Janta Ki Awaz
लेख

कहानी जैसी...... आशीष त्रिपाठी

कहानी जैसी...... आशीष त्रिपाठी
X


बाहर एम्बुलेंस के सायरन आवाज से नीरू का कलेजा मुँह तक आ गया । गाँव के बाहर सुनसान जगह पर वर्षों से खाली पड़े इस मकान में उसने कल ही पति और दोनों बच्चों के साथ शरण लिया था ।

बिना बाप की लड़की की शादी उसकी गरीब माँ ने जिससे तय की वो मंदबुद्धि था। किस्मत की मार थी या आनुवांशिक प्रभाव , 20 साल का बड़ा बेटा भी मंदबुद्धि निकला । ईश्वर से भरोसा उठता सा जा रहा था नीरू का , तब तक थोड़ी दया दिखाई भगवान ने और छोटा बेटा सामान्य पैदा हुआ ।

पति इस योग्य न था कि अपने बड़े भाई के छल को समझकर उसका विरोध कर सके , नीरू का विरोध तूती की आवाज साबित हुई , फलतः जायदाद में जो मिल गया उससे संतोष करना पड़ा । छोटे बेटे ने जब इंटरमीडिएट पास कर लिया तो कुछ खेत बेच कर नीरू ने उसका एडमिशन किसी बड़े व्यावसायिक कोर्स में कराया । किस्मत ने साथ दिया और कैम्पस प्लेसमेंट में उसका भी चयन एक अच्छी कम्पनी हो गया ।

नीरू अब अतीत के सारे कष्ट भूल चुकी थी , गाँव के कोई देवी - देवता बाकी न थे जहाँ उसने इस उपकार के बदले माथा न नवाया हो । जेठ - जेठानी अपने निकम्मे पुत्र को कोसते नजर आए ।

कुछ दिन तक सब सही था किन्तु दुर्भाग्य को जैसे उसके दामन से इश्क हो गया हो । बेटे की पहली सेलरी के साथ ही लॉक डाउन भी आया । किसी तरह से लड़का घर पहुँचा । गाँव में कोरन्टीन सेंटर था तो लेकिन कोई वहाँ रहता नहीं था , लड़का पढ़ा - लिखा था , घर के बाहर घारी में खुद को मानकों के अनुसार कोरन्टीन किया ।

लगभग दो हफ्ते बीत जाने के बाद भी उसमें कोरोना के कोई लक्षण न थे । मगर जाने कैसे गाँव में धीरे - धीरे खबर फैलने लगी कि नीरू का लड़का बुखार की दवा खाता है , खाँसता भी है । कोई स्वास्थ्य अधिकारी गाँव आया तो लोगों ने उसे बताया कि नीरू के लड़के में कोरोना के लक्षण हैं । अधिकारी ने नाम पता नोट किया और चला गया । गाँव वालों ने बताया कि अब उसके लड़के को लोग उठा ले जाएंगे ।

यह सुनकर नीरू का दिल का बैठ गया । उसे इससे मतलब नहीं था कि उसका लड़का हॉस्पिटल जाएगा तो जाँच होगी , इलाज होगा , ठीक हो जाएगा । उसके पास जो जानकारी है उसके अनुसार जिसे यह रोग हुआ उसकी मौत सुनिश्चित है । न सिर्फ नीरू अपितु गाँव के अधिकांश लोगों में यही भय व्याप्त है । लोगों का व्यवहार उसके प्रति एकदम बदल चुका है, अपराधी के भाँति देखा जाने लगा है उसे ।

वो उसी रात चुपचाप, सपरिवार ,गाँव के बाहर वाले मकान में चली गई । एम्बुलेंस आई लेकिन नीरू का घर खाली मिला ।

अगले दिन शायद किसी को भनक लग गई कि वह गाँव के बाहर वाले मकान में छिपी है । शाम होते - होते एम्बुलेन्स उस मकान के दरवाजे पर पहुँच चुकी थी । छोटे बेटे को लेकर चले गए स्वास्थ्यकर्मी ।

अब नीरू की स्थिति पागलों जैसी हो चली है । कुछ सद्भावी लोग समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि लड़का ठीक हो जाएगा , वापस आ जायेगा । किन्तु उसके कान जैसे बहरे हो चुके हैं । मंदबुद्धि पति और बेटे की आंखों में भी आँसू हैं । दो दिन से न तो चूल्हा जला है न ही किसी को भूख है । प्रधान के अनुसार लड़के की जाँच रिपोर्ट आने में अभी दो दिन शेष है ।

आशीष त्रिपाठी

गोरखपुर

Next Story
Share it