Janta Ki Awaz
भोजपुरी कहानिया

फिर एक कहानी और श्रीमुख "फिरोजा' .

फिर एक कहानी और श्रीमुख  फिरोजा  .
X
थार रेगिस्तान की गोद में बसा भारत का एक छोटा सा सीमांत राज्य जालोर; यहां के पशुओं की नाड़ी में भी रक्त के स्थान पर स्वाभिमान बहता था। यहां के चौहान राजा कन्हड़ देव ने अपनी अतुल्य वीरता के लिए समूचे भारतवर्ष में प्रतिष्ठा प्राप्त की थी। किन्तु पिछले एक सप्ताह से जालोर की हवा में धूल से अधिक अलाउदीन खिलजी की की क्रूरता और सोमनाथ ध्वंस के किस्से उड़ रहे थे। सोमनाथ के निरीह पुजारियों और आम जन की निर्मम हत्या, तथा असंख्य स्त्रियों के बलात्कार की क्रूरता का समाचार जालोर के आम जन के हृदय को भस्म कर रहा था। जालोर की प्रजा मन ही मन खिलजी के क्रूर आतंकवादियों को उचित दंड दिलाना चाह रही थी।
एक श्रेष्ठ शासक अपने आलोचकों का आलेख नहीं, अपितु अपनी प्रजा का हृदय पढ़ता है। और यही कारण था कि नित्य संस्कृत के नवीन अलंकृत छंदों से गूंजने वाली महाराज कन्हड़ देव की राजसभा आज निःशब्द थी। सोमनाथ के अत्याचारी अपराधियों को दण्डित करने के साझे निर्णय पर विचार करते महाराज कन्हड़ देव आधे घंटे से मौन थे।
महाराज ने एक लम्बा श्वांस छोड़ कर मौन तोडा, और बोले- तो उलुग खाँ को दण्डित करने कौन जायेगा?
मौन सभा मुस्कुरा उठी। सभा के अंतिम सिहांसन पर बैठा एक बलिस्ट युवक उठा और शीश झुका कर बोला- मुझे आज्ञा मिले पिताश्री, आपका ज्येष्ठ पुत्र होने के नाते यह मेरा ही कर्तव्य है।
महाराज ने मुस्कुरा कर देखा युवराज वीरन देव की ओर, किसी देवदूत की तरह दिखने वाले अपने पुत्र को देख कर वे सदा अभिभूत हो जाया करते थे। बोले- सोच लीजिये वीर, खिलजी की सेना वर्तमान विश्व की सबसे क्रूर सेना है, और उनके पास से किसी भी परिस्थिति में सोमनाथ का पवित्र शिवलिंग जालोर लाना ही है। ये क्रूर अधर्मी हमारे देव विग्रहों को ले जा कर उनका कैसा अनादर करते हैं, यह आपको खूब ज्ञात है। हम किसी भी परिस्थिति में उन्हें शिवलिंग ले जाने नही दे सकते।
युवराज बीरन ने म्यान से तलवार खींच हवा में लहराया और बोले- युद्धभूमि से मैं वापस आऊं या न आऊं, भगवान सोमनाथ का शिवलिंग अवश्य आएगा, यह आपके पुत्र का सौगन्ध है महाराज! आप हमें अवसर दीजिये।
महाराज की छाती फूल उठी। उन्होंने सिहांसन से उतर कर बेटे को गले लगा लिया। महाराज ने बीरन से पूछा- कितनी सेना ले जायेंगे वीर?
बीरन बोले- सिर्फ अपनी टुकड़ी।
महाराज के माथे पर लकीरें उभर आयीं। बोले- सिर्फ पांच सौ की सेना से आप उलुग खां से कैसे लड़ेंगे युवराज? उसके पास कम से कम आठ हजार की सेना है।
- कोई भय नही महाराज! अपने पुत्र पर विश्वास रखिये, और मुझे तैयारी करने का अवसर दीजिये।
महाराज ने युवराज बीरन देव को जाने का संकेत किया और उनके जाने के बाद सेनापति से बोले- समूची सेना को तैयार रहने का आदेश दीजिये सेनापति, हम गुप्त रूप से बीरन की टुकड़ी के पीछे ही तैयार रहेंगे।
**************
सोमनाथ में भीषण रक्तपात कर मंदिर को लूटने के बाद उलुग खान के नेतृत्व में खिलजी सेना जिस रास्ते से वापस लौट रही थी, वह जालोर की सीमा में ही पड़ता था। उसकी सेना के पास लूटे गये स्वर्ण भंडार के साथ सोमनाथ में कैद की गईं हजारों स्त्रियां थीं, जिन्हें वहशी राक्षस गुलाम बना कर ले जा रहे थे। अपनी क्रूरता के बल पर अजेय हो उठी खिलजी सेना अभय हो कर लौट रही थी। शाम का समय था, दिन भर की थकान के बाद विश्राम के लिए खिलजी सेना ने अभी तंबू गाड़ना प्रारंभ ही किया था, कि युवराज बीरन की सेना ने धावा बोला। इतिहास साक्षी है, धर्म में बहुत शक्ति होती है। सातवीं सदी में धर्म के नशे में चूर मात्र पांच हजार की अरबी सेना ने लाखों की सेनाओं को धूल चाटते हुए अनेक राज्यों को मिट्टी में मिला दिया था, यहां तो वीरन के सैनिक अपने धर्म की रक्षा के लिए आये थे। वे किसी को तलवार के बल पर हिन्दू बनाने नहीं, अपितु सोमनाथ का शिवलिंग लेने आये थे। और यही कारण था कि घण्टे भर के छापामार युद्ध के बाद जब उलुग खां जान बचा कर भागा तो उसके साथ सिर्फ सौ सैनिक भाग पाये थे। बीरन की सेना ने शिवलिंग के साथ साथ असंख्य लोगों के साथ हुए अत्याचार का प्रतिशोध भी ले लिया था।
जालोर विजय के हर्ष में उतरा उठा था।
**************
इस घटना को महीनों बीत गए। जालोर की राजधानी में सोमनाथ के पवित्र शिवलिंग को स्थापित करने के साथ एक भव्य मंदिर की नींव पड़ चुकी थी। एक दिन महाराज अपनी सभा में बैठे थे, तभी द्वारपाल ने सुचना दी- अलाउद्दीन खिलजी का दूत मित्रता का संदेश ले कर सभा में आने की अनुमति चाहता है। महाराज मुस्कुरा उठे। वे विदेशियों की धूर्तता को खूब जानते थे। उन्होंने दूत को सम्मान सहित राजसभा में आमंत्रित किया। दूत का पत्र पढ़ा गया। खिलजी ने मित्रता के निवेदन के साथ युवराज बीरन को निमंत्रण दिया था। महाराज ने दूत को दूतावास में ठहराने और उसकी सेवा की व्यवस्था की, और उसके बाद सभा में मंत्रियों से खिलजी के निमंत्रण के सम्बन्ध में चर्चा की। पूरी सभा ने एक स्वर में खिलजी के निमंत्रण को अस्वीकार करने का सुझाव दिया, किन्तु बीरन तो किसी और ही मिट्टी के बने थे। उन्होंने दृढ स्वर में कहा- किसी अज्ञात षड्यंत्र के भय से निमंत्रण अस्वीकार करना हमें शोभा नही देगा महाराज! हम क्षत्रिय हैं, और हमें हर निमंत्रण स्वीकार होना चाहिए। महाराज निर्भय होकर मुझे जाने की आज्ञा दें।
नियति कोई अद्भुत खेल खेलना चाहती थी। महाराज ने जाने क्या सोच कर बीरन को जाने की आज्ञा दे दी। पर इस बार भी उन्होंने आपात स्थिति से निपटने के लिए सेना को तैयार होने का आदेश दे दिया।
**************
खिलजी के दरबार में जब बाइस वर्ष का अपूर्व सुन्दर राजपूत युवराज पंहुचा, तो दरबार के सभी लोग मुस्कुरा उठे। कुछ यह सोच कर मुस्कुराये कि इसे तो चुटकियों में मसल देंगे, तो कुछ यह सोच कर मुस्कुराये कि अब जालोर का राज्य भी अपना हुआ। किन्तु दरबार में एक व्यक्ति ऐसा भी था जो अपने होठों पर अचानक ही चमक उठी मुस्कुराहट का राज नही समझ पा रहा था, और वह थी चिक की ओट में बैठी अलाउदीन की बेटी फिरोजा। युवराज ने सुल्तान का अभिवादन किया और कुछ देर तक औपचारिक बातचीत करते रहे, पर फिरोजा की नजरें उनके चेहरे से नही हटीं। उसके होठ बार बार बिना बताए मुस्कुरा उठते थे,और हृदय धड़क उठता था। फिरोजा ने अबतक अपने आस पास लम्बे लम्बे क्रूर और दैत्याकार चेहरे देखे थे। पुरुष इतना सुन्दर भी हो सकता है इसकी उसने कल्पना भी नही की थी। बीरन को देर तक एकटक निहारने के बाद फिरोजा के हृदय ने जैसे कहा- फिरोजा! तुम्हे इश्क हो गया है।
**************
फिरोजा भले एक निश्छल किशोरी थी, किन्तु उसकी धमनियों में अलाउद्दीन खिलजी का रक्त बह रहा था। मन आ जाने पर राज्य हड़प लेने वाले अलाउद्दीन की बेटी में इतना साहस तो था ही, कि वह अपने पिता से वीरन देव को मांग सके।
अलाउद्दीन एक बर्बर लुटेरा था, पर इतना दरिद्र भी नही था कि अपनी बेटी की मांग पूरी न कर सके।
अगले दिन दरबार में जब अलाउद्दीन ने बीरन को अपने निकट के सिंहासन पर बिठाया, तो बीरन मन ही मन अलाउद्दीन के चाल की प्रतीक्षा करने लगे। उन्हें ज्ञात था कि क्रूर खिलजी ने उन्हें स्वागत करने के लिए नही बुलाया, अपितु छल करने के लिए बुलाया है। किन्तु जब भरे दरबार में खिलजी ने बीरन से इस्लाम स्वीकार कर फिरोजा से विवाह करने का आग्रह किया तो वे भौंचक रह गए। अलाउद्दीन का यह आग्रह बीरन ही नहीं, अपितु समूचे इस्लामिक कालखण्ड के लिए अप्रत्याशित थी। वीरन ने खिलजी से विचार करने का समय माँगा और अपने कक्ष में चले आये।
संध्या हो चुकी थी, पर चिंता में पड़े वीरन को संध्या वंदन की भी सुधि नही थी। अचानक द्वारपाल ने आ कर उनकी तन्द्रा तोड़ी और कहा- युवराज! एक तस्वीर बेचने वाला बुड्ढा आपसे मिलने की आज्ञा चाहता है। युवराज मौन से ऊब उठे थे। उन्होंने द्वारपाल को आज्ञा दे दी।
बूढ़े सौदागर ने झुक कर सलाम किया और बोला- कैसी तस्वीरें देखेंगे सरकार, परियों की दिखाऊं?
बीरन ने अनमने ढंग से कहा- कुछ भी दिखाओ।
बूढ़े ने अपने झोले से एक तस्वीर निकाली और युवराज की तरफ बढ़ाया। युवराज ने देखा, एक अपूर्व सुंदरी की तस्वीर! वे मुस्कुरा उठे।
सौदागर ने दूसरी तस्वीर दिखाई, यह तस्वीर भी उसी सुंदरी की थी। सौदागर ने एक के बाद एक सात तस्वीरें दिखाई, हर तस्वीर एक ही मुखड़ा दिखा रही थी। आश्चर्यचकित युवराज ने सौदागर से कहा- क्यों महाराज! तुम्हारे पास कोई दूसरी तस्वीर नही है क्या?
बूढ़े ने कहा- है तो ढेरों, पर इसकी तरह सब आपको प्रेम नही करतीं युवराज।
युवराज चौंक उठे- यह मुझे प्रेम करती है? कौन है यह रूपसी?
बूढ़ा बोला- सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी की बेटी फिरोजा। आपको उससे अधिक प्रेम कोई नही करता होगा युवराज।
युवराज बीरन का आश्चर्य बढ़ता जा रहा था। वे लगभग उछलते हुए बोले- यह तुम कैसे जानते हो सौदागर?
सौदागर ने ध्यान से चारों ओर देखा, फिर झटके से अपनी पगड़ी और दाढ़ी नोच दी। युवराज बीरन ने देखा- फिरोजा प्रत्यक्ष खड़ी मुस्कुरा रही थी।
बीरन के मुख से अनायास ही निकला- इतना साहस?
फिरोजा बोली- खिलजी की सेना से सोना छीन लेने वाले बीरन का प्रेम स्वयं में साहस की पराकाष्ठा है युवराज। पर क्या मेरा साहस सार्थक होगा?
युवराज देर तक सोचते रहे, फिर कहा- तुम्हे नकार सकने का साहस मेरे पास भी नही फिरोजा।
फिरोजा मुस्कुरा उठी। उसने झट से नकली दाढ़ी लगाई और पगड़ी पहन कर निकल गयी। अगले दिन दरबार में बीरन ने अलाउद्दीन के आग्रह पर स्वीकृति दे दी, और जालोर के लिए प्रस्थान कर गए।
**************
बीरन जब जालोर पहुचे तो महाराज कन्हड़ देव की राजसभा लगी हुई थी, और सभी किसी गंभीर चर्चा में मग्न थे। महाराज ने पुत्र को महीने भर बाद देखा था, उनकी आँखे भर आईं। उन्होंने गले लगा कर पुत्र का स्वागत किया, और यात्रा तथा खिलजी के ब्यवहार के सम्बन्ध में पूछा। किन्तु बीरन ने उत्तर देने से पूर्व सभा में पसरी शांति का कारण पूछ लिया। महाराज ने बताया कि आज की सभा उलुग खाँ से मुक्त करायी गयीं तीन हजार युवतियों के भविष्य का निर्णय करने के लिए एकत्र हुई है। यदि कोई एक समर्थ युवक उनमें से किसी एक का वरण कर ले, तो अनेकों युवक उसका अनुसरण करेंगे। इससे उन तीन हजार कन्याओं का तो उद्धार होगा ही, भविष्य के लिए भी एक आदर्श स्थापित हो जायेगा।
युवराज ने पूछा- तो क्या किसी युवक ने अपनी स्वीकृति दी महाराज?
महाराज ने अपनी दृष्टि बीरन के मुखड़े पर गड़ाई, और बोले- हमारी आशा आपसे संबद्ध है बीर।
बीरन पिता को देखते रह गए। कुछ देर बाद बोले- क्या आपने विचार कर लिया है महाराज?
महाराज बोले- कर्तव्य कठोर परीक्षा लेता है बीर, किन्तु समर्थ वही कहलाते हैं जो हर परीक्षा में सफल हो जांय।
युवराज सोचने लगे। उनकी आँखों के समक्ष बार बार फिरोजा की तस्वीर उभर आती थी। किन्तु अंत में युवराज बीरन ने कहा- मैं प्रस्तुत हूँ महाराज!
महाराज ने पुत्र को गले लगा लिया। सभा जयजयकार कर उठी।
पुनः जब महाराज ने बीरन से खिलजी दरबार की बातें पूछी, तो युवराज बीरन ने सब तो बताया किन्तु फिरोजा से अपनी मुलाकात छिपा गये। महाराज कन्हड़ देव के माथे पर बल पड़ गए। खिलजी की पुत्री से बीरन का विवाह एक कठोर और समूचे आर्यावर्त में हलचल मचा देने वाला निर्णय हो सकता था। उन्होंने प्रश्नसूचक दृष्टि से बीरन की ओर देखा। बीरन बोले- समय हमारी परीक्षा ले रहा है महाराज! किन्तु हम अपने निर्णय से नही डिगेंगे। आप आयोजन की तैयारी करें, वीरन का विवाह सोमनाथ की दास कन्या से ही होगा।
बीरन के निर्णय की सूचना जब खिलजी दरबार तक पहुँची तो वह गरज उठा। एक छोटे राजपूत राजा द्वारा अपनी अवहेलना किये जाने से अपमानित महसूस कर रहे अलाउद्दीन ने जालोर को जमींदोज करने के लिए तुरंत कलीमुद्दीन खान की सरदारी में डेढ़ लाख की सेना भेजी। अलाउद्दीन ने कलीमुद्दीन को आदेश दिया कि किसी भी स्थिति में युवराज बीरन देव का शीश खिलजी दरबार में आना चाहिए।
महाराज कन्हड़ देव को खिलजी के आक्रमण की आशा थी, अतः उन्होंने पूर्व में ही अपनी सेना को तैयार होने का आदेश दे दिया था। वे भी अब आक्रमण की प्रतीक्षा ही कर रहे थे। उनकी प्रतीक्षा लम्बी नही चली, वीरन के विवाह के अगले ही दिन खिलजी सेना जालोर की सीमा पर पहुँच चुकी थी।
खिलजी की डेढ़ लाख की सेना से जालोर की दस हजार की सेना कैसे लड़ी, इसका वर्णन व्यर्थ है। यह युद्ध भी उन सैकड़ों युद्धों के जैसा ही था जो भारत में राजपूतों और विदेशियों के बीच लड़े गये। जालोर के पास खिलजी सेना से लड़ने लायक न सैन्य शक्ति थी न युद्ध नीति, उनके पास यदि कुछ था तो राष्ट्र पर बलिदान होने का साहस था। युद्ध में समूचे जालोर को वीरगति प्राप्त हुई।
दो दिन बाद जब युवराज बीरन का कटा शीश खिलजी दरबार में लाया गया तो अलाउदीन ने नोक में फंसे शीश को फिरोजा की गोद में डाल कर कहा- तुम्हे बीरन तो न दे सका फिरोजा, पर उसका सिर ले और इसे ही मेरा तोहफा समझ। फिरोजा एकटक बीरन के कटे शीश को देखती रही।
अलाउद्दीन के चले जाने पर फिरोजा ने एक बुजुर्ग दासी से पूछा- क्यों रे, राजपूत बादशाहों के इंतकाल के बाद उनकी बेवायें क्या करती हैं?
दासी बोली- करती क्या हैं शहजादी, जो अपने शौहर को बहुत प्यार करती हैं वो उनकी लाश गोद में लेकर जल मरती हैं।
अगले दिन मछुआरों ने देखा, यमुना में फिरोजा का शव बहा जा रहा था। युवराज बीरन का शीश उसकी गोद से अलग नही हुआ था।

सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।
आज के लिए यह पुरानी कहानी ही रही😊
Next Story
Share it