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भोजपुरी कहानिया

डिजिटल कलेजा

डिजिटल कलेजा
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पंचतंत्र की कहानियों में बंदर और मगरमच्छ की कहानी तो सभी ने पढ़ी या सुनी होगी। मगरमच्छ की पत्नी द्वारा उसके मित्र बंदर के दिल खाने की इच्छा और बंदर द्वारा मगरमच्छ को बेवकूफ बनाने पर उसकी पत्नी द्वारा दिए जाने वाले ताने.....नदी के किनारे आने पर बंदरों के झुण्ड द्वारा दगाबाज, विश्वासघाती जैसे तंज, जामुन की गुठलियों द्वारा मारकर ठिठोली एवं अपमानित किये जाने वाला व्यवहार..मगरमच्छ को सालने लगा। रात दिन इसी चिन्ता में रहने लगा कि कैसे दुबारा एक बंदर को पकड़ कर श्रीमती जी के जबड़ों के हवाले करूँ और अन्दर से बाहर तक एक सम्मान का जीवन व्यतीत करूँ। यह घटना इतनी चर्चित और प्रकाशित हो गई कि वर्तमान स्थान पर दुबारा ऐसी योजना को अंजाम देना मुमकिन नहीं था अतः मगरमच्छ ने अपना डेरा ही बदल दिया और वहां से लगभग तेरह किलोमीटर दूर अपना नया आवास बनाया जहाँ नये बंदरों के समूह रहते थे।

नये परिवेश और वातावरण में बंदरों से मैत्री बढ़ाने हेतु मगरमच्छ द्वारा अपने व्यक्तित्व में अवांछनीय परिवर्तन लाना पड़ा। किनारे पर लेटकर बंदरों की बातों पर जोर-जोर हँसना पानी में गुलाटी मारना.. साधु प्रवृत्ति धारण करके मौन लेटना ऐसी बहुत सी कलाकारियों ने मगरमच्छ को बंदरों के समूह में मित्रता के लिये एक सहज वातावरण रच दिया। अब बंदर नीचे उतरकर उससे हँसी-ठिठोली करने लगे, लेकिन मगरमच्छ की निगाह तो केवल उस बंदर पर थी जिसे उसको पीठ पर बिठाकर अपने डेरे पर ले जाना था। एक दिन मगरमच्छ ने मौका देखकर एक बंदर से कहा - "आओ बेटा तुम्हें अपने घर टहला लावें। तुम्हारी चाची तुम्हें देखेंगी तो बहुत खुश होंगी और बच्चे तो मगन हो जायेंगे। तुम्हारी चाची ने आज पकौड़ी भी बनाई है।"

बंदर क्षणभर में बहकावे में आ गया तथा बिना सोचे समझे मगरमच्छ की पीठ पर बैठ गया और चल दिया पकौड़ी खाने। इस बार मगरमच्छ सतर्क था बिना कुछ पत्ता खोले वह बंदर को लेकर अपनी श्रीमतीजी के समक्ष हाजिर हो गया और एक लम्बी सांस लेकर बोला- "देखो जी दुबारा एक बंदर पकड़ लाया अब जो जी चाहे वो करो चाहें तो दिल निकालकर खाओ या दिल में बसाओ"

बंदर सेकेंडों में माजरा समझ गया उसके आँखों के सामने अपने कुल-खानदान की वो कहानी घूमने लगी जिसने उनके चतुराई से पूरे बंदर कुल की प्रतिष्ठा बचाई और उस घटना को पंचतंत्र जैसी कहानी में भी स्थान दिलाया।

"लेकिन ओह! यह क्या... आज मेरी बेवकूफी से पूरा कुल-कुनबा कलंकित हो जायेगा। मैं कहां फंस गया मुझे तो मगरमच्छों की मक्कारी का पता भी था फिर मैंने कैसे विश्वास किया? कैसे मैंने इस बहुरूपिये को पहचानने में भूल की?"

लेकिन फिर वक्त था सूझबूझ से अपनी बात रखने का उसने धैर्य के साथ चाची को प्रणाम किया.... और कहा कि - "चाची मुझे तो पता ही नहीं था कि आप कलेजा चखने के लिये इतनी तपस्या कर रहीं हैं और उधर पेड़ पर कलेजा टांगने की जगह नहीं। जब से नयी सरकार आयी है तबसे धड़कनों तक की गिनती की जाती है। दिल धड़कने का लेखाजोखा और निगरानी के कारण कोई बंदर यदि जरा सा भी प्रसन्न हुआ और धड़कनों की संख्या में बढोत्तरी दर्ज हुई तो धड़कन विभाग से नोटिस आ जाती है। अब तो पूरा संचालन कार्ड से किया जाता है। बार-बार जांच के सिरदर्दी से सभी बंदर कलेजा निकाल कर घूमते हैं जिसको देखना और जांचना है वह बकायदा कलेजा विभाग में जमा कलेजा जांच आवे।"

"अच्छा तो सीने में धड़कता क्या है?" चाची ने मासूमियत से पूछा!

" डिजिटल कलेजा चच्ची..डिजिटल कलेजा, हम लोगों को एक कार्ड मिला है जिसमें हम लोग महीने भर की धड़कन मेन हृदय से ट्रांसफर करके चैन से काम चलाते हैं.."

"अच्छा ! दुनिया इतनी बदल गई बेटा.. हम लोग तो पानी के भीतर रहकर बाहर का कुछ जान ही नहीं पाते" श्रीमती मगरमच्छ ने बड़े आश्चर्य से बंदर से कहा..

"जाने दो चाची तुम जहाँ भी हो बिल्कुल मजे से हो बाहर की दुनिया बड़ी मुश्किलों भरी है.. समझो कि अब वो भी जमाना नहीं रहा कि कोई तुम्हारे लिए पच्चीस-पचास जामुन भी इकट्ठा करके रख पावे.. सबका हिसाब देना पड़ता है.. सौ जामुन पर बारह जामुन टैक्स देना पड़ता है। चाची अब हम पहले जितना उछलते भी नहीं बड़े कायदे से एक ही डाल पकड़ कर झूलना और रहना पड़ता है।"

"क्यों ? दूसरे डाल पर कूदने से क्या मतलब सरकार को!"

" चाची एक डाल से दूसरे डाल पर ट्रांजैक्शन करने पर पूरा हिसाब करना पड़ता है और ट्रांजैक्शन चार्ज अलग से...अब बताओ चच्ची भला कौन, एक-एक डाल कूदने का हिसाब रख पायेगा इसलिए हम तो एक ही पर झूलते और गुलाटी मारते रहते हैं।"

"अच्छा छोड़िए चाची आप बिल्कुल भी परेशान न होइए! चलिए आज आपको अपना कलेजा चखाएं इतने सालों से आपकी आत्मा हमारे कलेजे के लिए तड़प रही है। वैसे भी अब इस कलेजे का करना भी क्या?"

चाची भावुक होकर बोलीं - "रहने दो बेटा ! हम क्या करेंगे ऐसा कलेजा लेकर जो एक डाल से दूसरे डाल पर न कूद पाये और दस बीस जामुन तोड़कर अपनी चच्ची के लिए इकठ्ठा न कर पाये!" और फिर घूमकर अपने पतिदेव की ओर गरज कर बोलीं - " कुछ बाहर की भी खबर रखा करो ! देख रहे हो बच्चे एक ही डाल पर गुलाटी मार रहें हैं और तुम पड़े हो हमको खुश करने में ! खबरदार जो आइंदा से कभी किसी बंदर को बहकाया... तुरन्त जाओ और पेड़ तक छोड़कर आओ.. समझे कि नहीं...और हां पचास रूपये विदाई भी दे देना॥"

रिवेश प्रताप सिंह

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