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उठो भारत! राम आ रहे हैं...

उठो भारत! राम आ रहे हैं...
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जाने कितने युगों पुरानी घटना है, जब एकाएक अयोध्या की सभी वाटिकाओं के समस्त वृक्षों पर बिना ऋतु आये ही पुष्प खिलने लगे थे। कोयल कूकने लगी थी, सूर्य ने अपना तेज मद्धिम कर लिया था, सारे पक्षी गाने लगे थे, खेतों में फसलें लहलहाने लगी थीं।

एकाएक नगर के समस्त पुरुषों की भुजाएं फड़कने लगी थीं। सभी स्त्रियों की आंखों में प्रेम के डोरे उभर आए थे। वनों में हिरण आदि नाचने लगे थे। बाँस के कोठ से टकराकर निकलती हवाएँ श्याम कल्याण की धुन छेड़ने लगी थीं। और एकाएक पिछले चौदह वर्षों से दुख का आवरण ओढ़ कर जी रहे महाराज भरथ के अधरों पर मुस्कान तैर उठी थी।

तब शायद समूची प्रकृति ने एक सुर में चिल्ला कर कहा था, "उठो भारत! राम आ रहे हैं..."

आप भरथ की मनोदशा की कल्पना कर सकते हैं? छोड़ दीजिए, रोने लगेंगे आप। हाँ, भरथ भी रोये होंगे... एक ही साथ हँसते भी होंगे, रोते भी होंगे... नाचने लगे होंगे, गाने लगे होंगे... तभी तो आज तक फगुआ के दिन हम भी गाते हैं,"उठु भारत राम मिलन आये उठु भारत हो..."

अयोध्या से राम के जाने का मूल्य केवल सबरी जान पायी थी, और राम के वापस अयोध्या आने का अर्थ केवल भरथ जानते थे। शेष संसार तो अभिभूत हो कर तृप्त हो रहा था।

जाने कितने युग बीत गए....

जाने क्यों ऐसा लग रहा है कि अयोध्या की वाटिकाओं में फिर फूल खिल रहे होंगे। अयोध्या के पुरुषों की भुजाएँ फिर फड़कने लगी होंगी! सरयू मइया की लहरें फिर सोहर गा रही होंगी! हवाएँ फिर मङ्गल गीत गा रही होंगी! राम आ रहे हैं क्या? कौन जाने...!

चार सौ नब्बे वर्ष कम नहीं होते... इतने समय में जाने कितने भरथ माथे पर राम की चरणपादुका ले कर राम की बाट निहारते-निहारते ही मर खप गए हैं।

सोच रहा हूँ, यदि राम सचमुच आ रहे हैं तो कितने सौभाग्यशाली हैं हम... अपने जीवनकाल में राम को आते देखना कितनी बड़ी उपलब्धि है, सोच कर शरीर के रोंये खड़े हो रहे हैं। शायद इस धरा से जाते समय यह सबसे बड़ा सन्तोष का विषय होगा कि हमने राम को अयोध्या में दुबारा आते देखा है...

युगों-युगों से माथा बदलती राम की पादुकायें आज हमारे सर पर हैं। शायद कल हम भी भरथ की तरह नाच सकें... गा सकें... रो सकें...

आओ राम! हम रोना चाहते हैं। हम हँसना चाहते हैं। पाँच सौ वर्षों की प्रतीक्षा कम नहीं होती देव...

सर्वेश तिवारी श्रीमुख

गोपालगंज, बिहार।

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