेज झोंके ने मेघ को उत्तर की ओर उड़ा दिया।
अरविंद सिंह नामधारी यक्ष पुनः वियोग ने घेर लिया
उसने मदिरा एक लंबा घूंट लिया, और छाती पर जोर का मुक्का मार कर कहा- हाय मनोरमा....

सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।
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