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भोजपुरी कहानिया

घोघा बापा का प्रेत (कहानी) -4

घोघा बापा का प्रेत (कहानी) -4
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इधर सज्जन जी महमूद गजनी की एक तिहाई सेना को नितांत अकेले ही तहस नहस करके, वीरगति को प्राप्त हो गए रेगिस्तान में। और उधर उनके बीस वर्षीय लड़के और घोघाराणा के प्रपौत्र 'सामन्त' को कुछ ज्ञात ही नहीं था। वो अपनी ऊँटनी पर उड़ा जा रहा था कि बापू से पहले ही घोघागढ़ पहुँच कर दिखाऊंगा। लेकिन उसके सर महती जिम्मेदारी भी थी कि आस पास के राजाओं को महमूद के खिलाफ लड़ने के लिए एकत्रित करना। परन्तु सहायता कहीं से नहीं मिली।

आखिर में सामन्त झालौर पहुंचा। झालौर के राजा 'वाक्पतिराज' उसके दादा घोघाराणा के सम्बन्धी थे, और सामन्त के मामा भी लगते थे। झालौर की सीमा पर ही पाटण राज्य का, युवा लेकिन मितभाषी मंत्री 'विमल' भी मिल गया उसको, उसी प्रयोजन हेतु वह भी आया था कि उसके राजा भीमदेव को थोड़ी सहायता मिल जाए, तो सोमनाथ को गजनी के हाथों अपवित्र होने से बचाया जा सके। अकेला भीमदेव ही ऐसा राजा था जो खुलकर महमूद गजनी को ललकार रहा था कि, "आ मलेच्छ, आकर सोमनाथ को हाथ लगाकर तो दिखा।" लेकिन उसकी सेना में कुछ हजार ही सैनिक थे, जबकि महमूद की सेना में तो लाखों केवल हाथी घोड़े थे। सैनिकों की संख्या तो अपरिमित ही थी।
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दोनों वाक्पतिराज के महल पहुंचे, उसने दोनों का प्रेमपूर्वक स्वागत किया। लेकिन महमूद गजनी ने उसको थाल भरकर नजराना भिजवा दिया था कि 'आप मेरे और गुजरात की लड़ाई के बीच न आयें'। इसलिए उसने सामन्त और विमल को सहायता देने से मना कर दिया। अपने मामा की यह बात सुनकर सामन्त का युवा खून खौलने लगा। लेकिन वाकपटु विमल ने सामन्त की बांह ईशारे से दबाते हुए राजा को समझाने की एक कोशिस और किया। बोला-

"महाराज, क्या ये ठीक होगा कि वो मलेच्छ गजनी हमारे महाराज को परास्त करके बाबा सोमनाथ पर अपनी कुदृष्टि डाले? आखिर सोमनाथ बाबा का धाम तो समस्त हिन्दुओं का है। हम सबका ही कर्त्तव्य बनता है कि इस महान युद्ध में एक साथ आयें। वो गौ, ब्राह्मणों और मंदिरों का अपमान हम क्षत्रियों के जिन्दा रहते कर जाए तो हमें शर्म से डूब मरना चाहिए। मेरा ये विनम्र निवेदन है कि आप जैसा महावीर और इतनी बड़ी सेना का आधिनायक इस महान कार्य में हमारे महाराज भीमदेव की सहायता करे। और महाराज, जब वो बाकी जगहों को विजित कर लेगा तो क्या बाद में आपके राज्य को छोड़ देगा?"

वाक्पतिराज कड़वे स्वर में बोल उठा, "जब पिछले साल मैंने मारवाड़ पर चढ़ाई करने के लिए भीमदेव से एक हजार घोड़े और दो हजार ऊंटनियाँ मांगी थीं, तब तो वो मारवाड़ का रिश्तेदार लगता था। जब उस मलेच्छ ने आगरा, मथुरा में मंदिर तोड़े, दीन हीन पुजारी, पण्डे, ब्राह्मणों को अपनी सेना में कौड़ियों के दाम, दास बनाने के लिए बेच दिया तब तुम्हारा भीमदेव गुजरात से बाहर क्यों नहीं निकला? बड़ा वीर है न भीमदेव, तो अपनी करनी खुद भुगते। अभी अभी तो मुल्तान का मुखिया, महमूद गजनी का नजराना देकर, यहाँ से सन्देश लेकर निकला है। मैंने उसको सन्देश दे दिया है कि बाकि किसी भी जगह पर महमूद कुछ भी करता फिरे, लेकिन हमारे राज्य की ओर तिरछी नजर से भी देखा तो मैं उसको उसकी सेना सहित चीर डालूँगा।"
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अगर मृदुभाषी विमल सामन्त को संकेतों में रोकता नहीं रहता, तो वो वहीँ अपने मामा की स्वार्थपरता देख कर उसके टुकड़े टुकड़े कर देता। अंततः दोनों थक हार कर निराश बाहर निकले। सीमा तक पहुँचते ही विमल मुस्कुराया। सामन्त को ऐसी परिस्थिति में भी उसको मुस्कुराते देख कर बहुत आश्चर्य हुआ। विमल उसका आश्चर्य देख कर कह उठा, "महाराज, प्रसन्न रहने से दिमाग तेज काम करता है। अपना पूर्ण प्रयास करना चाहिए मनुष्य को, बाकि फल सोमनाथ बाबा पर छोड़ देना चाहिए। मैं मुस्कुराया इसलिए कि भले ही हम वाक्पतिराज को अपनी ओर नहीं खींच पाए, लेकिन इतना तो जरूर कर आये कि वो उस मलेच्छ को कोई सहायता नहीं देंगे। और तो और, एक महत्वपूर्ण बात हमारे हाथ लगी है जो शायद आपने ध्यान नहीं दिया।"

अचकचाया सा सामन्त पूछ पड़ा, "ऐसी कौन सी बात?"

विमल की मुस्कराहट गहरी हो गई, बोला, "वाक्पतिराज का सन्देश लेकर मुल्तान का मुखिया 'अभी अभी' निकला है। अगर हम उसको रोक लें तो वाक्पतिराज का सन्देश महमूद तक पहुँच ही नहीं पायेगा। लेकिन चिंता की बात यह है कि आप अकेले हैं और मेरे पास भी गिनती के घुड़सवार हैं, जो लड़ना नहीं जानते हैं।"

बीस वर्षीय सामन्त की आँखों में कालभैरव जैसी चमक उभरी, उसने अपनी तलवार निकाल कर उसको भरपूर सूंघा और कातिलाना आवाज में कह उठा, "मैं वीर घोघबाप्पा का प्रपौत्र हूँ विमल जी। वो बचपन से ही मुझे प्यार से 'घोघाराणा का प्रेत' क्यों कहते हैं, आज आपको पता चल जायेगा। चलिए उसी मुल्तान के मुखिया के पीछे, वो हाथ से निकलना नहीं चाहिए।"

विमल ने हाथ जोड़कर सामन्त से कहा, "लेकिन युवराज, पहले मैं बात करूँगा उससे। जब बात नहीं बनेगी तब ही आप को जो करना हो करियेगा।"

अबकी बार सामन्त भी खिलखिला उठा, "ठीक है विमल जी, मैं अपना मुंह बंद ही रखूँगा, प्रण रहा मेरा। लेकिन एक बात तो है, कि आप जैसा मंत्री हमारे घोघराणा को भी मिल जाता तो हमारी उन्नति को चार चाँद लग जाते। आपके राजा सच में भाग्यशाली हैं जो आप जैसा मंत्री उनको मिला है।"
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एक सराय के बाद दूसरे सराय में मिल गया मुखिया। विमल ने अपनी चतुराई से पहले उसको तरह तरह से समझाने की कोशिस किया कि महमूद का साथ न दे वो। वो ज्यादा बात भी नहीं करता था, केवल "हूँ हाँ, क्यों, नहीं" जैसे शब्दों का प्रयोग करके सशंकित भाव से विमल की ओर देखता ही रहा। बहुत देर हो चुकी थी, और अब मुखिया उठ कर अपने ऊंट पर बैठा और चल दिया। ऐसे समय पर विमल जैसा धीर गंभीर मनुष्य भी धैर्य खो बैठा और अपनी ऊँटनी पर दौड़ कर, मुखिया के पास पहुँचते ही म्यान से तलवार निकाल लिया। लेकिन मुखिया अत्यधिक सावधान था। विमल की तलवार म्यान से बाहर निकलती, उससे पहले ही मुखिया ने अपनी तलवार विमल के सीने पर लगा दी। विमल के पास और कोई चारा न बचा। उसने अत्यधिक फुर्ती से मुखिया को जोर से लात मारा और अपनी ऊँटनी से पीछे की ओर नीचे उलट कर कूद गया।

मुखिया भी गिर ही पड़ा था। अब दोनों जमीन पर नंगी तलवारें लिए आमने सामने थे। मुखिया के सैनिक विमल और सामन्त की घेराबंदी करनी शुरू कर दिए। विमल ने सामन्त को इशारा किया कि अब निपटो इनसे। विमल का ईशारा पाते ही सामन्त अट्टहास कर उठा। ऐसी कठिन घड़ी में पचासों सैनिकों के बीच उसकी पैशाचिक हँसी सुनकर सबके साथ विमल की रीढ़ में भी सिहरन दौड़ गई। उसने मुखिया पर ध्यान रखते हुए सामन्त की ओर कनखियों से देखा। सामन्त अब बड़े आराम से अपनी दोनों तलवार निकाल कर उसको चाट रहा था। ऐसा करते हुए वो बीस वर्षीय बालक साक्षात् प्रेत ही तो लग रहा था। विमल ने देखा कि जैसे प्रेत अपना आकार बढ़ा रहा हो, वैसे ही अब वो करीब एक हाथ लम्बा लगने लगा था। उसकी कोमल बांहें अब फूलती पिचकती और अंततः कठोर होती हुई अजानबाहू की भुजाओं में परिवर्तित होती जा रही थीं।

विमल के देखते ही देखते उसने अचानक से सिंह जैसी एक विकराल दहाड़ निकाली और मुखिया के सैनिकों पर टूट पड़ा। सैनिक उसको घेरने का प्रयत्न करने में लग गए। लेकिन समस्या ये आ रही थी कि घेरें कैसे। उसकी फुर्ती ऐसी थी कि वो भरपूर दिन के उजाले में ही जैसे अदृश्य हो जा रहा था। अभी दिखाई दिया बायीं ओर वाले सैनिक का एक झटके में बिना आवाज सिर उड़ाते हुए, तभी अगले ही क्षण दायीं ओर वाले सैनिक का सिर उड़ गया। किसी की भुजा उड़ी पहले, तो किसी की टांग ही पहले रेत दिया उस निर्दयी ने ! पलक झपकते ही मुखिया की टुकड़ी के पचासों सैनिक जमीन पर रक्त के फव्वारे छोड़ते तड़पते नजर आये। कुछ ने जमीन पर लेट कर हाथ जोड़ लिए, वही जिन्दा बचे।

इधर विमल की असावधानी देखकर मुखिया ने विमल की गरदन को लक्ष्य करके तलवार चला दिया। विमल बड़ी मुश्किल से झुक कर उसका वार बचा पाया। लेकिन सीधा होते ही उसने देखा कि मुखिया तडपते हुए जमीन पर गिर रहा था। प्रेत ने उसको अपनी दोनों तलवारों से बींध डाला था।
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विमल अपने पाटण के राजा भीमदेव को ही धरती का सबसे बड़ा वीर मानता था। इस लड़के को देखकर तो उसके प्राण ही सूख गए। और अब वो फिर से वही भोला भाला सामन्त बनकर उसके सामने खड़ा था। विमल के मुख से बोल ही नहीं कुछ फूट रहा था, वो बस अपने सूखे होठों पर जीभ फिराए जा रहा था। सामन्त ने उससे अब विदा माँगा और अपने गढ़ की दिशा में चल दिया। विमल झुरझुरी लेकर जाते हुए उस जिन्दा प्रेत की पीठ को घूरे जा रहा था।

(भारत का सदियों से दुर्भाग्य यही रहा है कि यहाँ का एक एक वीर दुनिया के महावीरों पर भारी ही पड़ता। लेकिन महायुद्ध किसी एक अकेले इंसान द्वारा नहीं जीते जाते। उसमें सैनिकों, सिपहसालारों, आयुध, हथियारों, रणकौशल इत्यादि ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं। एकता ही हमारी कमजोरी रही है सदा से। बहाना चाहे कोई भी हो, वजह कुछ भी हो पर, हम एकता नहीं बनाये रख पाए। आपसी छुद्र मन मुटाव ही हमारी पराजय के मुख्य कारण रहे हैं। आज भी हम 'संघे शक्ति कलियुगे' को विस्मृत किये हुए हैं, अपनी तुच्छ इर्ष्या द्वेष के चलते।)

क्रमशः...

इं. प्रदीप शुक्ला
गोरखपुर
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