Janta Ki Awaz
भोजपुरी कहानिया

"हम ओके 5 तारीख के मुआ देब!"

हम ओके 5 तारीख के मुआ देब!
X
स्टेशन पर भीड़ ज्यादा रहे। पैसेंजर ट्रैन के आवे के घोषणा हो गईल रहे अउरी यात्री लोग ट्रैन पकडे खातिर प्लेटफार्म नंबर तीन पर लटकल रहे। ट्रैन बबलू के भी पकडे के रहे पर उनका कवनो अकुताई ना रहे। इ उनकर आदत रहे। उ ट्रैन में सबसे आखरी में चढ़स अउरी अगर लटके के नौबत आवे त ट्रैन छोड़ भी देस। भले घंटे दू घंटा दूसरा ट्रैन खातिर बइठे के पड़े। वईसे भी ट्रेन चुकी ओहिजा से खुले त जगह ना मिले के कवनो बाते ना रहे। कुछ देर में पैसेंजर ट्रैन आ गईल अउरी ओइमे घुसे खातिर लोग कुश्ती करे लागल। बबलू इत्मिनान से खड़ा रहले। आजू भीड़ कुछ ज्यादा ही रहे। ट्रैन खचखच भर गईल अउरी काफी लोग पायदान पर भी लटकल रहे। ट्रैन चले के सिटी बजा देहलस। उहो ट्रैन पकडे खातिर पायदान तक पहुँचले पर इ जान के कि लटक के ही जाए के पड़ी उ आपन गोड़ पाछे खीच लेहले। हाबड़ावा पीछे ही रहे अउरी गोरखपुर से भटनी भी उ पैसेंजर से पहिले ही पहुचित। उ थोड़ा पीछे खड़ा हो गईले। ट्रैन धीरे धीरे सरके लागल अउरी कुछ देर में रफ़्तार पकड़ लेहलस। प्लेटफार्म के खाली होते ही उनकर नजर एगो काला रंग के डायरी पर पड़ल। शायद चढ़े के धक्का मुक्की में कवनो यात्री के डायरी गिर गईल रहे। उ आगे बढ़ के उठा लेहले अउरी इ सोच के भी जेकर होई ओके भेजवा देब, ओकर पहिला पन्ना खोलले। बड़ा अचरज के बात रहे कि नाम अउरी पता वाला पन्ना एकदम खाली रहे। फेरु अगिला पन्ना खोलले, उहो खाली, अउरी ओकरा बाद वाला भी खाली। शायद आगे कुछ मिलो इहे सोच के उ एकह गो पन्ना उलाटत गईले। करीब ५० पन्ना उलटला के बाद उनकर अंगूरी रूक गईल। उ 5 मार्च 2017 के तारीख रहे अउरी जवन लिखल रहे ओके पढ़ के उ सिहर गईले -
"हम ओके 5 तारीख के मुआ देब!"
बाकायदा इ लाइन के लाल स्केच से हाईलाइट कईल रहे। अउरी थोड़ा लाइन छोड़ के नीचे लिखल रहे।
ओके अदालत त सजा दे देले बा पर उ कम बा। हमरा माई के कातिल के सजा मौत से कम नईखे हो सकत। उ 5 तारीख के जेल से ही ना आजाद होई बलुक ऐ दुनिया से भी आजाद हो जाई।
"हम ओके 5 तारीख के ओके मार देब!" इ लाइन दुबारा लिखल गईल रहे अउरी लाल स्केच से रंगल रहे।
पढ़ के बबलू के माथा चकरा गईल। इ अंदाजा त लागल कि केहू के मर्डर करे के बात बा जे कि 5 मार्च के जेल से बाहर निकलता। उ के ह, कहवा के ह, अउरी डायरी लिखे वाला काहे ओके मारे चाहता, इ सब सवाल बबलू के घेर लेहलसँ। वइसे भी उ खोजी पत्रकार रहले अउरी अयीसने कहानी खोजे में उनका मजा आवे। कुछ अउरी जानकारी के उम्मीद में आगे के सगरी पन्ना उलाट देहले पर सब खाली निकलल।
उनका खोजी पत्रकारिता के करियर में इ एगो नया अनुभव रहे। एकरा ले पहिले ले कवनो कांड भईला के बाद ही ओकर कारन या घटना के पता लगवले रहले। आजु उनका पहिले से चल गईल कि फलां तारीख के मर्डर होखे वाला बा, पर के करी, केकर मर्डर होइ अउरी आखिर वजह का बा ? इ सब सवाल उनके परेशां कईले रहल सं।
ट्रेन के चिंता छोड़ बबलू बेंच पर बईठ गईले। आगे का करे के चाही इ ना बुझात रहे. कही अईसन त नईखे नु कि केहू मजाक में लिखले बा। पर काहे केहू मजाक करी अउरी उहो मजाक में मर्डर के बात। साथ ही इहो लिखल बा कि माई के कातिल। मने वजह भी साफ़ बा। त फेरु का करी ? पुलिस के इ डायरी सौप दी। उ पता करी। फेरु उनकर आपन पेशा के लालच सामने आ जाऊ। बहुत बढ़िया कहानी हो सकत रहे अगर उ डायरी लिखे वाला के बारे में उ खुदे पता क लेस अउरी इ कहानी के छाप देस त। फेरु आगे के काम पुलिस के रहित अउरी उ देखित। इहे सोच के एकरा तह में जाए के निर्णय कईले। कुछ डायरी से क्लू मिल जाऊ इ सोच के उ डायरी के वापस पलटले पर कुछु हाथे ना आयिल।
इहे सब सोचत में हाबड़ा आ गईल अउरी निराश मन से बबलू घरे वापस आ गईले। रात भर मन अहजह में रहे कि का करस। कही उ ना पता लगा पवले अउरी कही मर्डर हो गईल त फेरु ओ हत्या के पाप में भागी उहो बनिहे। पर पुलिस के बतावल उनका ठीक ना लागे ,इ कवनो जरूरी त ना रहे कि पुलिस तत्परता से ही काम करीत। ऊपर से उनकर पेशा के लालच उनके रोकत रहे। आज तारिख 15 फेब्रौरी रहे। उ तय कईले कि अगिला एक हफ्ता ले ऐ कहानी के पता करे के कोशिश करेब अउरी अगर असफल हो गईनी त फेरु पुलिस के डायरी सौप देब। उ ध्यान से सोचे लगले कि उ आदमी कहा के हो सकेला। पैसेंजर गोरखपुर से छपरा जाऊ। यानी कि मर्डर करे वाला आदमी के होखे के ज्यादा सम्भावना एही रूट के जिला में से ज्यादा रहे। फेरु काहे ना चलके एही सब जिला के जेल में पता कईल जाऊ कि 5 मार्च के कवनो अईसन आदमी छूटता का जे कवनो औरत के हत्या के जुर्म में सजा काटता। शायद अईसे कुछ पता चल सकत रहे हालाँकि इहो अँधेरा में तीर चलावे जईसन ही रहे।
चुकी देवरिया जिला उनकर घर भी रहे अउरी नजदीक भी, उ आपन जाच ओहिजा से शुरू करे के तय कईले।
स्थानीय पत्रकार भईला के फायदा ई रहे कि उनकर जेलर से थोडा बहुत जान पहचान रहे। बिना ढेर मेहनत के उ 5 तारीख के जेल से आजाद होखे वाला लोग के लिस्ट उनका मिल गईल। 20 आदमी ओइदीन जेल से रिहा होत रहे। बबलू सबके डिटेल गौर से पढ़े लगले। ठीक बारहवा कैदी के डिटेल पर जाके उनकर नजर ठहर गईल- नाम डॉ आशुतोष, जुर्म -पत्नी के जहर देके हत्या, सजा 20 साल।
बबलू के जाच के सही दिशा मिल गईल रहे। अतना जल्दी अउरी अतना आसानी से उनका पता चली एकर उम्मीद ना रहे। अब इ साफ़ रहे कि उ डायरी लिखे वाला आशुतोष के बेटा ही रहे जवन कि अपना माई के हत्या के बदला लेबे चाहत रहे। पर आखिर काहे आशुतोष अपना बीबी के हत्या कईले ?अब इ सवाल बबलू के दिमाग में घूमे लागल। ऐ बात के पता आशुतोष के केस डायरी से पता चल सकत रहे। केस के अनुसार आशुतोष अपना के निर्दोष बतवले रहले पर अदालत उनकर दलील ना मंगलस काहे कि उनकर सासु ससुर के आरोप रहे कि आशुतोष जान बुझ के उनके लड़की के जहर दे देले रहले काहे से कि उनका पत्नी के सफ़ेद दाग के बेमारी हो गयिल रहे. ओ केस के एकमात्र गवाह रहे आशुतोष के नौकर बैजू, जवन कि आशुतोष के बात के सही कहले रहले पर अदालत उनकर बात ना मनले रहे।
अब आगे अयिपर ज्यादा जानकारी बैजू से मिल सकत रहे। बबलू बैजू से मिले के तय कईले अउरी आशुतोष के एड्रेस लेके निकल गईले।
गोरखपुर में डॉ आशुतोष के घर खोजे में बबलू के ज्यादा दिक्कत ना भईल। संयोग से उनकर मुलाक़ात बैजू से ही हो गईल। उ आज भी ओहिजा काम करत रहले।
थोडा बहुत औपचारिकता के बाद बबलू असली बात पर आ गईले। तनी सा हिचकिचाहट के बाद बैजू सारा कहानी खोल के रख देहले।
डॉ आशुतोष अउरी डॉ श्वेता साथे पढ़त रहे लोग अउरी पढाई के दौरान ही दुनु जाना में प्रेम हो गईल। चुकी दुनु जाना के जाति अलग रहे, उ शादी श्वेता में माई बाबूजी के मंजूर ना रहे। ओ लोग के विरोध के ध्यान ना देके दुनु जाना लव मैरिज क लिहल लोग। पढाई ख़त्म भईला के कुछ ही दिन बाद दुनु जाना के नौकरी गोरखपुर के सरकारी हॉस्पिटल में हो गईल। दुनु जाना के रिसर्च के बड़ा शौक रहे हॉस्पिटल से फ्री होके घर पर उ लोग बाकी के समय नया दवाई में रिसर्च में बितावे लोग। घर में ही बहुत बड़ा लेबोरेटरी बनवले रहे लोग। शादी के तीन साल बाद दुगो घटना भयिली सन -बेटा प्रतीक के जन्म अउरी साथे ही स्वेता के सफ़ेद दाग के बेमारी। एक तरफ बेटा भईला के ख़ुशी त दूसरा तरफ, इ लाइलाज बेमारी के दुःख लेकिन चुकी दुनु जाना डॉ रहे लोग, उ लोग ऐ बेमारी के चुनौती के रूप में लिहल। फेरु ओकर दवाई बनावे में जुट गईल लोग। एक साल के अथक मेहनत के बाद दवाई तैयार हो गईल लेकिन डॉ आशुतोष ऐ दवाई के इस्तेमाल खातिर तैयार ना रहले। दवाई में जान लेबे वाला केमिकल के मात्रा ज्यादा रहे अउरी अईसे जान जाए के खतरा रहे। श्वेता जिद में रहली । आखिर कर लम्बा बहस के बाद आशुतोष के श्वेता के सामने झुक जाए के पडल। शायद श्वेता के ओ खतरा के पहिले से ही जानकारी रहे अउरी ओकरा वजह से कही आशुतोष ना फस जास उ अपना हाथ से एगो पत्र लिख के आशुतोष से छिपा के बैजू दे देले रहली कि ऐ दवाई के इस्तेमाल से जान जाए के खतरा बा अउरी अगर उनके कुछु होता त एकर जिम्मेदार उ खुद होईहे।
नियत समय पर दवाई के एक्सपेरिमेंट कईल गईल। डॉ आशुतोष के डर सही साबित भईल अउरी एक्सपेरिमेंट फेल हो गईल। दवाई रिएक्शन क देहलस अउरी श्वेता के शरीर में जहर फयीलला से उनकर मौत हो गईल।
कहानी सुना के बैजू फूट फूट के रोवे लगले अउरी कहे लगले "साहब के जेल हमरा वजह से भईल बा। अगर हम उ पत्र ना भीलववले रहिति त साहब के सजा ना भईल रहित।"
श्वेता के माई बाबूजी पहिले से ही गुस्सा में रहे लोग अउरी श्वेता के मौत से ओ लोग के खीस अउरी बढ़ी गईल। उ लोग डॉ आशुतोष के बात पर अचिको भरोसा ना रहे। श्वेता के मौत के जिम्मेदार उ लोग आशुतोष के मानल। फेरु जहर देबे के आरोप लगा के पुलिस केस क दिहल। आशुतोष के बचे के एकमात्र उपाय रहे श्वेता के लिखल पत्र जवन कि बैजू से हेरा गईल रहे।
अदालत में आशुतोष चीख चीख के अपना बेगुनाही के सबूत देत रही गईले। बैजू के गवाही भी अदालत ना मनलस अउरी श्वेता के चिठ्ठी उ पहिले ही भीलवा देले रहले। फेरु 20 साल के सजा अदालत देहलस अउरी 5 तारीख के उ सजा ख़त्म होत रहे।
चौबीसे घंटा में बबलू डायरी के रहस्य खोज लेले रहले पर कहानी अभी ख़त्म ना भईल रहे। एक बार अदालत आशुतोष के सजा में देके गलती कईले रहे अउरी उहे गलती अब उनकर बेटा दोहरावे वाला रहे काहे से कि ओकरा नजर में उ ओकरा माई के कातिल रहले। अब डॉ आशुतोष के बचावे के जिम्मा बबलू के रहे अउरी उनका बेटा के जुर्म से। पर कईसे उ रोक सकत रहले, इ ना समझ में आवत रहे। नौकर के बैजू के गवाही ना अदालत मनलस ना श्वेता के माई बाऊजी। फेरु उनकर बेटा काहे बैजू के बात मानित।
"अच्छा तू त ओ चिठ्ठी के खोजे के ना कोशिश कईल ?" बहुते देर ले सोच के बबलू बैजू से पूछले।
"बहुत कईनी साहब" बैजू कहले "पर संयोग देखि अतना साल उ हमके ना मिलल अउरी अब साहब के छूट के आवे के बा अउरी इ चिठ्ठी परसों ही हमरा मिलल।"
"फेरु तू ओके पुलिस या डॉ साहब के पास काहे ना लेके गईल"
"हम चिठ्ठी साहब के पास लेके गईल रहनी पर उहाँ के कहनी कि अब का फायदा। २० दिन में त हम छूट के ही आ जाएब।"
बबलू के आगे के रास्ता मिल गईल रहे। उ बैजू अउरी ओ चिठ्ठी के लेके प्रतीक से मिले चल देहले।
प्रतीक से मिलते ही बबलू के अंदाजा हो गयिल कि उनका मन में आशुतोष खातिर घृणा कूट कूट के भरल बा। बैजू के देखते उ भड़क गईले। चुकी बैजू आशुतोष के पक्ष में गवाही देले रहले त प्रतीक के नजर में उहो अपराधी रहले।
जबाब में बबलू उ डायरी प्रतीक के सोझा क देहले अउरी प्रतीक समझ गईले कि बबलू के उनका इरादा के पता चल गईल बा।
"कुछु होखो पर हम ओके 5 तारीख के मुआ देब!" रहस्मयी मुस्कान अउरी घृणा के साथे प्रतीक कहले।
"शायद तहार इरादा बदल जाई" कही के बबलू श्वेता के लिखल चिठ्ठी प्रतीक के थमा देहले। कुछ देर प्रतीक अचरज से देखत रहले अउरी फेरु चिठ्ठी खोल के पढ़े लगले। पत्र के आखिर तक पहुचत पहुचत उनका चेहरा के रंग क बार बदलल। फेरु अन्दर जाके के श्वेता के लिखल पुरान कॉपी से पत्र के लिखावट मिलावे लगले। लिखावट के मिलान के पुष्टि उनकर नाना नानी भी क दिहल लोग। प्रतीक फूट फूट के रो पडले। उनकर नाना नानी भी अपना के अपराधी महसूस करत रहे लोग। शक अउरी ग़लतफ़हमी से एगो आदमी बीस साल खातिर जेल चल गईल रहे।
5 तारीख के डॉ आशुतोष जेल से बाहर निकलले त गेट पर सास ससुर अउरी बेटा के इन्तजार करत रहे लोग। उ अचरज में रहले काहे कि उनका अपना बेटा के नफरत के पता रहे। तभी त उ उनसे कबो मिले ना आ आईल रहले। प्रतीक दौड़ के उनसे लिपट गईले अउरी दुनु जाना के लोर बही निकलल। साइड में खड़ा बबलू के आँख भी गिल हो गईल रहे।
उनका कहानी के सुखद अंत भईल रहे अउरी अब काल्ह के अखबार में ओके छापे के रहे। अईसन कहानी उ कबो ना खोजले रहले।


धनंजय तिवारी
Next Story
Share it