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65 फीसद से ज्यादा बसपा के मिशनरियों का पलायन सपा को ओर होना बहुजन इतिहास में पहली घटना : सुनील कुमार सुनील

65 फीसद से ज्यादा बसपा के मिशनरियों का पलायन सपा को ओर होना बहुजन इतिहास में पहली घटना : सुनील कुमार सुनील
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...यदि ये कहा जाए कि यूपी में आज बड़ी घटना घट रही है तो यह कहीं न कहीं राजनीतिक रूप से अपरिपक्व बात ही होगी क्योंकि इसकी नींव तो वर्षो पुरानी है और प्रयास महीनों पुराने जिसका परिणाम अब दिख रहा...,जब किसी पार्टी का नेता जब दलबदल करता है तो यह एक सामान्य घटना होती है मगर जब उस विचारधारा से जुडे मिशनरी लोग ऐसी घटनाओं को अंजाम देते हैं तो यह सामान्य घटना नहीं होती और उस घटना से जुड़े घटनाक्रम के तथ्य और तह को समझना भी अनिवार्य हो ही जाता है...!!! ...नेताओ का आना जाना तो हमेशा सपा-बसपा में लगा रहा है मगर बसपा के मिशनरी लोग हमेशा बसपा का साथ खडे रहे/साथ दिया लेकिन बहुजन इतिहास में ये पहली घटना है कि बसपा का मिशनरी सपा की तरफ मूव कर रहा है..., यहाँ गौर करने वाली बात है कि लालच में कुछ एक लोग पार्टी छोड़ सकते है लेकिन 65 फीसद से ज्यादा मिशनरियों का पार्टी छोड़ना महज इत्तफाक नही और न ही लालच है इन्होंने अपना दलित हितैसी नेता चुन लिया है और बाबा साहब और कांसीराम के मिशन को जिंदा रखने और आगे बढ़ाने के संकल्प के रूप में इसे देखा जाना चाहिए/यही बात सतही भी है...!!!

...दरअसल बामशेफ के मूवमेंट की शुरुआत महाराष्ट्र में होती है मगर इसे आकार बहुजन के रूप में यूपी में मिलता है जिसके प्रत्यक्ष चेहरे के रूप में स्व. कांसीराम जी थे और अप्रत्यक्ष नायक के रूप में माननीय मुलायम सिंह जी थे । नेता जी हमेशा से अपना पक्ष भी समाजवादी रखना चाहते थे और अपना विपक्ष भी समाजवादी रखना चाहते थे यही पक भी स्व. कांशीराम जी चाहते थे और ये सोंच कहीं न कहीं भाजपा/कांग्रेस के लिए कब्र खोदने जैसी थी..., आप इस समय स्व. अटल बिहारी बाजपेयी जी के उस स्टेटमेंट को याद करिए जब उन्होंने कहा था कि यूपी में हमने बसपा को साथ लेकर कांटे से कांटा निकाला है तब प्रचारित गेस्ट हाउस कांड भी समझ में आ जाएगा..., ...भाजपा नेता जी के तेवर और हल्लाबोल से बखूबी परिचित थी इसलिए उसने अपने लिए आसान चारा बहन जी को साथ मिलाया...!!! ...जो भी यश और अपयश सपा के मत्थे चढने थे चढ़े मगर यहाँ सिद्धांतों को लेकर जो खाई पैदा की गयी वो बेहद आत्मघाती साबित हुई बहजन समाज/कृषक समाज/चरवाहा समाज के लिए जबकि मजे की बात तो ये थी कि इन समाजों के लक्ष्य/उद्देश्य समान थे मगर दिशा असमान हो चुकी थी अबतक आश्चर्यजनक रूप से...!!!

...इस दिशा को एक करने और खाई पाटने के लिए जो सपा मुखिया ने संकल्प लिया वो शायद कभी भी पूरा न होता अगर भाजपा मौकापरस्ती न दिखाती तथा बसपा मुखिया यदि दुविधा में रहकर बार-बार सामाजिक प्रयोग न करतीं, बसपा का पहले सपा से गठबंधन करना फिर सपा का वोट लेकर उसके ऊपर आरोप मढ़ना इसके बाद गठबंधन तोड़ना यहाँ तक तो राजनीति कही जा सकती है मगर सूचना के अधिकार के न्यून होने सहित हर गम्भीर मसले पर प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रूप से संविधान से खिलवाड़ करती भाजपा के आपत्ति न रखना कहीं न कहीं ये बसपा के लिए आत्मघाती ही सिद्ध हुआ...!!! ...आप बाबा साहब और बहुजन समाज की राजनीति को भी यदि खुद के बचाने के लिए इस्तेमाल करेंगे अपने ही सिद्धांतों और व्यवहार को आप समय-समय पर विरोधाभास सिद्ध करेगें तो समाज कब तक आपके साथ रहेगा...!!! ...आपकी पहचान तो बाबा साहब के संविधान और बहुजन समाज के कारण थी, आपके कारण बाबा साहब का संविधान और बहुजन समान नहीं पहचाना जाता ये बात आपको हमेशा याद रखना था मगर..., ये समाज है इसका नेतृत्व किया जा सकता है मगर इसे गुलाम नहीं बनाया जा सकता यदि ऐसी मंशा की अफवाह भी यदि किन्ही कारणों से फैल गयी तो अन्तिम मुश्किल अन्ततः नेतृत्व को ही होनी है/अराजकता की कीमत भी इसका नेता ही चुकाएगा और यहाँ तो कही न कहीं आप साबित ही करते जा रहे थे...।

...वहीं दूसरी ओर अखिलेश का निष्कपट व्यवहार और अम्बेडकर और लोहिया को एक साथ लेकर आगे बढने की नियत और इसके चलते एक कदम आगे बढ़कर सामाजिक हितों के लिए खुद के हितों से समझौता करके गठबंधन का फैसले का सुबूत आज सपा को बहुत ही मजबूत दिशा दे रहा जो भविष्य में राष्ट्रीय स्तर पर भी दिखेगा/ ऐसा मुझे लगता है...!!!


: सुनील कुमार सुनील


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