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भोजपुरी कहानिया

फिर एक कहानी और श्रीमुख "भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा"

फिर एक कहानी और श्रीमुख भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा
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पिछले कुछ दिनों से पोस्टऑफिस चौक से गुजरते समय उनके नथुनों में हवन की घिवाह गंध घुसने लगती थी। वह आँखे बंद कर एक लंबी साँस भर कर उसे अपने अंदर उतार लेता, फिर मुस्कुराते हुए कोचिंग सेंटर की ओर निकल जाता।
फिर दिन भर गोपालगंज की सड़कों पर वह महकता फिरता था...
उतने ही दिनों से वह भी जब पोस्टऑफिस चौक पर आती तो उसे लगता, जैसे पास ही कहीं ठंढे पानी का सोता बह रहा हो। जाने क्यों बिना हवा के ही उसके केश उड़ने लगते। उसे लगता जैसे वह परियों की तरह उड़ सकती है। वह मुस्कुरा कर आगे बढ़ जाती...
एक दिन यूँ ही झटक कर लड़के ने देखा, हवन की घिवाह गंध एक लड़की की मुस्कुराहट से निकल रही थी।
उसी दिन लड़की ने देखा; वहां कोई पानी का सोता नहीं था,एक लड़का था....
दोनों मुस्कुरा उठे। एकाएक लगा जैसे हिमालय की गोद में पवित्र गंगा के किनारे किसी ऋषि की धूनी महक उठी हो...
दोनों के कोचिंग का समय एक ही था शायद, लड़का 'बंजारी' की ओर निकलता था, लड़की डी. ए. वी हाई स्कूल की ओर निकलती थी, और रोज पोस्टऑफिस चौक पर वे एक दूसरे से मिल जाते। लड़का-लड़की दोनों एक दूसरे को देखते, और मुस्कुरा उठते। किशोरावस्था का प्रेम बड़ा निश्छल होता है, उनकी मुस्कुराहट रोज ही उस चौक का माहौल बदल देती थी। उस भीड़भाड़ वाले चौक का शोर रोज कुछ क्षण के लिए उपनिषद के मंत्रों में बदल जाता...
ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमा....
समय बीत रहा था। लड़के-लड़की में एक अद्भुत तारतम्य बन गया था। कभी-कभी लड़का पहले आ जाता तो बंगाली के जलेबी वाले दुकान में छेना की जलेबी खा लेता, लड़की बाद में आती तो लड़के का बिल भर देती। जब लड़की पहले आती तो उसी दुकान में जलेबी खा कर निकल जाती, लड़का आ कर पेमेंट कर देता। बंगलिया की जलेबी आजकल कुछ ज्यादा ही मीठी हो गयी थी।
एक दिन यूँ ही लड़के ने पूछा- फ़िल्म देखने चलोगी?
लड़की को लगा जैसे वह सचमुच हवा में उड़ने लगी है। प्रेम की प्रथम अनुभूति राजत्व प्रदान कर देती है। यह नशा नहीं, एक अद्भुत पूर्णता भर देती है, जैसे जीवन दुखों, चिंताओं से सदैव के लिए मुक्त हो गया हो। जैसे मैथ वाले सर अब ट्रिग्नोमेट्री के सूत्र नहीं पूछेंगे। उसने चहक कर पूछा- कौन सी?
- स्टूडेंट ऑफ द ईयर, 'श्याम चित्र मंदिर' में लगी है।
लड़की मुस्कुरा उठी। अगले दिन ग्यारह से दो वाले शो में दोनों फ़िल्म देख रहे थे। लड़के का टिकट लड़की ने लिया था, और लड़की का टिकट लड़के ने... लड़के ने पीला सूट पहन कर नाचती हीरोइन को देख कर कहा- अहा! अद्भुत लग रही है यह... पर सुनो न! ऐसी ड्रेस में तुम इससे भी अधिक सुंदर लगोगी।
अगले दिन लड़की ने "हैप्पी कलेक्शन" से पीला फ्रॉक शूट कीन लिया। शाम को उसने घर फोन कर माँ को बताया- "कोचिंग से लौटते समय मेरा कान का टॉप्स जाने कहाँ गिर गया..."
कम उम्र के बच्चों को झूठ बोलना भी ठीक से नहीं आता।
साल भर बीत गया। बाजार की गति बड़ी तेज है, एक वर्ष में ही बंगाली के जलेबी वाले दुकान के स्थान पर बड़ा सा मॉल खड़ा था, 'कोलकाता बाजार'।
लड़का-लड़की अब पोस्टऑफिस चौक के अतिरिक्त भी इधर-उधर मिलने लगे थे। कभी किसी मॉल में, कभी किसी सिनेमा हॉल में, कभी कमला राय कॉलेज कैम्पस के पेड़ों के नीचे...
लड़के की नाक में अब घिवाह गन्ध नहीं आती थी, लड़की अब महंगे परफ्यूम लगाने लगी थी।
दोनों इंटर पास कर चुके...
एक दिन शाम को सन्ध्या स्वीट्स में चाट खाते खाते लड़के ने कहा- क्यों न कहीं भाग चलें?
लड़की ने पूछा- क्यों?
- अरे समझा करो, हमारे-तुम्हारे मम्मी पापा हमें मिलने थोड़े देंगे। भागना ही एक उपाय है...
- क्यों? हम मिल तो रहे हैं! अब और क्या चाहिए?
- तुम समझती नहीं हो। इस तरह कब तक चलेगा? हम भाग कर शादी कर लेंगे।
लड़की मुस्कुरा उठी। बोली- ठीक कह रहे हो... कभी भाग चलेंगे।
लड़का भी मुस्कुरा उठा, पर जाने क्यों हवा में अबकी उपनिषद के मंत्र नहीं गूंजे।
अब दोनों की हँसी में एक अलग सी खनक आ गयी थी, लगता था जैसे हनी सिंह के गीत बज उठे हों...
कुछ दिन बाद लड़के ने फिर कहा- चलो न कहीं भाग चलें, जहाँ हमारे अतिरिक्त और कोई न हो...
लड़की मुस्कुरा उठी, कहा- ठीक कह रहे हो, जल्द ही भागते हैं। सचमुच मेरे पापा मम्मी हमें मिलने नहीं देंगे।
लड़का खुश हो गया, जैसे उसने जग जीत लिया हो।
कुछ दिन बाद कॉलेज कैम्पस में फर के लदर गए कपुरी आम के पेड़ तले बैठी लड़की के आगे शाहरुख खान की तरह हाथ फैला कर लड़के ने कहा- चलो न! अब सहन नहीं होता। चलो कहीं भाग चलें...
लड़की ने मुस्कुरा कर कहा- मुझे बहुत प्यार करते हो न?
लड़के ने हाथ को और फैला कर कहा- बहुत! इससे भी ज्यादा...
लड़की ने फिर पूछा- कब से करते हो?
- जबसे तुम्हें देखा तबसे। दो साल हो गए... मुझसे ज्यादा तुम्हें कोई प्यार नहीं कर सकता।
लड़की एकाएक गम्भीर हो गयी। बोली- जानते हो, मेरे पापा मुझे पिछले इक्कीस वर्षों से प्यार करते हैं। तुमसे क्या, दुनिया के किसी भी व्यक्ति से ज्यादा... वो भी उस समय में, जब असंख्य बाप अपनी बेटियों को पेट में ही मार देते हैं। तनिक सोचो तो, आज हम भाग गए तो कल पापा गांव के तानों को सुन कर कैसे जियेंगे?
लड़का ठठा के हँस पड़ा। बोला- अरे यार! किस जमाने में जी रही हो? इस तरह की बात अब कौन सोचता है?
लड़की बोली- जमाने का क्यों सोचना, जमाने से कोई भय नहीं। पर कभी किसी भागी हुई लड़की के पिता का मुह देखे हो कभी?
लड़के के चेहरे का भाव तनिक बदल सा गया। उसने फिल्मी हीरो की तरह गुर्रा कर कहा- दुनिया को हमारे प्यार के आगे झुकना ही होगा, तुम्हारे पापा भी झुक जाएंगे...
लड़की और गम्भीर हो गयी, "तो क्या पापा को झुकाने के लिए ही जन्मी हूँ मैं?"
लड़का खीज उठा-" तुम तो बोर करने लगी यार! यह बीते जमाने की पुरुषवादी सोच कहाँ से ले कर आ गयी?"
लड़की बहुत देर बाद मुस्कुराई। बोली- अब तो जैसी हूँ, वैसी ही हूँ....
लड़के को लगा कि लड़की मजाक कर रही थी। उसने कहा- छोड़ो यह सब, बोलो कब और कहाँ चलना है?
लड़की फिर गम्भीर होती हुई बोली- अगर भागना ही हमारे प्रेम का लक्ष्य था, तो दुख है मुझे अपनी भूल पर... तुम किसी और को देखो।
लड़का उफ़न पड़ा- तो क्या सब इतनी जल्द समाप्त हो जाएगा? अरे हम प्रेम करते हैं एक दूसरे से...
लड़की उठती हुई बोली- करते हैं नहीं, शायद करते थे।
लड़का वहीं थस से बैठ गया, लड़की उठ कर कैम्पस से निकल गयी। कैम्पस के पेंडो ने देखा, उसने मुह पर उतर आई रुलाई को रोकने के लिए अपना दुपट्टा मुह में लगभग ठूस लिया था।
उस दिन फिर कमला राय कॉलेज के कैम्पस में खड़े आम की पत्तियों की खुरखुर से मंत्र निकलने लगे...
"ॐ पवित्र: अपवित्रो वा सर्वावस्थांगतोपिवा...."

सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।
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