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भोजपुरी कहानिया

प्रेम का रंग पीत.........

प्रेम का रंग पीत.........
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खेतों में फूली सरसो देख कर किसान का सीना अगर 56 इंच का हो जाता है, तो नवदीक्षित प्रेमी, प्रणयोत्सुक नवयुवकों (देहाती में कहें तो लबलबाह तह-बादर परेमी) का सीना 112 इंच का हो जाता है। सरसो के फूलों की सुगंध जब कलेजे में घुसती है तो कलेजा सेंसेक्स का संवेदी सूचकांक हो जाता है,और मन सेटेलाइट की तरह हृदय में ज्वार भाटा उठने की सुचना देने लगता है। अगर कोई जीवविज्ञान का शोधार्थी (डॉ Nityanand Shukla) शोध करे तो पायेगा की सरसो फूलने के माह में टीनएजर की हार्ड बीट का औसत अन्य माह की अपेक्षा डेढ़ गुना ज्यादा होता है। वस्तुतः माघ फागुन का महीना सरसो और प्रेमियों दोनों के लिए संक्रमण का काल होता है। इस कालखंड में तरह तरह की प्रेम कहानियाँ तो दिखती हीं हैं, खल बेखल के प्रेमी भी दिखाई देते हैं। अपनी कालजयी पुस्तक परती परिकथा में रेणु जी ने कुछ प्रेमियों का नामकरण किया था, आज परेमियों का वर्गीकरण करते समय उन नामों की सहायता लेते हुए मैंने इन अद्भुत जीवों को क्रम में कोटिवार सजाने का प्रयास किया है।
परेमी मूलतः चार प्रकार के होते हैं।
1- पागल प्रेमी
2- जागल प्रेमी
3- भागल प्रेमी
4- अभागल प्रेमी

1- पागल प्रेमी- अपनी प्रेमिका की बेरुखी के कारण अनेक रासायनिक अभिक्रिया करने के बाद भौतिक रूप से अस्त ब्यस्त हो चूका प्रेमी पागल प्रेमी कहलाता है। इस कोटि के प्रेमी मंदिर और मस्जिद के पिछवाड़े जा कर भगवान और अल्लाह से अगले जन्म में सांढ़ बनाने की प्रार्थना करते दिख जाते हैं।

2- जागल प्रेमी- प्रेमिका की तरफ से थोड़ी सी सहानुभूति मिलते ही किसी नवसिखुआ फेसबुकिये क्रांतिकारी( श्रीओम आर्जव) की तरह उछल कर आसमान में उड़ने वाले प्रेमी जागल प्रेमी कहलाते हैं।
इस तरह के प्रेमी से अगर प्रेमिका कहे कि- मेरी सेंडल टूट गयी है, प्लीज इसे मोची से सिलवा दो न, तो इन्हें लगता है जैसे भारत रत्न मिल गया हो।
"बाँहों में तेरे जीवन मरण चाहता हूँ, तेरी ओढ़नी का कफ़न चाहता हूँ" जैसी शाम की रागिनी को भोर के राग भैरवी की तर्ज पर गाते फिरते रहने वाले ये प्रेमी प्रेमिका के पांव में चुभे कांटे को जीभ से चाट चाट कर निकाल देने में परिपक्वता प्राप्त करते ही निर्वाण को प्राप्त कर लेते हैं।
सामान्यतः देखा गया है कि इस तरह के प्रेमी प्रेमिका की सेंडल सिलवाने से सुरु हुई प्रेमकथा को शॉपिंग बैग ढोने तक पहुँचा ही रहे होते हैं कि प्रेमिका किसी और की हृदयेश्वरी हो जाती है। फिर भी बिहार में सबसे ज्यादा इसी श्रेणी के प्रेमी पाये जाते हैं।

3 भागल प्रेमी- अपनी प्रेम कथा को उसके चरम तक पंहुचा कर, प्रेमिका के साथ चाँद के पार जाने के लिए घर से भागने के बाद, पैसा ख़त्म होने, पकडे जाने या अन्य कारणों से घर वापस आने के पर, फुसला कर भगाने के केस में जेल जा कर(प्रेमिका की गवाही से ही केस ट्रू होता है) लौटे प्रेमी भागल प्रेमी कहलाते हैं। यह प्रेमियों की सर्वश्रेष्ठ कोटि है। इस कोटि के प्रेमी बुढ़ापे तक नए प्रेमियों का मुफ़्त मार्गदर्शन करते हैं।
4- अभागल प्रेमी- जब दो या दो से अधिक प्रेमी एक ही प्रेमिका की नजरे इनायत को तड़पते हों तो दोनों अभागल प्रेमी कहलाते हैं। जागल प्रेमी की ही तरह ये प्रेमी भी बिहार में बहुतायत में पाए जाते हैं।
अभागल प्रेमियों की भी दो कोटियाँ होतीं हैं-
(i) मूक प्रेमी
(ii) हुक प्रेमी

(i)मूक प्रेमी- वह अभागल प्रेमी जिसे अत्यल्प मात्रा में ही सही पर प्रेमिका की कृपा प्राप्त होती है मूक प्रेमी कहलाता है। प्रेयसी की कृपा कहीं दूसरी ओर स्थानांतरित न हो जाय इस भय से मूक रह कर निरंतर चरण वंदन में रत्त मूक प्रेमी देवतुल्य सौम्यता और गाम्भीर्य प्राप्त कर मित्र मण्डली का सिरमौर हो जाता है।
(ii) हूक प्रेमी- वह अभागल प्रेमी जिसे प्रेमिका की कृपा प्राप्त नही होती, वह अपने प्रेम की अग्नि में निरंतर जलता हुआ हुकत्व को प्राप्त कर हूक प्रेमी कहलाता है। इस कोटि के प्रेमी सदैव क्रोध में भरे रहते हैं और किसी भी प्रश्न का उल्टा जवाब देते हैं।
जैसे यदि कोई इनसे पूछे कि आलोक पाण्डेय कहाँ हैं? तो ये जवाब देते हैं- मेरी पॉकेट में हैं। फिर भी ये प्रेमी दया के पात्र होते हैं।

सर्वेश तिवारी श्रीमुख
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