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नोटबंदी एक साहसिक कदम या मूर्खता?

नोटबंदी एक साहसिक कदम या मूर्खता?
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Source : शमेन्द्र जड़वाल (Hocalwire)

निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय। बिन पानी साबुन बिना, निरमल करे सुहाय।। -कबीर


जो भी नि्र्णय हम करते हैं, उसका महत्व इस बात से ही है,कि, उससे कोई खुशी मिलती है, या नहीं। ये - विचार - अमरीकी मनोवैज्ञानिक, एरिक फ्राम के हैं।

देश के प्रधान सेवक माननीय मोदी जीने अपनी चुनावी घोषणा के मद्देनजर, पार्टी की साख बढाने की गरज से 500 व हजार के नोटबन्दी की अचानक की गई, घोषणा से, उन्हें खुद अथवा इनकी पार्टी को खुशी मिली या नहीं यह तो वही जानें, लेकिन घर के ही बचाए धन को यों लिमिट में, 2000 के नोटों में बदलवाने की गरज से, लगी लम्बी कतारों में घन्टों खड़े रहकर भी पूरा रिजल्ट न मिलने से लोग इनको और इस नादिरशाही फैसले को कोसते मिलरहे हैं। अब यह और बात है, कि भक्त जन तालियाँ पीट कर खुशी का इजहार करते हों ।
अपने धन के रद्द हो जाने और नये के लिये एक लिमिट की सख्ती तय करने से, सारा कामकाज छोड़क- बैंकों और एटीएम के बाहर लम्बी लम्बी कतार में खड़ी महिलाएं, युवक और बुजुर्गवार और मजदूर किसान अपने पसीने की कमाई वाले नोटों को बदलवाने, या जमाकराने को गत 9 तारीख से हर दिन धक्के खा रहे हैं। बैंकों की एकनई तकलीफ यह कि, एक लिमिट में आरहा पैसा फटाफट खत्म हो जाता है।
राज कर रही पार्टी के नेताओं के नजरिये से, घर मे जमा कथित काला पैसा हौलै हौले बाहर आ रहा है। लेकिन वे इसबात से कतई इत्तेफाक नहीं रखते कि,
उनकी पसीने से सींची गई कमाई पर 'कठोर निर्णय' रूपी काला नाग इसकदर फन फैलाकर बैठ जाएगा।
यही सोच घातक परिणामों की ओर संकेत करते हैं।
हो सकता है कि, सारे जनमानस और विपक्ष का सोच इनकी नजर में गलत लगता हो, लेकिन कहावत तो यह भी चरितार्थ होती है कि, ज्यादा सेवन से तो मिठाई भी हाजमा बिगाड़ डालती है। यहाँ इस परिपेक्ष्य में आपको 'घोर निंदा' हाजमा बिगाड़ने वाली नहीं लगती ? ताजा हालात यह कि, संसद में विपक्षी दल एक राय होकर, प्रधान सेवक जी द्वारा अचानक लिए इस फैसले से उन्हें कटघरे में खड़ा कर पूछ रहा है, कि, आपको ऐसा अचानक फैसला लेने का हक कौनसे संवैधानिक कानून से मिला ? 2.50 लाख तक पर कोई कार्यवाही न करने का ढिंढोरा क्या दिखावा नहीं है।
बहरहाल ये निर्णय, कालाधन बाहर लाने में, आतंकियों की कमर तोड़ने में कितना कारगर साबित होगा, यह तो वक्त ही बतायेगा। हाँ यह जरूर है,कि, के और आम इंसान लाइन में खड़ा कर दिया गया है। उस बेचारे की नींद उड़ गई है तो उधर अमीर और जा रहे हैं जी। .....तो समझ लीजिये इस पकती दाल में 'कुछ' नही बहुतकुछ तो काला है ही।
प्रधान सेवक जी के चुनावों के दौरान जनता से किये बड़े बड़े वादे खालिस नकली निकले हैं।
इसीसे कहा गया है.


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