तुम्हारे "ऑनलाइन" होने का सितारा
BY Anonymous20 Sep 2017 3:57 AM GMT
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Anonymous20 Sep 2017 3:57 AM GMT
तुम्हें मालूम नहीं, क्योंकि मैंने कभी बताया नहीं, लेकिन तुमने जब अपना नंबर दिया, उससे पहले तुम्हारा नंबर मुझे हासिल हो चुका था।
भूल तुम्हारी ही थी, इतनी बेपरवाही भी भला कोई करता है?
"अमेज़ॉन" वाले कोई प्रोडक्ट भेजते हैं तो पैकेज पर "इनवॉइस" चस्पा कर देते हैं। "इनवॉइस" पर आपके डिटेल्स दर्ज होते हैं : पोस्टल एड्रेस और फ़ोन नंबर। उस दिन तुमने अमेज़ॉन से "लुई बेल्जियम" का ब्राउन हैंडबैग बुलवाया था। कॉलेज की बेंच पर धूप में बैठकर तुमने अपना पार्सल खोला, हैंडबैग निकाला, एक "वॉव" की मुद्रा में तुम्हारे होंठ घूमकर गोल हो गए थे। तुमने उसे जीभर कर निहारा, मुस्तैदी से मुआयना किया, क्लास की रिंग बजी तो ख़ाली पैकेज वहीं छोड़कर चली गईं।
इतनी बेपरवाही भी भला कोई करता है?
जिन जगहों पर तुम जाती रही हो, उन जगहों पर तुम्हारे बाद लौटकर जाने और जिन चीज़ों को तुमने छुआ था, उन चीज़ों की नमी को तुम्हारे बाद सहलाने की अपनी आदत के चलते मैं चला गया था वहां, तुम्हारी ग़ैरमौजूदगी के गलियारे से होकर, और उस ख़ाली पैकेज को छूने लगा था ऐहतियात से मानो वह तुम्हारी हथेलियां हों कि देखता हूं : किसी अज्ञात लिपि में दर्ज कूटपंक्ति की तरह तुम्हारा फ़ोन नंबर वहां पर मौजूद था।
मैं सहसा सिहर गया।
क्या इन जादुई बेबूझ अंकों के पीछे तुम्हारी आवाज़ रहती थी, तुम्हारे होने की छुअन का सबसे क़रीबी छोर, एक ऐसी शै, जो तुमसे जुड़ी थी, एक खिलखिलाहट, एक चुहल, एक चीख?
कांपते हाथों से उस नंबर को अपने फ़ोन में दर्ज कर लिया था, "वॉट्सएप्प" की "कॉन्टैक्ट लिस्ट" में एड कर लिया था। एक ख़ाली पन्ना : जिसमें ऊपर एक हरी स्ट्रिप में तुम्हारा नाम, वह नाम जिस नाम से मैं तुम्हें पुकारता था, और तुम्हारी मुस्कराती हुई डीपी।
और उस रात, सहसा मैंने देखा कि तुम "ऑनलाइन" थी : "ऑनलाइन" का वह संकेत मेरी रात के आकाश पर एक सितारे की तरह उगा था : मैं मन ही मन मुस्करा दिया था।
तुम "ऑनलाइन" थीं, मेरे होने से पूरी तरह बेख़बर और पलभर को मुझे महसूस हुआ, मानो मैं पहले ही मर चुका हूं और अपनी क़ब्र के पार से किसी प्रेत की तरह तुम्हें निहार रहा हूं। कि इस लाचारी का अपना एक तल्ख़ रोमांस हो।
बाद उसके, हमारी क़ुरबत बढ़ी। तुम मेरे मैसेंजर में मुझसे बातें करती थीं और मैं सधे हुए लफ़्ज़ों में तुम्हारी बातों का जवाब देता था। और तब, एक दिन तुमने कहा : "क्या तुम मुझे अपना वॉट्सएप्प नंबर दोगे?
मैं मुस्करा दिया।
मैंने तुमसे नहीं कहा कि मेरे पास पहले ही तुम्हारा नंबर है। यह भी नहीं कि मैं जानता हूं तुम्हारी वॉट्सएप्प डीपी क्या है। यह भी नहीं कि मैं जानता हूं तुम रोज़ रात 11 बजकर 34 मिनट से 12 बजकर 06 मिनट के दरमियान एक बार ज़रूर ऑनलाइन आती हो, कोई 40 सेकंड तक वहां रहती हो, "ऑनलाइन" का वह शुक्रतारा मेरे आकाश पर दिपदिपाता है और फिर बुझ जाता है। और हर बार मुझे लगता है, जैसे मैंने तुम्हें पाकर खो दिया है,
लेकिन मैंने तुम्हें यह सब नहीं बताया।
मैं अनकहे का एक व्योम होना चाहता था, अनजिये का एक बेछोर क्षितिज।
तुमने मेरा नंबर मांगा, मैंने मुस्कराकर दे दिया। तुमने मुझे "हाय" मैसेज भेजा, मैंने एक मुस्कराहट की तितली तुम्हें भेज दी। तुमने कहा, "अच्छा लग रहा है यहां वॉट्सएप्प पर तुमसे बात करके, ये हमेशा मैसेंजर से ज़्यादा पर्सनल मालूम होता है", और मैंने सिर हिलाकर कह दिया, "सच है।"
मेरी रात के आकाश को तुम्हारी बातों की मंदाकिनी भरने लगी। और तब, सहसा मुझे लगा कि कुछ था, जिसे मैंने खो दिया है। पहले वाले खो देने से ज़्यादा उदास, ज़्यादा मायूस। कि अब मैं "ज़ाहिर" हूं, तुम्हारी "ज़द" में हूं, कि अब तुम मुझे "देख" सकती हो और अदृश्य की हिमशिला में अमरत्व की संतान मैं अब धीरे-धीरे पिघलता जा रहा हूं, तुम्हारे सामने निर्वसन होता जा रहा हूं, और मैं जितना ज़ाहिर हूं और तुम जितनी एक्सेसिबल, उतना ही मैं तुम्हें खोता चला जा रहा हूं।
फूलों, मुस्कराहटों, चंद्रमाओं, गुड मॉर्निंग और गुड नाइट से भरे मेरे एकांत में अब मुझे तुम्हारे "नहीं होने" की "कमी" खलती है, अभाव का अभाव खटकता है!
पाने की हर कोशिश खोने का एक प्रयोजन है, जगहें बनाने की कोशिशें बहुत जगह घेरती हैं, और प्रतीक्षाएं ही प्रेम का आवास है, ना जाने क्यों, हम अपने एकांत में ही सबसे अच्छे प्रेमी होते हैं!
Sushobhit Singh Saktawat
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