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भोजपुरी कहानिया

कथा नहीं, इतिहास "त्याग"

कथा नहीं, इतिहास  त्याग
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भाद्रपद की काली अंधेरी रात, आँधी के साथ मिलकर बारिश ने इस रात्रि को और भी भयानक बना दिया था। बन्दीगृह में खिड़कियों से छन कर आती हवा सभी प्रहरियों को मीठी नींद में सुला गयी थी। बन्दीगृह के किंवाड़ से लग कर सोये प्रहरी की कमर से ताली का गुच्छा खींच कर बन्दी ने चुपचाप ताला खोला और धीरे से कहा- अब इसे मुझे दो देवकी, मुझे शीघ्र निकलना होगा।

देवकी वह अभागन माँ थी, जिसकी आँखों के सामने उसके छह पुत्रों की हत्या हुई थी। उसने हठात नवजात को अपनी छाती में चिपका लिया। भादो उसकी आँखों से भी बरसने लगा था।

वसुदेव ने फिर कहा- मोह त्यागो देवकी! यह बालक हमारी सभ्यता की धरोहर है, इसे सुरक्षित स्थान पर पहुँचाना हमारे जीवन का सबसे बड़ा कर्तव्य है।

देवकी ने रोते हुए कहा- आप समझ रहे हैं कि मुझसे क्या मांग रहे हैं?

वसुदेव बोले- मैं जानता हूँ कि तुमसे तुम्हारा हृदय माँग रहा हूँ देवकी! पर अभी यही हमारा कर्तव्य है। हमारा बालक इस राष्ट्र के उद्धार के लिए जन्मा है। युगों से दुख भोगती असंख्य प्रजा इसी की प्रतीक्षा में जी रही है। यदि हमने इसकी रक्षा न की, तो इतिहास हमें राष्ट्रद्रोही कहेगा देवकी, शीघ्रता करो।

- आह! इस राष्ट्र के लिए सारा बलिदान क्या मुझे ही देना होगा महाराज? अबतक क्या कम बलिदान दिया है हमने?

- राष्ट्र के लिए बलिदान देने का दायित्व उन्हीं का होता है देवकी, जो समाज में अपेक्षाकृत ऊँचा स्थान रखते हैं। जो निम्न हैं, अपेक्षाकृत शक्तिहीन हैं, उनसे बलिदान की चाह क्यों रखें? इस राष्ट्र के लिए सबसे अधिक कष्ट हमें ही सहना होगा... विष पीने से ही शिवत्व प्राप्त होता है। हमें यदि आने वाली पीढ़ियों का सुख सुनिश्चित करना है, तो हमें दुःख सहना ही होगा।

- नहीं महाराज! मथुरा की प्रजा, और सनातन सभ्यता के नाम पर मुझसे और बलिदान न मांगे। मैं केवल इस राष्ट्र की प्रजा ही नहीं हूँ, एक माँ भी हूँ। मैंने अपनी सात सन्तान खोयी है स्वामी, अब और क्या दूँ? मुझे तो इस राष्ट्रवाद से तटस्थ ही रहने दें। जो सबका प्रारब्ध है वह होगा...

- तटस्थता व्यक्तिगत विषयों में हो तो उचित हो सकती है देवकी, किन्तु यदि राष्ट्र के विषय में है तो द्रोह बन जाती है। तुम्हारा प्रजा के पक्ष में न होने का अर्थ है कि तुम कंस के पक्ष में हो। क्या सचमुच तुम कंस के पक्ष में हो? और तुम्हें क्या लगता है, यदि इस बालक को यहाँ से हटाया न गया तो तुम्हें गोद का सुख मिलेगा? कल सूर्य उदय होते ही कंस की तलवार इसे मार देगी, और साथ ही मर जाएगा राष्ट्र और सनातन की रक्षा का वह स्वप्न, जिसे इसी बालक के बल पर ही हमारे साथ-साथ करोड़ों लोगों ने देखा है। त्याग करो देवकी, तुम्हारा यह त्याग ही इस राष्ट्र का भविष्य निर्धारित करेगा।

-मुझे शब्दजाल में न बांधिए महाराज! तर्कों से पीड़ा कम नहीं होती। और यदि शक्तिशाली के लिए बलिदान का दायित्व निर्धारित है भी, तो भी यह दायित्व मेरे हिस्से में नहीं आता। हम जब शक्तिशाली थे तब थे, अब तो शक्तिशाली नहीं रहे। हम तो जाने कब से इस बन्दीगृह में पड़े पड़े दुःख भोग रहे हैं, हमें शक्तिशाली कहना तो शक्ति का अपमान है महाराज!

विपत्ति और व्यग्रता के इस भारी समय में भी जाने कहाँ से वसुदेव के मुख पर मुस्कान फैल गयी। बोले- युगों से पीड़ित होने के बाद भी यदि समाज हमें शक्तिशाली मानता है तो इसमें बुरा क्या है देवकी, यह तो सौभाग्य की बात है। यदि समाज हमें शक्तिशाली मानता है तो उसी के अनुरूप हमें आचरण करना होगा। इसी में राष्ट्र का भला है, और इसी में हमारा भला भी है। एक बार यदि समाज हमें भूल जाय तो पुनः प्रथम पंक्ति में आने में युगों लग जाएंगे। किन्तु यह तर्कों का समय नहीं देवकी, मुझे शीघ्र निकलने दो। बाहर अक्रूर के कुछ गुप्त सैनिक हैं, मुझे उनसे सहायता मिल जाएगी। इस बालक को रात भर में ही सुरक्षित स्थान पर पहुँचाना होगा।

देवकी के पास अब प्रश्न नहीं थे, मात्र पीड़ा थी। उसने चुपचाप बालक को एक सूप में लिटाया और वसुदेव की ओर बढ़ा दिया। बस इतना बोली- मेरे पास आपके प्रश्नों का उत्तर नहीं महाराज, ले जाइए मेरे हृदय को। भारत के लिए देवकी ने एक बलिदान और दिया...

वसुदेव बोले- जगत के समस्त अनसुलझे प्रश्नों का उत्तर तुम्हारा यह पुत्र देगा देवकी! तनिक इसका माथा तो देखो, लगता है जैसे स्वयं विष्णु हैं।

देवकी ने जैसे सुना ही नहीं। वसुदेव सूप उठाये निकल गए। प्रहरी घोर निद्रा में थे, और भादो अपने रूप में... युग निर्माता कृष्ण अवतरित हो चुके थे।

सर्वेश तिवारी श्रीमुख

गोपालगंज, बिहार।

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