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भोजपुरी कहानिया

विवाह, एक जोड़े का नही समाज का बंधन

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भोजपुरी समाज, या यूं कहें सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश और बिहार समेत हिन्दी पट्टी... हमारे पूर्वजों ने विवाह संस्कार को इस तरीके से बनाया जिसमे, विवाह में मात्र दो व्यक्तियों का रिश्ता नही होता अपितु, दो परिवारों... दो खानदानों यहां तक कि दो गाँवों का रिश्ता हो जाता है... प्राचीन काल में जब प्रभु श्रीराम का विवाह , जनक पुत्री माता जानकी के साथ हुआ, लोग आज भी अवध और मिथिला में वही रिश्ता देखते हैं...

हमारे समाज मे विवाह संस्कार में, हर रिश्ते का भी उतना ही महत्व है चाहे वह छोटे बच्चे हो अथवा बुजुर्ग, जीवित व्यक्तियों को छोड़े स्वर्ग लोग को चले गए तीन पीड़ी तक के पूर्वजों की भी पूजा अर्चना होती है... विवाह में जीजा और फूफा का रूठने मनाने का महत्व तो जग विख्यात है।😊

विवाह संस्कार की एक और महत्वपूर्ण अंग जिसकी चर्चा बहुत कम होती है उसे देखे-

डाल दउरा लाने वाले :- डोम
मिट्टी के पात्र लाने वाले :- कोंहार
विवाह के लिए आसन :- बढई
पोखर /कपड़ा के लिए :- धोबी
साज सज्जा और ब्राह्मण के सहायक हेतु :- ठाकुर
विवाह कार्यक्रम :- आचार्य/ब्राह्मण
डोली ले जाने /लाने :- कहांर
शहनाई :- मुश्लिम परिवार

इसके अलावा भी बाकी समाज के लोगो को भी विभिन्न अवसरों पर महत्वपूर्ण योगदान देना ही पड़ता है विवाह संस्कार में फिर वह माली , गौपुत्र या कोई भी अन्य समाज से क्यो ना आते हों....

इस तरह यह कहना अतिश्योक्ति नही है कि विवाह संस्कार एक जोड़े का नही बल्कि पूरे समाज का बंधन होता है, होता है न...

जब से एकल परिवार का प्रचलन बढा है, हमारे इन संस्कारों में भी गिरावट आई है, लड़के वाले अपने बेटे पर पढ़ाई लिखाई पर हुए खर्च को निवेश समझ, दहेज के रूप में तगड़ा रिटर्न की उमीद पाले रखते हैं, जो किसी भी सूरत में ठीक लक्षण नही है, समाज के लिए...

इस सामाजिक कुप्रथा के प्रति लोगो को जागरूक करें।।


दीपक बिशेश्वर पाण्डेय
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