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भोजपुरी कहानिया

बुड़बक आख्यान ५

बुड़बक आख्यान ५
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मन तितिर बितिर हो गया है आज अरविंद सिंह का। जितनी बेचैनी केजरीवाल को प्रधानमन्त्री बनने की है, जितनी बेचैनी तेजस्वी यादव को नितीश को ढकेल कर बिहार का मुख्यमन्त्री बनने की है, उससे कहीं ज्यादा बेचैनी में मचल रहे हैं आज अरविन सिंह। कभी उठते हैं, कभी बैठते हैं, तो कभी खड़े खड़े कपालभाति प्राणायाम करने लगते हैं। इससे भी मन ऊबता है तो सचिवालय( अजी देयर इज नो डिफ़रेंस बिटवीन सचिवालय एंड हिहिहीही इन बिहार, बुझ रहे हैं कि नहीं?) में जाकर जोर से चिल्लाते हैं- हमे चाहिए आजादी, लाल सलाम।
घर के लोग समझ रहे हैं कि अरविंद सिंह पर किसी प्रेत का साया पड़ गया है, अरविंद सिंह की अर्धांगिनी दो बार मोतीझील वाले बाबा के पास फोन कर के उन्हें बुला चुकी है।
घर के लोगों को असली बात की कोई खबर नहीं, पर लेखक जानता है कि आज अरविंद सिंह पर कौन सा साया पड़ा है। असल में आज अरविन सिंह ने युगों बाद ललित तिवारी को देखा है। ललित को देखते हीं अरविंद सिंह का शरीर उसी तरह जलने लगता है जिस तरह बिहार भाजपा में अश्विनी कुमार चौबे को देख कर सुशिल मोदी जल जाते हैं। असल में अरविंद और मनोरमा की प्रेम कहानी को अंजाम तक पहुचने से रोकने में ललित तिवारी का भी बड़ा योगदान है। अरविंद को कॉलेज के दिनों की कहानी अक्षर अक्षर याद है, उन दिनों ललित कॉलेज के लभ गुरु हुआ करते थे। जब अरविंद को मनोरमा के पाकीजा जैसे चरण और उन चरणों के स्वामी सैंडिलों से प्रेम हुआ था तब उन्होंने सबसे पहले अपने हृदय का हाल ललित को ही बताया था। ललित तो लभ गुरु थे, और सबकी प्रेम कहानियों को अंजाम तक पहुचाने को अपना परम कर्तव्य समझते थे। सो उन्होंने पुरे मन से अरविंद की मदद करने का वादा किया था। ललित के कहने पर ही अरविंद ने मनोरमा के साथ हुड़का का नाच किया और गाया था-
कलकल कलकल कलकल गोरिया
बीर हमीं, नही दूजो जी...............
पानी छुअत में बटुई बार लाये,
जल्दी बांह मोर पूजो जी.............

कॉलेज में अपनी अद्भुत नाट्यगीत कला का प्रदर्शन करने के बाद अरविंद ने ललित की सहायता से ही अपना पहला प्रेमपत्र लिखा था।
प्रेमपत्र क्या था, बवाल था। पढ़ने वाले के अंग अंग के कर्ण हो जाता, रोम रोम में सोनिया गांधी। पत्र कुछ यूँ था-

सेवा में,
सिरिमति मनोरमा जी
चेयरमैन ऑफ़ दी करेजा ऑफ़ अरबिंद सिंह,
रहरिया इंटर कॉलेज, आरा......

सबिनय निवेदन है, कि जिस प्रकार नोट देख कर किसी सरकारी बिभाग के बड़ा बाबू का ईमान गिर जाता है, उसी प्रकार आपके प्रेम में मैं गिर गया हूँ। जबसे आपको देखा है तबसे भेजा से करेजा का कनेक्सन टूट गया है। आपसे हमको कितना परेम है ई कइसे बताएं, बस यह समझिये कि अगर आप मुझे जीवन भर अपना चरण दबाने का मौका दें दें तो मैं रामबिलास पासवान की तरह धन्य हो जाऊंगा। जितना प्रेम एक पोंकहवा मल, पेटझरी के मरीज को जमालगोटा से नही होगा, जितना प्रेम आलोक पाण्डेय बाबाजी को अपने लोटा से नही होगा, जितना प्रेम मोतीझील वाले बाबा को अपने सोटा से नही होगा, और जितना प्रेम किसी रहेठा पहलवान को अपने लंगोटा से नही होगा, उतना परेम हम आपको करते हैं।
आपके परेम में हमारी वह दशा हुई है कि जिधर देखते हैं उधर आप ही नजर आती हैं।
दिन में तो आप आँखों पर छायी ही रहतीं हैं, रात में भी मैं आपके ही सपने देखता रहता हूँ। एक दिन मैंने देखा कि आप सोफ़ा पर बैठीं हैं और मैं दलेर मेहँदी की आवाज में उस्ताद बड़े गुलाम अली खान की राग मालकौंस में ठुमरी गा रहा हूँ। अचानक आप खुश होकेँ उछलीं और मुझे गले लगा लिया। उसके बाद..... खैर छोड़िये,
अभी कल ही रात को मैंने सपना देखा कि मैं आपके चरण दबा रहा हूँ। दो घंटे बाद आप बड़े प्रेम से कहतीं हैं- डार्लिंग, पहले मेरे कपडे धो दो न, पैर का क्या है वो तो बाद में भी दबा लोगे।
देखिये मनोरमा जी, कपडा और बर्तन धोना कौन सी चीज है, अगर आप मुझे अपने चरणों में स्थान दें तो मैं आपकी कितना सेवा करूँगा यह कैसे बताऊँ.....
अतः निवेदन है कि मुझ सदा- तिरस्कृत, प्रिया विहीन, चरणचुम्बनोत्सुक प्रेमी को अपना दास बना लेने की कृपा करें। मैं आपका सदा आभारी रहूंगा।

आपका..
अरविंद सिंह
पुनश्च- अगर आपको मेरा आवेदन स्वीकार हो तो कल शाम को गर्ल्स सचिवालय के पीछे जरूर आइयेगा। मैं इंतजार करूँगा।
यह प्रेम पत्र प्रेयसी के पास कैसे पंहुचा इसकी कहानी किसी और दिन, पर अगले दिन शाम को अरबिंद सिंह बन ठन के नियत स्थान पर मौजूद थे। पर पता नहीं यह लभ गुरु ललित की चाल थी, या अरविंद की ही गलती कि जो चश्मा अरविंद सिंह लगाये थे उसका एक सीसा कहीं गिर गया था, और अरविंद इस तथ्य से उसी तरह अनजान थे जिस तरह अपनी ही सरकार में हो रहे ताबड़तोड़ घोटालों से मनमोहन सिंह अनजान थे। अब इस परिस्थिति में जब अरबिंद सिंह की पलकें गिरतीं तो सामने से लगता कि वे फूटे सीसे वाली आँख से आँख मार रहे हों।
कुछ देर इंतजार के बाद मनोरमा आई, तो उसका मुह जाने क्यों गुस्से से लाल था। इधर अरबिंद की बार बार झपकती पलकों से उपजी गलतफहमी ने जो शमा बांधा कि अगले ही क्षण मनोरमा ने सुरु किया- दे दना दन, दन दन दन दन दन....
गिनती तो किसी को याद नहीं पर उस दिन से अरविंद ललित से जले रहते हैं। उन्हें लगता है जैसे ललित ने यह जानबूझ कर कराया हो।
आज युगों बाद ललित को देख कर अरविंद की जलन तेज हो गयी है।
घर की मालकिन के बुलावे पर महान संत, आध्यात्म की चर्णाश्रयी शाखा के प्रवर्तक और मोतीझील मठ के महन्थ आँगन में पधार चुके थे।
आगे की कहानी तो लेखक को पता नहीं, हाँ उसने बाबा का भुत उतारने वाला मन्त्र अवश्य दीवाल में कान लगा कर सुन लिया है।

झट-झट फट-फट फटर फटर फट
फट-फट फट-फट फोंय..............
इसको पकड़ा भुत प्रेम का
सेंको सटका सोंय..............

सर्वेश तिवारी श्रीमुख
मोतीझील...............
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