Janta Ki Awaz
व्यंग ही व्यंग

"अगले जन्म की कविता"

अगले जन्म की कविता
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मोबाइल का ऑफ़ होना शांति है,
इंटरनेट का नहीं होना है एकाग्र होने की अवस्था

निरंजना नदी के तट पर
किसी पीपल के नीचे आँख बंद कर ध्यानस्थ होना है
उस गांव में खटिया पर बैठ भुट्टा खाना
जहां किसी कंपनी का नहीं आता है नेटवर्क..

उरुवेला का रमणीक जंगल है वो गांव
जिसके तीस चालीस किलोमीटर की परिधि में
गाड़ा नहीं गया हो एक भी टॉवर
और आप हैं बुद्ध
आपका दोस्त बबलूआ है ऋषि कौण्डिन्य
जिसके संग लीन हैं आप आम गाछ तरे तास खेलने में...

ज्ञान क्या है?
गूगल का नहीं होना है जिज्ञासा
जो ले जाता है हमे किताबों को ओर
जो कराता है हमे पढ़ने गुनने और रटने का अभ्यास
मोड़ कर रख देता है विद्यार्थी जरुरी पन्ना
भूलने पर फिर दोहराता है पाठ
फिर नहीं भूलता आदमी जिंदगी भर
दोहराया तिहराया और चौहराया गया ज्ञान...

अँधेरे से प्रकाश की ओर जाना है
व्हाट्सअप का अनइंस्टॉल हो जाना
अज्ञानता से मुक्त है वो आदमी
जिसने साल भर से
व्हाट्सअप का कोई वायरल मैसेज न पढ़ा हो
न किया हो तुरंत देशहित में उसे
किसी और मानव को फॉरवर्ड..

माया को परास्त कर चुका है वो आदमी
जो किसी व्हाट्सअप ग्रुप का नहीं है एडमिन
न इतना सक्रिय सदस्य कि
भोरे भोरे सबको भेजता हो मंगल प्रभात का
गुलदस्ता सजा हुआ पोस्टर सन्देश....

घर के करीब होता है
परिवार के करीब होता है
मित्रों के करीब होता है
समाज के करीब होता है
अपने हेराये बिलाये पुरखों के करीब होता है
और तो और ईश्वर के भी करीब होता है वो आदमी
जो नही है फेसबुक पर...

निर्वाण का मिलना
नहीं है तृष्णा का क्षीण होना
निर्वाण है स्मार्ट फ़ोन त्याग देने की इच्छा

और मोक्ष नहीं है
जीवन और मरण के चक्र से मुक्त होना
मोक्ष तो है
अगला जन्म उस घर में लेना
जिसकी आगे की तीन पीढियां
न फेसबुक पर अकाउंट बनाएंगी
न करेंगी व्हाट्सअप पर चैट.....जय हो।
- नीलोत्पल मृणाल
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