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भोजपुरी कहानिया

प्रिय गुजरातियों!

प्रिय गुजरातियों!
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मैं आपको यह पत्र क्यों लिख रहा हूँ, यह नहीं जानता। अंदाज लगता हूँ तो लगता है कि शायद इसलिए, कि जो परिस्थिति आज आपके सामने है, वह हमारे यहां आज से लगभग 27 वर्ष पूर्व आई थी। यूँ तो हर साल कोई न कोई चुनाव हमारे-आपके राज्य में आता ही रहता है, पर आपके यहां का यह चुनाव थोड़ा अलग है। किस मामले में अलग है, यह बाद में बताता हूँ, पर पहले अपनी पीड़ा बता दूं। आज से लगभग 27 वर्ष पूर्व हमारे बिहार में भी एक चुनाव आया था, जब सारे मुद्दों को ताक पर रख कर पहली बार जाति के नाम पर चुनाव लड़ा गया। उस समय तो लोगों को यह एक तात्कालिक घटना भर लगी, पर जाति की यह आग इतनी फ़फ़की कि उसके बाद से अबतक बीसों चुनाव आये पर हर बार चुनाव जाति के नाम पर ही लड़ा गया। इस बीच जाति के नाम पर सैकड़ो नरसंहार हुए। ब्राह्मण ने भूमिहार को मारा, भूमिहार ने यादव को मारा, यादव ने दलित को मारा, दलित ने ब्राह्मण को मारा। हर जाति के संगठन बने और सबने एक दूसरे को मारा। हम भूल गए कि हम मनुष्य भी हैं। हमें बस यह याद रहा कि हम फलां जाति के हैं। हमनें इतना खून बहाया कि दुनिया हमें अलग निगाह से देखने लगी। पर इसके बदले हमें मिला क्या? हम आज से बीस वर्ष पहले जैसे थे, आज भी वैसे ही हैं। जातिवादी राजनीति ने किसी जाति को भी फायदा नहीं पहुचाया। हुआ बस इतना कि जाति के नाम पर कुछ लोगों ने राजनीति पर पूरी तरह से कब्जा जमा लिया, और उनके परिवार का भला हो गया। पर जिस जाति के नाम पर उन्हें सत्ता मिली, उस जाति के लोगों की दशा में कोई सुधार नहीं हुआ। पच्चीस साल बीत गए। अब आज की दशा यह है कि गोरखपुर रेलवे स्टेशन से एक ही ट्रेन पर बैठ कर ब्राह्मण, राजपूत, यादव, दलित भूमिहार, सबके लड़के आपके गुजरात मे नौकरी खोजने जाते हैं। एक ही हवाई जहाज से सब अरब के देशों में मजदूरी करने जाते हैं। सत्ताईस सालों की जातिवादी राजनीति ने हमें बस यही दिया है।
हमारे यहां आनंद कुमार जैसे शिक्षक हैं, तथागत तुलसी जैसे छात्र हैं, पर एक भी स्तरीय कॉलेज नहीं है। हमारे यहां सबसे ज्यादा नदियां हैं, पर हम अब भी दूसरे राज्यों से पनबिजली खरीदते हैं। हमारे यहां नदियां सबसे ज्यादा पानी लाती हैं, पर हर साल हमारे आधे खेत सूखा झेलते हैं। अदम्य साहस, अथक परिश्रम की शक्ति और अतुल्य योग्यता होने के बावजूद हमारे यहां के युवा अन्य राज्यों में पलायन को मजबूर हैं। यही मिला है हमें इस जातिवादी राजनीति से।
मेरे गुजराती मित्रों, जो जहरीली बयार हमारे बिहार में आज से सत्ताईस साल पहले बही थी, उसी बयार को आज आपके गुजरात मे बहाने की कोशिश हो रही है। आप अपने गुजरात के पिछले चुनावों को याद कीजिये, जीत किसी की भी हुई हो पर चुनाव हर बार विकास के मुद्दे पर लड़ा जाता था। यह पहली बार है जब एक बुजुर्ग लड़के की सरदारी में तीन लड़के अलग अलग जातियों का झंडा उठाये घूम रहे हैं। उनके लिए विकास नहीं जाति मुद्दा है। और उनके फर्जीवाड़े की हद देखिये, अलग अलग जातियों का झंडा ले कर भी वे एक ही साथ हैं। मलतब सीधा है, वे हैं तो एक हीं, बस जनता को टुकड़ों में बांटना चाहते हैं। अब आप सोचिये कि आपको विकास के मुद्दे पर भोट देना है, या गुजरात जातिवाद में जहर बोना है।
कुछ लोग आपको बरगला रहे हैं कि गुजरात में विकास नहीं हुआ है। उनसे पूछिये, कि अगर गुजरात मे विकास नहीं हुआ तो कहां हुआ है? क्या उस बंगाल में, जहां के मजदूर सबसे सस्ती दरों पर पूरे भारत मे मजदूरी करने को अभिशप्त हैं?
वे कहते हैं कि गुजरात मे बेरोजगारी है। आप उनसे पूछिये कि यदि गुजरात में बेरोजगारी है तो ट्रेन भर भर कर बिहार, बंगाल और उत्तरप्रदेश के युवक गुजरात के शहरों में काम की खोज में क्यों उतरते हैं?
वे कहते हैं कि गुजरात मे असहिष्णुता है। उनसे पूछिये कि फिर सहिष्णुता कहाँ है? क्या उस बंगाल में, जहां हमेशा हिंदुओं के सैकड़ों घर फूंक दिए जा रहे हैं? क्या उस कश्मीर में, जहां के बीस लाख लोग अन्य राज्यों में शरणार्थी बन कर दर दर की ठोकर खा रहे हैं? क्या उस आसाम में, जहां से मार मार कर लाखों लोगों को भगा दिया जाता है?
आपको एक और राज्य की कहानी सुनाता हूँ।
आज से चालीस साल पहले तक बंगाल देश का सबसे विकसित राज्य समझा जाता था। बिहार, उत्तरप्रदेश के लोग नौकरी की तलाश में बंगाल की ओर ही निकलते थे। भारत की औधोगिक राजधानी थी कलकत्ता। कहते थे- जो बात बंगाल आज सोचता है, एक साल बाद वही सारा देश सोचता है। बात सही भी है, बंगाल देश को हमेशा दिशा दिखाता था। संयोग देखिये, जो लोग गुजरात को बुद्धिजीविता सिखा रहे हैं, उनकी बंगाल में सरकार बन गयी। उन्होंने बंगाल को वह दिशा दी कि आज बंगाल का नाम आते ही आर्केस्टा में नाचती लड़कियां, और पूरे देश मे तम्बुओं में रह कर मजदूरी करने वाले मलदहिया मजदूर याद आते हैं। यही है उनका विकास।
आज आपके सामने यही एक प्रश्न है, यही एक मुद्दा है, कि गुजरात को गुजरात रहने देना है, या बिहार, बंगाल बनाना है।
एक बात और कहूंगा। गुजरात भारत के पारंपरिक शत्रु पाकिस्तान की सीमा से सटा राज्य है। भोट देने के पहले एक नजर भारत के उन अन्य सीमावर्ती राज्यों से गुजरात की तुलना कर लीजियेगा। जम्मू कश्मीर, पंजाब, अरुणाचल प्रदेश, आसाम, बंगाल, नागालैंड जैसे सीमावर्ती राज्यों में आतंक का जो बाजार है, वह गुजरात मे नहीं है तो क्यों नहीं है। बाइस वर्ष पुरानी सरकार ने गुजरात को आतंकवाद के जहर से बचाया है, तो यह क्या कोई छोटी उपलब्धी है? और अगर सत्ता जातिवादी चेहरों के हाथ मे गयी तो क्या वे पाकिस्तानी आतंक से गुजरात को बचा पाएंगे।
दोस्तों, मैं यह नहीं कह रहा कि आप सदैव भाजपा को ही भोट देते रहिये। मैं बस यह कह रहा हूँ, कि यदि गुजरात मे भाजपा को बदलना है तो उससे बदलना है जो गुजरात को गुजरात बनाये रखने की सामर्थ्य रखता हो। और यह भी एक सत्य है, कि आज गुजरात मे ऐसा दूसरा कोई नहीं है।
यह चुनाव गुजरात के इतिहास का सबसे अलग चुनाव है। सो वोट डालते समय यह जरूर याद रखियेगा कि वोट गुजरात को ही देना है।
ईश्वर आप पर कृपा करें।

आपका शुभचिंतक..
गांव में रह कर गंवई कहानियां लिखने वाला एक गुमनाम साहित्यकार।
सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।
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