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व्यंग ही व्यंग

पेंड़किया,गुजिया,चंद्रकला,लवंगलता,मिठा सिंघाड़ा देश का रूप—स्वरूप,मन—मिजाज इन जैसा ही है

पेंड़किया,गुजिया,चंद्रकला,लवंगलता,मिठा सिंघाड़ा   देश का रूप—स्वरूप,मन—मिजाज इन जैसा ही है
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एक मिठाई है पेंड़ुकिया. पेंड़किया भी कहते हैं इसको. कई जगहों पर गुजिया के नाम से जाना जाता है. सूखा भी होता है, रसदार भी. कई तरह से बनता है. खोवा वाला, सूजी वाला, आंटा के हलवा वाला. आदि—अनादि प्रकार है. चीज एक ही, नाम अलग. मूल एक ही, सेप—साइज अलग, अंदर का माल अलग. इसी का थोड़ा आकार—प्रकार बदलता है और बनाने का तरीका तो यह च्रंद्रकला का रूप ले लेता है. यही लवंगलता हो जाता है. और फिर यह मिठा समोसा या मिठा खोवावाला सिंघाड़ा भी बन कई जगहों की पहचान बन जाता है, स्वाद की दुनिया में राज करता है. मजेदार देखिए. इस श्रेणी में आनेवाली यह पांच नामों की जो मिठाइयां हैं, उनमें आपस में मुकाबला नहीं है. सब अपने अपने इलाके में प्रतिष्ठित है. वर्षों से. सभी इलाके में इसका अपना सुंदर इतिहास है. उस इलाके से जुड़ा हुआ. कारिगरों से जुड़ा हुआ. उद्यमियों से जुड़ा हुआ. हर इलाके में इस एक मिठाई का वहां की परंपरा से अलग अलग तरीके से जुड़ाव भी है. बनारसवाले कहेंगे कि साहब लवंगलता तो हमारा ही है जी. पटनावाले कहेंगे कि चंद्रकला तो बस हमारा ही जानिए. कभी पटना सिटीवालों से बात कीजिए तो वे चंद्रकला का इतिहास रावण के युग से जोड़ेंगे और कहेंगे कि कुंभकर्ण को जगाने के लिए यह मिठाई रावण बनवाया था. लंका से सीधे पटना केसे आया और छा गया, यह सवाल आप अपने मन में विचरा सकते हैं. कुछ कहेंगे कि यह चंद्रगुप्त मोर्य काल की मिठाई है, इसलिए इसका नाम चंद्रकला है. उसके पीछे मुगलकाल तक का इतिहास मिलेगा. गोपालगंज के थावे में पेंंडकिया की दर्जनों दुकानों के जरिये अलग इतिहास पता चलेगा और वे कहेंगे कि जहां होता होगा, होता होगा, पेंड़किया मतलब थावे जानिए. बलिया में भी चंद्रकला के बारे में ऐसा ही कहा जाएगा. उत्तरप्रदेश से लेकर मध्यप्रदेश में जाइये, गुजिया का राज चलता है. और भी कई जगहों पर. ऐसा ही रहा है अपना देश भारत भी. यहां सब का रंग—रूप— आकार—प्रकार—तौर—तरीका अलग है. सबका अपना गौरवशाली इतिहास. सब अपने अपने इतिहास को अपनी पहचान से जोड़कर देखते हैं. एक दूसरे से लड़ने—कटने—मरने की परंपरा नहीं रही है हमारे यहां. बिना दूसरे को परेशान किये, अपने इतिहास, अपने सौंदर्य, अपनी परंपरा के श्रेष्ठतम तत्वों को सामने रखने की रवायत रही है, उसके सौंदर्य को निखारते हुए, उसे लंबे समय तक जीवंतता के साथ बनाये रखने, उसे विस्तारित करते रहने की. तो यह जो खान—पान होता है, वह ऐसे ही थोड़े होता है. लेकिन जैसे इन पांच मिठाइयों का मूल एक है, रंग—रूप—आकार—प्रकार—नाम अलग—अलग है, वैसे ही इतनी बातों के बाद मेरा भी मूल सवाल वही है कि इस श्रेणी की मिठाइयों के बारे में कुछ बताइये. किस इलाके में, किस नाम से मशहूर है. कहां—कहां का मशहूर है. शुक्रिया साथियों का कि जो सोचकर यह सीरिज शुरू किया, उसमें सफलता मिल रही है, मजा आ रहा है. सोच बस यही है कि इतने सुंदर डेमोक्रेटिक मंच का जो इस्तेमाल लगातार हो रहा है, सब आपस में मिलकर इसे एकरागी—एकरसापन—एकरंगापन का शिकार बना रहे हैं, देश को फलां बनाम फलां के दायरे में समेट रहे हैं, एक एकरसता टूटे. देश में जाति, धर्म, संप्रदाय, राजनीति से इतर भी बहुत सारी बातें हैं बात करने को. जांबिया, केन्या, होनोलुलू की विशेषज्ञता हासिल करने के साथ पहले अपने देश, अपने इलाके, अपने समाज, अपने समुदाय की विविधता, खूबसूरती को जानना भी जरूरी है. जो फिर आखिरी में वही गुजारिश कि बताइये ना इस श्रेणी की मिठाइयों के बारे में कुछ.
#swadyatra


निराला बिदेशिया
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