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भोजपुरी कहानिया

पगहा काण्ड...... आलोक पाण्डेय

पगहा काण्ड...... आलोक पाण्डेय
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आज सुबह मैं एक सपना देखा कि सर्वेश बाबू एक हाथ में तीर आ दूसरका हाथ में ललटेन लिए मेला में भुलाइल धनिया जैसे एने ओने भटक रहे हैं।

थोडा करीब आ के

कानों में तेरे धीरे से एक बात कहूँ

मने थोड़ा पास जाके देखा तो उनके गरदन में एकठो बरियार गाइ का पगहा भी लटक रहा था।

आहि ए बरम बाबा ई कवन रूप धारण किए है ई सीरीमुख?

अभी ये सोचिए रहा था कि एक ठो दलित टाईप नेटुआ रूपधारी करिया कलूटा, तावा के पेनी अइसन इनका पीछे-पीछे भुलाईल सिया के लछुमन जईसे पेट सोहराते हुए चल रहा था।

मैंने उसे इशारे से बुलाया और पूछा कि तूँ के हउए रे करियवा?

तो बोला कि हम सरबैस के सार हँईं।

हम चंउके- क्या क्या क्या...

ऊ हँसा- हा हा हां...

अब भाइयों एवं भौजाइओं हम ठहरे अस्वेतवादी रंगभेदी स्वभाव मेंरा है ही नहीं।

मैने पूछा कि ई काहें ई रूप धईले बाणन?

तो सारवा बोला-

कि जब सरबैस का बियाह हो रह था तो ई दूलहा बना था।

बियाह उवाह जब हो गया तो सबेरे के बेरा ई अँगना में गया।

मैंने उसे टोका कि थोडा कायदे से बात करो आखिर वो तुम्हारे जीजा हैं।

तो बोला चुप रे हम बाभन जात को रोज लाते लगाते हैं।

मैंने कहा कि अच्छा जाने दे बता फिर क्या हुआ आँगन में।

त ई आंगना में जा के रुस गया।

बहुत रिगिर झिगिर करने के बाद बोला कि जबले भुअरी पाणी लूंगा नहीं तब तक कवर उठाऊंगा नहीं।

हमार माई बोली कि बस एही खातिर हेतना कोहनाए हैं, दे दिया दहेज में भुअरी को। हमरे घर में ले दे के उहे त एगो गोर थी, पर दे दी तुमका, अब खा।

अब जईसे ई खाना सुरु किया तो देखा कि पणिया के पगहा त एकदम बेकार है।

एकदम सरल पगहा है।

त फिर रुस गया।

माइ से बोला कि अब हम तब खाएंगे जब पगहो नाया मिलेगा।

माइ त हमार एक हडसाकिन, बमक गयी।

देखो बाबू कौनो एकही चीज मिलेगा की त पाणी कि नवका पगहा।

हमरी इहां गोरू आ जोरू बान्हि नहीं जाती।

त इहो ताव में आ गिया। बोला कि पाणी की ऐसी की तैसी हमके पगहा चाहीं।

आ तबसे जब जब बिहार में चुनाव आता है त ई एही रुप में जिला जवार में घूमता है।

समाज सुधारक न है

चारा चारा बेचारा......

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