"पानी की जंग " क्या पाक के मंसूबों पर फिरेगा पानी, क्या भारत के लिए संधि तोड़ना संभव है?
आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई का दबाव झेल रही सरकार ने सोमवार को सिंधु जल संधि को लेकर एक अहम बैठक बुलाई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में होने वाली इस बैठक में विदेश और जल संसाधन मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों के अलावा इस संधि से जुड़े सभी अहम लोग शामिल होंगे। बैठक में पाकिस्तान की ओर झुकी इस ऐतिहासिक संधि के विभ्न्नि पहलुओं पर विचार किया जाएगा।
इन नदियों का करीब 80 फीसदी पानी पाकिस्तान को मिलता है और इसी से वहां के एक बड़े भू-भाग में पानी की जरूरत पूरी की जाती है। वैसे पाकिस्तान के साथ तीन-तीन जंग के बावजूद पिछले 56 साल से यह समझौता बदस्तूर जारी है। बृहस्पतिवार को विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने भी कहा था कि ऐसी संधि को कायम रखने के लिए आपसी भरोसा और सहयोग की जरूरत रहती है।
क्या भारत के लिए संधि तोड़ना संभव है?
सिंधु जल संधि आधुनिक विश्व के इतिहास का सबसे बड़ा जल बंटवारा है ।
- भारत और पाकिस्तान के बीच 19 सितंबर 1960 को विश्व बैंक की मध्यस्थता में सिंधु जल संधि हुई थी।
- पाकिस्तान के लिए यह जीवन रेखा की तरह है, जिस पर मांगला, तारबेला जैसे विशाल बांध बने हुए है।
- पाकिस्तान को 80.52 फीसदी पानी यानी 167.2 अरब घन मीटर पानी सालाना इसी के जरिए दिया जाता है।
- इस संधि के तहत सतलुज, व्यास, रावी, झेलम, चिनाब और सिंधु नदियां आती हैं।
- इस संधि को सबसे उदार जल बंटवारा माना जाता है।
- यह पाकिस्तान की पनबिजली, पेयजल और सिंचाई का बड़ा स्रोत है।
वहीं, अन्य जानकारों का कहना है कि भारत वियना समझौते के 'लॉ ऑफ ट्रीटीज' की धारा 62 के अंतर्गत इस आधार पर संधि से पीछे हट सकता है कि पाकिस्तान आतंकी गुटों का इस्तेमाल उसके खिलाफ कर रहा है। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने कहा है कि अगर मूलभूत स्थितियों में परिवर्तन हो तो किसी भी संधि को रद्द किया जा सकता है।
ऐसे में अगर भारत इस संधि से पीछे हटता है तो निश्चिततौर पर पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय अदालत का दरवाजा खटखटाएगा और वहां भारत को साबित करना होगा कि पाकिस्तान भारत में आतंकी हमले करवा रहा है।