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व्यंग ही व्यंग

शिक्षामित्र..... श्रीमुख

शिक्षामित्र..... श्रीमुख
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IDBI bank में मैनेजर के पद पर कार्यरत रहते हुए जब कुणाल नेTET का फार्म भरा तो सभी सहकर्मियों ने उसका मजाक उड़ाया ।अबे 45000 का जॉब छोड़ कर12000 पर मास्टरी करने जायेगा? तब उसने अपने एक तर्क से सबका मुह बन्द किया था कि मै बचपन से टीचर बनना चाहता था।
वह सचमुच बचपन से शिक्षक बनना चाहता था।प्राइमरी स्कूल में नील से सराबोर खादी की धोती और अद्धी का कुरता पहने मास्टर जी के घुसते ही उनका पैर छूने के लिए दौड़ते साढ़े तीन सौ लड़को की भीड़ को देख कर उसे लगता कि दुनिया में ईस्वर के बाद यदि कोई पद है तो वह शिक्षक का ही है।उसे याद है कमला माट साब कहते-कुणाल,एक शिक्षक राष्ट्र बनाता है। तभी से उसने ठानी थी कि वह बड़ा हो कर शिक्षक बनेगा।
ग्रेजुएशन के बाद नियोजन इकाइयों में ब्याप्त भ्रस्टाचार ने उसके शिक्षक बनने की संभावनाओं को ख़ारिज किया तो वह MBA कर के लखनऊ में बैंक मैनेजर हो गया। पर जब TET के रूप में एक उम्मीद दिखी तो उसके सपने फिर उड़न भरने लगे। उसके जैसे कामयाब विद्यार्थी के लिए यह परीक्षा मुश्किल नही थी और अगले एक साल में ही वह सीवान के प्रखंड नियोजन सिमिति के ऑफिस में नियुक्ति पत्र लेने के लिए खड़ा था। नियुक्ति पत्र के वेतन वाले कालम में 11000 लिखा देख कर वह मुस्कुराया। उसे पता था कि तनख्वाह में अंको की संख्या में कमी उसके हौसलों को नहीं रोक पायेगी।वह हवा में उड़ रहा था।उसे राष्ट्र बनाना था।
घर से 14 KM दूर मध्य विद्यालय शक्ति नगर में योगदान के दिन ही उसने प्रधानाध्यापक से निवेदन कर सबसे ऊँचे 8वें बर्ग के बर्ग शिक्षक का प्रभार संभाला और जी जान से जुट गया। पहली घंटी अंग्रेजी की थी और उसके होश उड़ गए जब उसने देखा कि किसी बच्चे को अभी ग्रामर का क ख ग घ पता नही। उसने लिखवाने के लिए कॉपी निकलवाई तो आधे से ज्यादा बच्चों के पास कॉपी नहीं थी।वह कुर्सी में धस सा गया। अचानक शोरगुल सुनकर वह बाहर निकला तो देखा कि एक अभिभावक आये थे और प्राधानाध्यापक से उलझे हुए थे।
-हमको जात पात मत पढ़ाओ महटर् हमारे बेटे की छतर बिरति काहे नहीं मिली ई बताओ।
-अरे मै कितनी बार कह चूका की सामान्य कोटि के छात्र को छात्रव्रीति नहीं मिलती......
-अरे चुप सरवा। करेगा तमासा कि देगा पैसा चुप चाप।
कुणाल के अंदर का मैनेजर जग गया। बोला-अरे सर बैठिये तो हम आपको सब.....
-अरे चुप। तू कौन है रे? ई कवन नया शिक्षा मित्र आया है हो मास्टर?
-सर हम शिक्षा मित्र नहीं, हम TET से आये हैं।
चुप सरवा... दस हजरिया मास्टर शिक्षा मित्र नहीं तो और क्या है रे? साला पढ़े का ढंग नही मास्टरी करेंगे।
वह चुपचाप अपने क्लास में घुस गया।
इन दिनों उसने देखा, नए शिक्षकों के प्रति सबके मन में नफरत है। ठीक ठाक घरोँ के लड़के सरकारी बिद्यालय में नहीं आते और जो आते हैं उनके पास कॉपी पेन तक नही होता। बिद्यालय में आते अभिभावकों में उसे एक भी ऐसा नहीं मिला जो बच्चे की पढ़ाई के बारे में नालिश ले कर आया हो। जो आते थे वो पोशाक या छात्रबृति की राशि के लिए ही गाली देते आते।
सबसे बुरी बात यह थी कि नए शिक्षकों को गाली देना सामान्य बात थी। जिन लोगों को ठीक से बोलना नहीं आता वे भी मास्टर के नाम पर मुह बिजकाते थे- कौन मास्टर? शिक्षा मितर..... ओओओओ भक...।
पर उसने सोचा-ये मूर्ख मेरे हौसलों को नहीं तोड़ पाएंगे। उसे राष्ट्र बनाना था।
तीन महीने हो गए थे उसे ज्वाइन किये। पर उसने देखा, कड़ी मेहनत करने के बावजूद बच्चों में आपेक्षिक सुधार नहीं हुआ था। एक शाम वह बच्चों के घर की तरफ निकला तो देखा जैसे शाम को पढ़ने की परम्परा ही न हो। सब खेलने में लगे हुये थे। अगले दिन गुस्साए शिक्षक ने सभी छात्रों को पीट दिया।पर गलती यह हुई कि पिटाने वालों में एक छुटभैये दलित नेता का बेटा था। फिर क्या था-अगले दिन अख़बार की हेडलाइन थी-शिक्षामित्र ने दिखाई क्रूरता,छात्रों को दौड़ा कर पीटा।
उसके बिद्यालय आने के पहले 4 पत्रकारों के साथ नेताजी मौजूद थे अपने चालीस पचास समर्थकों के संग। सबके सुर मिले हुए थे-
सब साले दस हजरिया मास्टर अनेरा हो गए हैं। पढ़ाने का ढंग नहीं बस मारते रहते हैँ।आज साले को बिना हाथ पैर तोड़े जाने नहीं देना है।
किसी तरह प्रधानाध्यापक ने उसे पीछे की दीवाल से बाहर निकाला। 70-80 की स्पीड से गाड़ी चलता वह घर पहुच कर सीधे बिछावन पर गिर गया। उसे याद आया-बैंक से रिजाइन देते समय उसके रीजनल मैंनेजर ने कहा था-कुणाल मैं जनता हूँ तुम नहीं रह पाओगे उस गलीज में। यदि राष्ट्र निर्माण से मन भर जाये तो मुझे बताना। तुम्हारे जैसे अच्छे कर्मचारियों के लिए यहाँ हमेशा जगह ख़ाली रहेगी।
उसने तकिये से अपने माथे का पसीना पोंछा और मोबाइल निकाल कर नंबर डायल किया- R.M I.D.B.I

सर्वेश तिवारी श्रीमुख
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