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मजदूरों –कामगारों का मनोविज्ञान समझने में योगी – मोदी रहे नाकाम – प्रोफेसर डॉ योगेन्द्र यादव

मजदूरों –कामगारों का मनोविज्ञान समझने में योगी – मोदी रहे नाकाम – प्रोफेसर डॉ योगेन्द्र यादव
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कोरेना महामारी से निपटने के लिए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो 21 दिनी लॉक आउट किया। उन्हें तथा उत्तर प्रदेश सहित भी मुख्यमंत्रियों सहित प्रधानमंत्री को लगा कि उनकी अपील के बाद देश के लोग जहां हैं, वहीं रुक लाएँगे। कोई घरों से बाहर नहीं निकलेगा और 21 दिन के बाद सब कुछ सामान्य हो जाएगा। लेकिन हुआ उल्टा । उनकी अपील के बाद आधा भारत घरों में है, और आधा भारत सड़कों पर अपने बीबी बच्चों के साथ अपने गाँव की ओर भागा जा रहा है। उसे न रात का अंधेरा रोक पर रहा है, न दिन की कड़ी धूप। सर पर अपनी अटैची या बैग को लादे हुए है और कंधों पर अपने बच्चों को बिठाये हुए है। न भूख भूख उसके इस इरादे से उसे विचलित कर पा रही है, और न ही प्यास उसके मार्ग की बाधक बन रही है। केजरीवाल, योगी आदित्यनाथ द्वारा खाने-पीने के इंतजाम भी उसके कदम को रोकने में असफल सिद्ध हो रहे हैं।

कोरेना से बचने के लिए जहां एक दूसरे के बीच दूरी की जरूरत है। मजदूरों की अपने घर – गाँव के प्रति आसक्ति ने बस स्टैंड और सड़कों पर हुजूम में तब्दील कर दिया है। उनकी दशा यह हो गई है कि कोरेना की भयंकर बीमारी की दहशत भी उसके अन्तर्मन से निकल गई है । इसी कारण वह बेतहाशा भागा जा रहा है । ऐसा प्रतीत हो रहा है कि कि जैसे उसके जीवन का लक्ष्य अपने गाँव और घर ही पहुंचना उसका लक्ष्य है।

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, योगी आदित्यनाथ सहित दिल्ली और मुंबई के मुख्यमंत्री मजदूरों के इस मनोविज्ञान को समझने में नाकाम रहे। उन्हें लगा कि अगर भोजन और आवास की व्यवस्था कर दी जाएगी, तो देश के मजदूर ही नहीं, पूरी अवाम जहां रह रही है, वहीं ठहर जाएगी। वे यह नहीं समझ पाये कि अपने घरों से दूर वह धन कमाने के लिए गई है। उसके हाथों को काम मिले, इसलिए वह अपने घरों से दूर रोटी-रोजी की जुगाड़ में दिल्ली, मुंबई चला गया । वहाँ हाड़ तोड़ मेहनत करता, किसी नाले, रेल की पटरी के किनारे या जहां कार्य करता था, उसके ही कैंपस के भीतर किसी एक कोने में रहने लगा। इतना सब कुछ वह इसलिए सह रहा था, क्योंकि वहाँ उसके हाथों को काम मिला हुआ था।

कोरेना लॉक आउट घोषित होने के बाद जब बस स्टैंड और सड़कों पर मजदूरों का हुजूम दिखा, तो देश के प्रधानमंत्री और सभी संबन्धित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के हाथ-पैर फूल गए। आनन-फानन में सभी ने बैठक बुला कर बस और ट्रेन चलाने का निर्णय लिया। जिसमें ठूस-ठूस कर लोगों को भरा जा रहा है। मान लो अगर उसमें से एक भी आदमी को अगर कोरेना संक्रमण हो, तो सभी संक्रमित हो जाएंगे।

उनके अपने गावों की ओर पलायन के पीछे एक और मनोविज्ञान काम कर रहा था। जो माता-पिता या परिजन उनके बड़े होते ही अपने गाँव या घर से कमाने के लिए खदेड़ देते हैं। किसी न किसी के साथ उसे दिल्ली, मुंबई भेज देते हैं। जब तक वह चला नहीं जाता है, तब तक उसे जली-कटी सुनाते हैं । अंत में वह चला ही जाता है। कुछ लोग तो शादी के बाद अपनी बीबी के कहने पर दूसरे शहरों में पलायन कर जाते हैं और कुछ ही महीनों में वह भी गाँव से घर जाकर रहने लगती है। इस तरह से गावों से एक बड़ा तबका अपनी जरूरतों और कारणों की वजह से पलायन कर जाता है। लेकिन जैसे ही कोरेना महामारी को रोकने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों द्वार लॉक आउट का कदम उठाया गया। गाँव में रहने वाले उनके परिजन घबरा गए। और फोन कर-करके उनके नाम में दम कर दिया। ऐसी भावनात्मक बाते की, तमाम मुसीबतें सहते हुए वहाँ से अपने गाँव की ओर कूच करना पड़ा।

इसके पीछे एक और मनोवैज्ञानिक कारण उत्तरदाई है। कोरेना महामारी से निपटने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लॉक आउट घोषित होते ही मजदूर और मालिक के बीच के जो दोस्तना संबंध थे। बिखर गए। जो मालिक कल तक अपने-अपने मजदूरों की एक-एक जरूरत का ख्याल रखता था। उसने भी उससे मुंह मोड़ लिया। उससे बातचीत बंद कर दी। उसे सांत्वना देने के बजाय उसकी मदद करने में अपनी असमर्थता जाहीर करने लगा। इस वजह से भी दिल्ली, मुंबई जैसे महानगरों में रह रहे मजदूरों का मनोबल टूट गया और वे घरों की ओर पलायन कर गए ।

खैर जो कुछ हुआ, अब उसे वापस तो नहीं लौटाया जा सकता है। लेकिन अब सरकारों के पास एक ही चारा है कि वे जल्द से जल्द मजदूरों को उनके गाँव तक पहुंचाने का प्रबंध करें, जिससे बस स्टैंडों, रेलवे स्टेशनों, राजमार्गों पर जो भीड़ दिख रही है। उसे समाप्त किया जा सके। फिर से पूरी तरह लॉक आउट किया जाए। सभी लोगों को कोरेना महामारी से बचने के लिए क्या-क्या सावधानी बरतनी है, उसको अच्छी तरह से समझाया जा सके। जो लोग भी प्रभावित नगरों/महानगरों से वापस जा रहे है, उन्हें कम से कम 21 दिन तक गाँव से बाहर रखा जाए। लोगों से मिलने जुलने पर प्रतिबंध लगाया जाए । तभी इस महामारी के प्रति जो अभियान देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा चलाया जा रहा है, वह सफल होगा। अन्यथा अगर यह महामारी गावों में फ़ैल गई, तो फिर इसका उन्मूलन बहुत ही कठिन हो जाएगा। और जिसकी आशंका व्यक्त की जा रही है, उससे अधिक जनहानि होगी ।

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