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शिक्षा संस्कार – बच्चे और लॉक डाउन – प्रोफेसर डॉ योगेन्द्र यादव

शिक्षा संस्कार – बच्चे और लॉक डाउन – प्रोफेसर डॉ योगेन्द्र यादव
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भौतिक युग में भौतिक सुविधाओं के पीछे भागते मनुष्य के पास अपने बच्चों के लिए भी समय नहीं है। वह बाप तो बन गया, किन्तु पिता न बन पाया। अपने पुत्र के पास बैठने, बात करने, उसके मन में क्या चल रहा है ? यह जानने के लिए उसके पास समय नहीं है। पैसे के बल पर और पड़ोसियों की प्रतिस्पर्धावश वह अपने बच्चों को अच्छे से अच्छे स्कूल में एडमीशन तो करा देता है, अपनी औकात से अधिक फीस भी देने में उसे कोई गुरेज़ नहीं है। उसके लिए फास्ट फूड का भी वह प्रबंध कर देता है। उसे उसकी पसंद के कपड़े और जूते भी दिला देता है। आज की मांग के अनुसार उसे लैपटोप और एंडरायड का मोबाइल भी दिला देता है। लेकिन इनका उपयोग वह पढ़ने या एडल्ट साइट देखने में कर रहा है, इसका अन्वेषण कभी नहीं करता। सिर्फ उसका रिपोर्ट कार्ड ही देख कर संतोष कर लेता है । उसके स्कूल जाने की कभी जहमत नहीं उठाता है । अगर नंबर कम आए, तो उस विषय का एक दो ट्यूशन या कोचिंग और करवा देता है। लेकिन यह जानने की कोशिश कतई नहीं करता है कि उस विषय में कम नंबर आने के पीछे वजह क्या है ?

कोरेना की महामारी के बहाने ही सही, सिर्फ उत्तर प्रदेश ही नही, पूरे देश में इस समय लॉक डाउन चल रहा है। सभी को 21 दिन अपने-अपने घर की चहरदीवारी में ही रहना है। अपने बीबी-बच्चों के साथ रहने का अवसर इसी बहाने मिल गया है। आपाधापी की जिंदगी से थोड़ा सुकून मिल गया है। आज लॉक डाउन के दो दिन हो गए हैं। लोगों ने अपनी थकावट भी दूर कर ली होगी। अब समय है – पिता बनने का। अपने बच्चे के साथ समय बिताने का। उससे चर्चा करने का। उसके कॉपी-किताब, लैपटोप, मोबाइल चेक करने का । कि आपका बच्चा क्या कर रहा है ? कहीं वह उनके समय न देने के कारण गलत मार्ग पर तो नहीं अग्रसर हो गया है । विभिन्न विषयों के प्रश्नों का उत्तर सुनने का । उन्हे पढ़ने के लिए बैठा कर ही इतिश्री नहीं कर लेना है, बल्कि उनके साथ खुद बैठना है। आपको उस विषय का ज्ञान है कि नहीं, इसकी चिंता मत कीजिये। आप बैठिए, अगर आपके बच्चे को वह विषय आता होगा, वह तो वह निर्भीक और बुलंद आवाज में अपना पाठ दोहराएगा, आपके द्वारा पूछे गए प्रश्नों के जवाब देगा । तो समझ जाइए कि इस विषय में यह ठीक है। फिर हर पिता के पास जीवन का ढेर सारा अनुभव होता है। इसलिए उसका खुद का बेटा उसे बेवकूफ तो नहीं बना सकता है। बशर्ते वह अपने पुत्र या पुत्री मोह में पड़ कर खुद वेवकूफ न बनना चाहे ।

हर माता-पिता यह तो जानता ही है कि जिस बच्चे की शिक्षा स्तर जितना ऊंचा होगा, वह उतना ही अपने जीवन संघर्षों में सफल होगा। क्योंकि आज के युग में सर्टिफिकेट तो सबके पास है, लेकिन सफल वही है, जो मेधावी है, जो सिर्फ सवालों और उसके जवाबों में ही नहीं उलझ गया है। बल्कि समय के मांग के अनुसार अपने ज्ञान का परिमार्जन भी करता रहा है।

लॉक डाउन के इन 21 दिनों में, जब घर में बैठना बाध्यता है, अपने बच्चे के साथ बैठ कर, बातचीत करके उसमें इतना सुधार कर दीजिये कि वह आज की गला काट प्रतियोगिता युग में अपने लक्ष्य को प्राप्त कर ले। उसके चेहरे पर मुरदानगी न छाई रहे। उसके चेहरे पर प्रसन्नता रहे। उसमें आत्मविश्वास झलके और अपने गुणों की वजह से वह समाज में प्रशंसा प्राप्त तो करे ही, साथ ही माँ-बाप होने के नाते लोग आपको भी सराहें ।

जिस लॉक डाउन को लोग अभिशाप साबित करने पर तुले हैं। वह आपके लिए वरदान साबित हो सकता है। आप अपने परिजनों के प्रति न केवल आत्मीय संबंध स्थापित कर सकते हैं। बल्कि उनके मन में आपाधापी जीवन के कारण जो गलतफहमियाँ घर कर गई हैं, उन्हे भी आप दूर सकते हैं । उसके लिए लॉक डाउन के 21 दिन बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं। अपने प्रवास के दिनों में मैंने पाया कि हर माता-पिता और उनके बड़े होते बच्चे में तनाव है । दोनों को देख कर ऐसा लगता है कि हर माता-पिता अपने बच्चों से संतुष्ट नहीं है, न ही बच्चे ही अपने माता-पिता से संतुष्ट हैं। समयाभाव के कारण दोनों के बीच छोटी-छोटी बातों या घटनाओं को लेकर तमाम गलतफहमियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। लॉक डाउन के बहाने सिर्फ अपने बच्चों की शिक्षा का स्तर ही नहीं जानना है, बल्कि अपने बच्चों के मन में पनप रही इन गलतफहमियों को भी निर्मूल करना है । जो हर माता-पिता का अपनी – अपनी औलादों के प्रति कर्तव्य है । तो आइये हम सभी संकल्प लें कि हम लॉक डाउन के इन 21 दिनों में अपने बच्चों के साथ हम सिर्फ माता-पिता ही नहीं रह जाएंगे, बल्कि एक अच्छे दोस्त बन जाएंगे, जिससे बच्चा जब चाहे, अपने मन में हो रही उथल-पुथल से बेझिझक चर्चा कर सके। उसका उत्तर पा सके। और उन्नति के मार्ग पर निरंतर प्रगति कर सके । यह तभी संभव है, जब हम अपने बच्चों को शिक्षा संस्कार देने में सफल होंगे ।

प्रोफेसर डॉ योगेन्द्र यादव

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