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भोजपुरी कहानिया

अब बहिना नाराज क्यो है भाई से यह सब पूछेंगे

अब बहिना नाराज क्यो है भाई से यह सब पूछेंगे
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आदरणीय कल्पना बहिना
सादर प्रणाम !
दस साल बाद आप इस आभासी पटल पर दिखीं तो मन हुआ की क्षमा मांग कर आपको चिठ्ठी लिखूँ । बियाह होने के बाद आप चली गयी पहुना के साथ तबसे आपको कभी देखे नही हैं ।मुझे मालूम है की आप नाराज क्यों हो !
अब बहिना नाराज क्यो है भाई से यह सब पूछेंगे । बताता हूँ ।

जबसे अलगा बिलगी हुआ , चूल्हा खेत बारी बँटा गया आप यह सहन न कर सकीं । बड़का पापा होते तो यह नही होता । आपके बियाह के बाद भैया का बियाह हुआ और बड़का पापा जिम्मेदारी से निवृत हो परमधाम को चले गये । आप ससुराल से कलकता चली गयीं । उसके बाद ही पारिवारिक भूचाल आया । भैया सरकारी मास्टर हैं । बड़का पापा भी सरकारी नौकरी में थे । हमारे पापा नौकरी में नही हैं । खेतीबारी संभालते हैं । अब कमाने वाले केवल भैया ही तो इतने लोगों का भार कब तक संभालते ? अलग तो होना ही था ।
संयुक्त परिवार भावनाओ के विष और अमृत को नियमित ढोने वाला संस्थान है । क्या हुआ यह आपको तो बताया ही गया होगा लेकिन मैं यह कहता हूँ की कोई अप्रिय संवाद नही हुआ था । सहज ही भैया ने मेरे पापा से कहा ,
" चाचा , अब अलगे रहल जाव ! आखिर हम अकेले का का सम्हारेब ? सभे के आपन जिम्मेदारी समझे के चाहिँ ? बबलुआ भी कमाए लाएक हो गइल बा । बाकि राम जी के किरपा से सब नीमन होइ । "
मेरे पापा बोले ,
" बबुआ , अभी बबलुआ एकदम बच्चा बा । अठारह तs अब चढ़ल बा आ अभी हमरा बेटा - बेटी सन के भी निबाहे के बा । कुछ दिन अऊर चले दs ।"

बड़का भैया माने नही और चुल्ह , खेत सब बाँट दिया गया । दिदिया तोहरे आशीर्वाद से हमहूँ कमा रहा हूँ । कमाने से याद आया की जब कमाने जाना था तब पापा 80 रुपिया का बैग खरीदे थे । मुझे साइकल पे बैठा कर मीरगंज 1000 रुपिया थमा के छोड़ दिए। बोले की जब 500 रुपिया खरचा हो जाये और काम न मिले तो 500 सौ में घर वापस आ जाना ।

दिदिया ! तुम्हे याद है ! जब तुम मुझे और बड़का भैया को स्कूल ले के जाती थी । तुम अंगुली पकड़ के ले जाती थी । भैया कितने जलते थे । कहते थे , दीदी , मैं तुम्हारा बाबू हूँ ! यह नही ! " तुम कितनी निश्छल हँसती थी इस बात पर ।बड़का भैया मैट्रिक में सेकेंड आये थे तो तुम बोली ,
" मेरा छोटका बाबू आएगा फर्स्ट ! सबको मिठाई खिलाऊँगी ।" पाँच साल बाद मैं फर्स्ट आया और पूरे मोहल्ले में तुमने बरफी बँटवाया ।
तुम्हे याद है ! बड़की माई का पाँच रुपिया भुला गया था तो मेरे अम्मा से बोली , " बबलुआ लेहले होइ , दोसर केहू तs एने आइल ना हs ।"
माता अपने पुत्र पर आरोप सहन न कर सकी । डंडे से पिटाई शुरू हो गयी थी । बड़का भैया दूर खड़े डरे से हँस रहे थे । तभी तुम आई और बोली , " अरे ! चाची , छोड़s हमरा बाबू के । रुपिया हम ले गइल रहनि नून किने खाति । " और बड़की माई से बोली , " का रे माई ! तोरा सबूर ना होला ? पिटवा देहले नु हमरा धन के ? "

लिखने को बहुत कुछ है । चिठ्ठी संक्षेप में है ।जीवन के भागदौड़ में दिदिया तुमसे दशकों से संवाद नही हो पाया है । अब सब ठीक हो गया है । दुःख है की मेरे बियाह में तुम नही आयी । अब तो एक बिटिया भी है तुमको बुआ जी कहने के लिए ! अब आना तो सईहार के आना , मोटा खरचा लगेगा । दुलहिनिया को मुँह देखाई भी देना पड़ेगा तुम्हे !
और पहुना तुमसे पूछते थे न की पहिला बेर ससुरारी में उनके धोती में हरदी घोर के कवन लगाया था आ सबेरे बवाल हुआ था 😊 तो बताना हमहि थे । आगे से पहुना सतर्क रहेंगे ।

अब तुमसे विनती है की घर आओ , मुझे और दुल्हनिया सहित बेटी को आशीर्वाद दो ।

तुम्हारा नान्हका भाई
सुधीर

नोट : यहाँ पढ़ने वालों के मन मे यह प्रश्न होगा की बड़का भैया कौन हैं ? क्या वह इस पटल पर है ?
उत्तर : हाँ । मेरे बड़े भाई है सर्वेश तिवारी श्रीमुख ।
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